श्रीमती अंतिमा गोयलकी अनुभूति देखेंगे |
जब मैं १८ जून २०१२ को तनुजा दीदीसे मिली तब मुझे पता नहीं था कि कि मेरे जीवनमें एक नया मोड आनेवला है | मैं अगले ४-५ दिन उनसे प्रतिदिन मिली और सेवा करने लगी | प्रत्येक दिन मेरे लिए एक अनुभूति थी; परंतु उसके पश्चात सब कुछ जैसे थम गया, मैं जाने कैसे अपनी सीढीसे फिसल गयी और डॉक्टरने मुझे पूर्ण-विश्रामके लिए कहा |
मैं गुरुपूर्णिमा महोत्सवका आर्ततासे रह देख रही थी; परंतु इस दुर्घटनाने मेरी यह इच्छा पूर्ण नहीं होने दी | हां, यह सब अनिष्ट शक्तियोंका ही किया-धरा था, यह मुझे समझमें आ गया | मैं गुरुपूर्णिमाके लिए नामजप और प्रार्थना करती रही | मेरे पतिने महोत्सवके दिन जाकर सेवा की |
फेसबुकपर और साप्ताहिक पत्रिका ‘सोSहम’ में तनुजा दीदीके गुरु संस्मरण पढ़ती रहती हूं और मुझे इच्छा होने लगी कि कभी गोवा गयी तो परम पूज्य गुरुदेवके दर्शन करूंगी यदि वे आज्ञा दे तो, परंतु अपनी यह आंतरिक इच्छा मैंने किसीसे व्यक्त नहीं की थी |
गुरुपूर्णिमाकी रात्रि मेरे पति जब घर आए तो उन्होंने मुझे परम पूज्य गुरुदेवका चित्र मेरे हाथमें दिया | दीदीने मेरे पतिसे कहा था, “वे आना चाहती थी किन्तु नहीं आ पायीं अतः अब परम पूज्य गुरुदेव स्वयं जाना चाहते हैं उनके पास” ! मेरे पतिद्वारा दीदीके ये बातें सुन मैं क्या कहूं ………. मैं अपने भावनाओंको शब्दोंमें व्यक्त नहीं कर सकती !
अनुभूतिका विश्लेषण : श्रीमती अंतिमा मुझसे जुड़ीं और तुरंत ही भावपूर्वक सेवा करने लगीं अतः अनिष्ट शक्तियां जो उन्हें पहलेसे कष्ट दे रही थीं उन्हें यह अच्छा नहीं लगा और उनकी सेवामें अडचनें डालने हेतु उनकी दुर्घटना करवा दी | परंतु इन्होंने अपने साधकतत्वका परिचय देते हुए पूर्ण विश्रामकी अवस्थामें भी गुरुपूर्णिमामें यथाशक्ति अपने पतिके माध्यमसे सेवा करती रहीं और साथ ही समष्टि हेतु नामजप और प्रार्थना करती रहीं |
गुरुपूर्णिमा समाप्त होनेके पश्चात परम पूज्य गुरुदेवका चित्र किसे दूं जब मैंने ईश्वरसे यह पूछा तो उन्होंने अंतिमाका नाम सुझाया | हमारे मनमें क्या चल रहा है यह और किसीको पता हो या नहीं ईश्वरको पता होता ही है | और वे हमारी आर्ततासे की हुई प्रार्थनाको अवश्य ही सुनते हैं |
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