साधकोंकी अनुभूतियां


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आप सबसे एक अनुभूति साझा करना चाहता हूं | मैं प्रथम बार दीदीसे दिल्लीमें दिसम्बर 2011 में मिला था। उनसे भेंटसे पहले फेसबुकके माध्यमसे उनकी मित्र सूचीमें तो था ही; परन्तु उनके विषयमें अधिक कुछ नहीं पता था।

लगभग एक वर्ष पूर्व 24 दिसम्बर शनिवार का दिन था । मैंने दीदीसे भ्रमन्ध्वनिके लघु संदेशके माध्यमसे (एस एम एस) से मिलनेका समय मांगा । मैं दो-तीन दिनसे दीदीसे मिलनेका समय उनसे मांग रहा था; किन्तु किसी कारणवश उनका कोई उत्तर नहीं आ रहा था | उस दिन भी दो लघु संदेश किये, जब उत्तर नहीं आया तो अहंवश सोचा कि नहीं बुलाना चाहती हैं, तो न बुलाएं ! अपनी ओरसे एक “अंतिम” लघु संदेशके उत्तरमें दीदीने सांय पांच बजेका समय दिया। मैं कार्यालयमें व्यस्त था, सो 4.00 बजे मेट्रो स्टेशनपर पहुंच गया । एक शंकासी उत्पन्न हो गयी मनमें कि जाऊं या नहीं, पता नहीं यह तनुजा ठाकुर कौन हैं, क्या हैं, क्या जाना सार्थक होगा । इधर मेट्रो ट्रेन भी आ गयी और मनमें एक विचार आया कि कार्यालय वापिस लौटा जाए, जानेसे लाभ नहीं हुआ तो ? परन्तु तभी एक और आवाज़ आयी कि यदि जानेसे लाभ नहीं हुआ तो हानि भी क्या होगी ? और मैं दीदीसे मिलनेके लिए निकल पडा । उनसे प्रथम भेंटके समय उन्होंने जो कुछ बताया वह अधिक समझमें तो नहीं आया, परन्तु कुछ भान हुआ कि इनमें कुछ तो असाधारण बात है । मिलने के पश्चात मैंने गंभीरतासे इनकी पोस्ट पढनी आरम्भ कीं और आज उनके कारण साधना पथपर अग्रसर होनेकी दृढता बढ गयी है । – एक साधक
अनुभूति का विश्लेषण : इन साधकके घरपर तीव्र स्तरका पितृ दोष है अरु तीसरे पातालके मांत्रिकका आक्रमण है अतः मुझसे मिलनेसे पूर्व अनिष्ट शक्ति उनके मनमें मुझसे न मिलनेके विषयमें विकल्प डालने लगीं ! अनिष्ट शक्तिको पता होता है कि यदि वे मुझसे मिले तो उन्हें कष्ट होने लगेगा क्योंकि मैं हमारे श्रीगुरुके बताए अनुसार योग्य साधना करने हेतु साधकोंको प्रवृत्त करती हूं ! ऐसा एक नहीं अनेक साधकोंको अनुभूति हुई है या यूं कहूं कि नब्बे प्रतिशत साधकोंको इस प्रकारकी अनुभूति हुई है | – परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर



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