श्रीमती ममता रायकी अनुभूतियां:


 

अनुभूति क्या होती है ?
जब कोई साधक साधना पथपर अग्रसर होने लगता है, तो ईश्वर उसे अनुभूति देते हैं और अनुभूतिके सहारे साधक, साधना पथपर और अधिक उत्साहसे आगे बढने लगता है |
अनुभूति मन एवं बुद्धिसे परे, हमारी सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियोंके माध्यमसे हमारी जीवात्माको होती है, उसका मन एवं बुद्धिके स्तरपर विश्लेषण करना कठिन है | अनुभूतियोंसे हमारी श्रद्धा बढती है |
अनुभूतियां लौकिक और अलौकिक जगत दोनोंके संदर्भमें हो सकती है जैसे किसीको यदि कोई व्यावहारिक लाभ मिलनेसे उसकी श्रद्धा बढ़ेगी तो उसे ईश्वर वैसे ही अनुभूति देते है, किसीको यदि आध्यात्मिक अनुभूति होनेसे उसकी श्रद्धा बढती है तो उसे वैसी अनुभूतियां होती हैं | अनुभूति ईश्वरद्वारा एक प्रकारसे साधककी साधनाके मीलके पत्थर (milestones) हैं, जो साधनाको गति प्रदान कर, हमारा पथ प्रदर्शन करती हैं | साधकोंकी अनुभूति सुननेसे या पढ़नेसे, हमारी भी श्रद्धा बढती है और यदि हमें ऐसी अनुभूति हो, तो समझमें आता है कि फलां घटना वास्तविक रूपमें अनुभूति थी | परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर

श्रीमती ममता रायकी अनुभूतियां

१.      छह अक्टूबरको मैं पूज्य तनुजा मांके सत्संगमें गयी थी उस दिवस सम्पूर्ण रात्रि मैंने मांको सिंहपर बैठे हुए पाया और उनकी साथ ही मेरे गुरुदेव परम पूज्य मेहीं बाबा भी थे | दोनों ही सत्संग कर रहे थे और मुझे अत्यधिक आनंद आया, ऐसा लगा कि जैसे मैं सम्पूर्ण रातत्रि सोयी नहाईं थी अपितु दोनोंके सत्संगमें उपस्थित थी |

२.      २२ सितंबरको मैं सत्संगमें गयी और सत्संगके पश्चात मुझे प्रसाद घर ले जानेके लिए दिया गया था जो मैं घर जाते समय भूल गयी और अगले दिवस मेरे पुत्रका स्वास्थ्य अचानक ही अधिक बिगड गया | मैं तुरंत सेवकेन्द्र पहुंची और एक दिवस पूर्ववाला मेरा प्रसाद लेकर आई और अपने पुत्रको दो बार खिलाया, उससे वह पूर्ण रूपसे स्वस्थ हो गया और संध्या समय खेलने भी चला गया जबकि सुबह उसका स्वास्थ्य इतना खराब था कि मुझे लगा था उसे रुग्णालय ले जाकर भर्ती करना पडेगा | यह चमत्कार मांके प्रसादके कारण हुआ ऐसा मुझे लगता है |

अनुभूतिका विश्लेषण :श्रीमती राय मेरा सप्ताहमें दो या तीन बार मालिश करती हैं | लेखन करते समय या बाहर जाकर प्रसार करते समय अनिष्ट शक्तियां मुझे अत्यधिक कष्ट देती और ऐसे मुझे अत्यधिक शारीरिक वेदना होती है, कभी कभी वेदनासे शरीरमें गांठें भी बन जाती है अतः कभी-कभी मैं स्वयं अपना मालिश करती हूं तो कभी किसी साधकको कहती हूं | एक साधकने मुझे किसी मालिशवालीसे थोडे समयके लिए नियमित मालिश करवानेके लिए कहा | इसी क्रममें उन्होंने मेरा परिचय श्रीमति ममतासे करवाया, वे घरोंमें जाकर झाडू, बर्तन पोछाका कार्य भी करती हैं |

उनसे वार्तालाप करनेपर मुझे पता चला कि उन्होंने अल्पायुमें ही गुरुमंत्र ले लिया था और उनकी उनके गुरुके प्रति भाव भी अति सुंदर है | उन्होंने मेरा परिचय जाननेके पश्चात मालिश करते समय मेरे प्रवचन सुननेकी इच्छा दर्शाई और अब वे मालिशके समय मेरे प्रवचन भी  सुनती हैं और मेरा मालिश भी करती हैं | उनके भावके कुछ उदाहरण जिसका मुझे भान हुआ वह बताती हूं | मेरा मालिश करनेसे पूर्व वे अपने घरसे स्नान कर आती हैं उन्हें लगता है कि दूसरोंके घरों के झूठे बर्तन मांजनेके पश्चात शरीर अशुद्ध हो जाता है ऐसेमें वे मेरा मलिश नहीं कर सकती हैं अतः वे जब भी मालिश करने आती हैं तो स्नान कर दोपहर तीन बजे आती हैं, जब मुझे पता चला तो मैंने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया; परंतु उनकी इस कृतिसे  उनका भाव परिलक्षित होता है  | मालिश करते समय ही उन्होंने कुछ आश्रम सेवा करनेकी इच्छा दर्शाई और अब वे एक समयका बर्तन स्वच्छ करनेकी निःशुल्क सेवा करती हैं | उन्हें अधिक बोझ न हो इसलिए जब आश्रमके कुछ साधक उनकी एनेसे पूर्व कुछ बर्तन स्वच्छ कर रख देते थे, तो उन्हें इसका भान हो गया और उन्होंने एक दिवस साधकों से कहा “लगता है आप सब मेरे आनेसे पहल कुछ बर्तन धो  देते हैं क्योंकि  मुझे पता है कि इतने साधकोंके भोजन बनाने हेतु कितने बर्तन लगते हैं आपसे नम्र विनती है कि आप मुझसे यह सेवा न लें और सारे बर्तन मुझे ही धोने दिया करें” |

वे अति स्वच्छ, व्यवस्थित और अनुशासित रहती हैं | समयका पालन करना यह गुण भी उनमें निहित है | मैंने उन्हें योग्य साधना कैसे करना चाहिए यह भी बातया है और वे इस दिशामें प्रयास भी करने लगी हैं | पिछले सतसंगमें सत्संगमें वे निश्चिंत होकर बैठ सके इस हेतु उन्होंने अपने अपने दो तीन घरोंके कार्य पहले ही समाप्त कर आई थीं | वे नम्र और जिज्ञासु प्रवृत्तिकी हैं, यद्यपि अधिक पढी-लिखी नहीं हैं, जब मैं सत्संग मैं साधकोंको संस्कृतमें रामरक्षास्तोत्र सीखा  रही थी तो वे भी उसे सीखनेका प्रयास कर रही थी | वे किसी आश्रममें रहकर अपने माता, पिता और भाई समान सेवा और साधन करना चाहती हैं ऐसा उन्होंने मुझे बताया ! –  तनुजा ठाकुर

 



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