१. जबसे तनुजा दीदीके साथ फेसबुकपर जुडी हूं मेरे जीवनमें अत्यधिक परिवर्तन आया है | मैं अपनी कुछ अनुभूतियां सभीके साथ साझा करना चाहती हूं | -प्रिया
जब भी मैं कुछ जानना चाहती हूं अगले दिन उस प्रश्नका उत्तर फेसबुकमें दीदीके लेखके माध्यमसे मिल जाता है |
अनुभूतिका विश्लेषण : यदि किसी जिज्ञासु या साधकको ईश्वर मार्गदर्शन करना चाहते हैं और उनमें साधनाको जानने की तड़प हो तो उन्हें अपने प्रश्नोंका उत्तर ऐसे लेखनसे मिल जाता है जिसमें चैतन्य(आध्यात्मिक शक्ति) हो | मैं मात्र उच्च कोटिके संतोंकी लेखनी या स्वयंके साधनासे संबंधित अनुभूति या संस्मरण या अपने श्रीगुरुकी सीख फेसबुकपर साझा करती हूं अतः इन लेखोंमें निहित चैतन्यके कारण इस प्रकारकी अनुभूतियां साधकों एवं जिज्ञासुओंको होती है (उच्च कोटिके संतोंकी लेखनीमें चैतन्यका प्रमाण अत्यधिक होता है ) | कई बार आपने देखा होगा कि कुछ मित्र मेरे मित्रोंकी संख्या देख अपने कुछ लेखोंमें मेरा नाम डाल देते हैं जिनमें अध्यात्मका अंश मात्र ही उल्लेख होता है और उनकी बातें मात्र मानसिक स्तरके शास्त्रको बताती है, उन लेखोंसे मैं अपना नाम हटा देती हूं क्योंकि उसमें चैतन्यका प्रमाण अंश मात्र ही होता है | ऐसा करनेपर एक बार एक मित्रने कहा था कि आपमें अहंकार अधिक है इसलिए आप किसी और के लेखनसे कुछ सीखना नहीं चाहती हैं | शाब्दिक स्तरपर ज्ञानप्राप्तिकी रुचि गुरुकृपासे वर्ष २००६ में ही समाप्त हो गयी क्योंकि एक बार मनको शब्दातीत आनंदकी अखंड अनुभूति होने लगे तो शब्दजन्य ज्ञानकी रुचि पूर्णत: समाप्त हो जाती है | मैं कुछ लिखने और बोलनेके लिए स्वयंसे संघर्ष करती हूं क्योंकि अब कुछ भी शब्दके स्तरपर करना आनंददायक नहीं लगता मात्र गुरुके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु और जिज्ञासुओं एवं साधकोंके मार्गदर्शन हेतु कुछ लिखती और पढ़ती हूं ऐसा करते समय ईश्वरको मेरे अंदरका संघर्ष पता है अतः मेरे लेखोंमें निहित चैतन्यके कारण मेरे मित्र वर्गमें जिनमें भी साधकत्त्व है या जिज्ञासा है उन्हें अनुभूतियां होती हैं | फेसबुकके माध्यमसे जुडे मित्रोंके साधक बननेकी घटना इतिहासमें एवं निकट भविष्यमें एक नया कीर्तिमान स्थापित करेगा और यह सब भी गुरुकृपाके कारण संभव हो पाया है | -परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर
२. एक काली छाया जो सदैव मुझसे निकलती हुआ जान पडती था और विशेषकर बाहर जानेसे पहले मेरे शरीरसे निकलता हुआ दिखाई देता था | इस कारण बाहर जानेपर उस कार्यमें सफलता नहीं मिलती थी | जबसे नमक पानीका उपाय आरंभ किया, वह पूर्णत: ठीक हो गया और मुझे अनिष्ट शक्तियोंके कष्टसे छुटकारा मिल गया | – प्रिया
अनुभूतिका विश्लेषण : नमक और देसी गायके गौमूत्रमें अनिष्ट शक्तिके कष्टसे मुक्त करनेकी प्रचंड क्षमता तो है ही साथ ही यह मेरे श्रीगुरुद्वारा अनिष्ट शक्तिके कष्टके निवारणार्थ बताया गया आध्यात्मिक उपाय है इसमंी उनका संकल्प एवं आशीर्वाद भी समाहित है अतः इसे नियमित करनेपर अनिष्ट शक्तिसे पीडित साधकोंको अनुभूतियां होती ही हैं |-परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर
३. दीदीकी मुद्रा वाले चित्रसे संबंधित लेखको पढनेके पश्चात, मैंने उन मुद्रावाले तनुजा दीदीके चित्रको देखकर आध्यात्मिक उपाय आरंभ कर दिये और मैंने पाया कि पिछले २० दिनोंसे मैं तडके बिना आलसके उठ जाती हूं और मुझे अत्यधिक उत्साह भी लगता है जबकि मैं पहले कभी भी सुबह साढ़े सातके पहले नहीं उठ पाती थी | आरंभमें मुझे दो मुद्राओंको देखते समय कष्ट हो रहा था; परंतु कुछ दिनों पश्चात उन मुद्राओंकी ओर देखनेसे मुझे अच्छा लगने लगा | -प्रिया
अनुभूतिका विश्लेषण : मुद्राद्वारा आध्यात्मिक उपाय यह अनिष्ट शक्तिसे पीडित साधकपर आध्यात्मिक उपायका एक सरल माध्यम है | जिन मुद्राओंको देखकर साधकको कष्ट हो रहा हो उसे निरंतरतासे कई दिन देखनेपर कष्ट कम हो जाता है या समाप्त हो जाता है | मुद्राके माध्यमसे प्रक्षेपित चैतन्यके कारण ऐसा होता है | अतः बिना गुरुके अज्ञाके साधकने अनिष्ट शक्तिसे पीडित साधकपर मुद्राद्वारा आध्यात्मिक उपाय भूलसे भी नहीं करना चाहिए | अध्यात्मशास्त्र जानकर उसे कृतिमें लानेको साधकत्त्व कहते हैं और ऐसे साधकोंपर ईश्वरीय कृपा संपादित हो, निश्चित ही अनुभूतियां होती हैं | -परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर
४. ‘सोऽहं’ के प्रथम अंक पढ़नेके पश्चात ही मेरे जीवनमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आने लगे हैं | मैं ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नामजप नहीं कर पाती थी | ‘सोऽहं’ के छठे अंक पढ़नेके पश्चात स्वतः ही मेरा नामजप आरंभ हो गया | मैं साधना पथपर धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हूं | इस हेतु मैं ईश्वर और तनुजा दीदी दोनोंके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूं क्योंकि वे ही साधना पथपर मेरा योग्य मार्गदर्शन कर रहे हैं | -प्रिया
अनुभूतिका विश्लेषण : ‘सोऽहं’ आरंभ करने हेतु जब ईश्वरसे आदेश आया और उसे आरंभ करनेकी प्रक्रियामें जितने भी साधक सहभागी हुए और हो रहे हैं सभीको अनिष्ट शक्तियोंने कष्ट दिए और दे रहे हैं जिसे आप समय समयपर ‘सोऽहं’ में पढ़ ही रहे होंगे, इससे ही मुझे आभास हो गया था कि यह पत्रिका निकट भविष्यमें अनेक लोगोंको साधना पथपर अग्रसर कर उनका अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षण करेगी | इस पत्रिकाके भाषांतरणसे लेकर इसे मेलद्वारा भेजनेकी सेवा करनेवाले सभी साधकोंके त्याग, उनका गुरुतत्त्वके प्रति प्रेम और धर्मरक्षणके प्रति निहित निस्वार्थ भावके कारण यह जिज्ञासु एवं साधकोंके जीवनमें इतने कम समयमें परिवर्तन लानेका सामर्थ्य रखती है -परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर
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