इंदौरके साधक श्री नितिन जोशीकी अनुभूतियां


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अनुभूति क्या होती है ?
जब कोई साधक साधना पथपर अग्रसर होने लगता है, तो ईश्वर उसे अनुभूति देते हैं और अनुभूतिके सहारे साधक, साधना पथपर और अधिक उत्साहसे आगे बढने लगता है |
अनुभूति मन एवं बुद्धिसे परे, हमारी सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियोंके माध्यमसे हमारी जीवात्माको होती है, उसका मन एवं बुद्धिके स्तरपर विश्लेषण करना कठिन है | अनुभूतियोंसे हमारी श्रद्धा बढती है |
अनुभूतियां लौकिक और अलौकिक जगत दोनोंके संदर्भमें हो सकती है जैसे किसीको यदि कोई व्यावहारिक लाभ मिलनेसे उसकी श्रद्धा बढ़ेगी तो उसे ईश्वर वैसे ही अनुभूति देते है, किसीको यदि आध्यात्मिक अनुभूति होनेसे उसकी श्रद्धा बढती है तो उसे वैसी अनुभूतियां होती हैं | अनुभूति ईश्वरद्वारा एक प्रकारसे साधककी साधनाके मीलके पत्थर (milestones) हैं, जो साधनाको गति प्रदान कर, हमारा पथ प्रदर्शन करती हैं | साधकोंकी अनुभूति सुननेसे या पढ़नेसे, हमारी भी श्रद्धा बढती है और यदि हमें ऐसी अनुभूति हो, तो समझमें आता है कि फलां घटना वास्तविक रूपमें अनुभूति थी |

इंदौरके साधक श्री नितिन जोशीकी अनुभूतियां

“११ मार्च २०१४ को इंदौरके भक्तवत्सल आश्रमके संत परम पूज्य रामानंद महाराजका देह त्याग हो गया और उनकी महासमाधिमें उपस्थित होने हेतु पूज्या मां तनुजा ठाकुरका हमारे घर तीन दिवस प्रवास हुआ | इन तीन दिवसोंमें उनके दिव्य सान्निध्य एवं सेवाका सौभाग्य प्राप्त हुआ और उनकी कृपाके कारण अनेक अनुभूतियां हुईं । प्रस्तुत हैं मेरे शब्दोंमें कुछ अनुभूतियां

११ मार्च –

परात्पर गुरु तनुजा मांके कमरेमें दर्पणके ऊपरकी बिजलीका बल्ब(विद्युदीप) पिताजी एक कुशल अभियान्त्रिक (इंजीनियर) होते हुए भी दो घंटे तक प्रयास करनेपर भी वह जल नहीं पाया और हमें वैकल्पिक व्यवस्था करनी पडी |
१२  मार्च –
१. परम पूज्य रामानंद बाबाकी अन्त्येष्टिसे आनेके उपरांत पूज्या तनुजा मां जब विश्रामके लिए गईं तब मैं उनसे आज्ञा लेकर कुछ समयके लिए जहां मेरा कार्य हो रहा है उस स्थानपर ( साइट)  गया | आते समय संध्याके पांच  बज रहे थे, घरसे कुछ दूरी पूर्व  मुख्य मार्गपर कार चलाते-चलाते अचानक झपकी लग गई जो मेरे कई वर्षोंके वाहनचालनके अनुभवमें पूर्वमें कभी नही हुआ, वह हो गया और मेरी चार पहिया वाहन मार्ग-विभाजकपर चढ गई । पूज्या मांकी कृपासे वाहन स्वतः ही नीचे बिना किसी दुर्घटनाके स्वतः ही उतर भी गया और मैं बच गया अन्यथा आप जानते हैं क्या हो सकता   था ?
२. संध्या समय भक्तवत्सल आश्रमसे आनेके पश्चात् रात पौने नौ बजे पूज्या मांको स्काइपपर अंतरराष्ट्रीय सत्संग लेना था; किन्तु उसी समय उनके कमरेकी, साथवाले बच्चोंके कमरेकी और नीचे रसोईकी तीनों दंडदीप (ट्यूबलाइट)  एक साथ बंद हो गई, तब अपने पुत्रसे तुरंत नई मंगवाकर लगाईं तब प्रकाश हुआ | यहां तक तो ठीक था; किन्तु अगले दिवस अपनी पत्नी जो नासिकमें शिक्षिका पदपर कार्यरत है, उससे बात हुई तो ज्ञात हुआ कि नासिकके घरमें भी उसी दिन उसी समय एक साथ अकस्मात् दो कमरोंकी दंडदीप (ट्यूबलाइट) ‘फ्यूज’  हो गईं |

अनुभूतिका विश्लेषण : श्री नितिन जोशीके घरमें अन्य साधकोंके घर समान अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट है, उपर्युक्त कष्टप्रद अनुभूतिसे ज्ञात होता है कि अनिष्ट शक्ति किस प्रकार भयभीत कर साधकोंको हानि पहुंचाना चाहती हैं जिससे कि उनके मनमें साधना एवं अध्यात्मविद्के प्रति विकल्प आए; परन्तु यदि साधकमें भाव होता है तो ईश्वर, साधकका रक्षण भी करते हैं और उनके मनमें विकल्प भी नहीं आने देते हैं ! –परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर

१३  मार्च –
१.  प्रात: पांच बजे उठ कर विद्यालय जानेके लिए बच्चोंके लिए दूध गर्म कर रहा था तो वातावरण पूर्णतः शांत था, कि तभी पूज्या मांकी अति मधुर वाणीमें प्रणवके स्वर सुनाई देने लगे, मैंने तत्काल ऊपर जाकर देखा तो वे कमरेमें नहीं थी किन्तु स्वर पूर्णतः स्पष्ट थे | जब मैंने उनसे ॐ जपनेके विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि वे ऐसा कुछ उंचे स्वरमें नहीं बोलीं थीं |

नीचे रसोईघरमें आनेके पश्चात्  गर्मी अनुभव होनेपर रसोई कक्षका ‘Exhaust Fan’ चलाया तो वो ‘महाराज’ भी ओ…ऊ…ऊ…म..म्म्म् करके चालू हुए और पूरे समय प्रणव ध्वनिका जाप करते रहे !
३. परम पूज्य भक्तराज महाराजके मोरटक्का आश्रमके व्यवस्थापक विगत वर्ष पूज्या मांको अध्यात्म सिखा रहे थे और पूज्या मां भी सहज होकर उनकी ‘ज्ञानकी’ बातें सुन रही थीं । इस वर्ष जब हम परम पूज्य रामानन्द महाराजके अंत्येष्टिपर मिले तो उनका वर्तन पूर्णत: भिन्न था, उनके हाव-भावमें पूज्या मांके प्रति समर्पण स्पष्ट रूपसे दिख रहा था, पूज्या मांके बारेमें परम पूज्य रामानंद महाराजने जो कुछ बताया था यह उसीका परिणाम था  !
4.  हम मेहताखेडीमें एक संतके दर्शन करने गए थे, वे कर्करोगसे(कैंसर) पीडित हैं, उनका स्वास्थ्य अत्यधिक बिगड चुका है , वे बिछावनसे उठ नहीं सकते, उन्हें बोलनेमें भी कष्ट होता है, तब भी वे पूज्या मांके साथ चर्चा करते रहे । बात करते-करते दस मिनटके अन्दर उनपर चढा काला आवरण नष्ट हो रहा हो ऐसा लगा और वे शनैःशनैः ऊर्जावान होकर चालीस मिनट धाराप्रवाह प्रवचन, प्रश्नोत्तर तथा व्यंग करते रहे, तब तक बोलते रहे जब तक कि पूज्या मांने उनसे और अधिक बातें न करनेकी विनती की | इस घटनाका साक्षी बनकर धन्य हो गया | उनकेद्वारा हम साधकोंको ‘जिज्ञासु’ की उपाधि दिए जानेपर उनके चरणोंमें कृतज्ञता व्यक्त की |

१४ मार्च-
पूज्या मांको विदा कर जब घर पहुंचा  तो जिस कक्षमें वे तीन दिवस रुकीं थीं वह कक्ष एक भिन्न ते़जसे दमक रहा था | कमरेमें दिव्य शक्तिका संचार हो रहा था, मैं शैयापर(बिछावनपर) लेट गया और मुझे झपकी लग गई | स्वप्नमें पूज्या मांने मुझसे आग्रह किया कि  आज भर आप यहां मत सोइये, आप यहांकी शक्ति सहन नहीं कर पाएंगे और मेरी झटसे नींद खुल गई और मैं उठ कर बैठ गया, मैंने पाया कि मेरा सिर भारी हो रहा था | पूज्या मांकी शक्तिको सहन करना मुझ जैसे के लिए असंभव जो था | उसके पश्चात् पूरे घरमें एक हल्कापन सा अनुभव होने लगा |”- नितिन जोशी



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