वृत्तिके अन्तर्मुख होनेका अर्थ क्या है ? (भाग – १)


हमसे कोई चूक हो और हम उसे स्वीकार नहीं कर पाते हों और उसके लिए या तो दूसरेको दोषी ठहराते हैं या मैं कैसे दोषी नहीं हूं ?, इस सम्बन्धमें अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं तो समझें कि हमारी प्रवृत्ति बहिर्मुख है ! हमसे कोई चूक हो और हम विनम्रतासे उसे स्वीकारकर उस चूक मार्जन हेतु प्रायश्चित लेते हैं और उस चूकके लिए उत्तरदायी दोषको दूर करने हेतु गंभीरतासे प्रयास करते हैं, साथ ही, चूक बतानेवालेके प्रति हृदयसे कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और भविष्यमें इस प्रकारकी चूकें न हों, इस हेतु प्रयास करते हैं तो समझें कि हमारी प्रवृत्ति अंतर्मुख है ! साधककी प्रवृत्ति अंतर्मुख होती है और एक सामान्य व्यक्तिकी प्रवृत्ति बहिर्मुख होती है ! ईश्वरकी कृपा बहिर्मुख व्यक्तिको नहीं अपितु अंतर्मुख प्रवृत्तिके साधकको प्राप्त होती है !



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