साधनामें मेरा विरोध करनेवाली मेरी पत्नीकी साधक बननेके प्रवासकी एक झलक


ShivLing Nageshwar

मेरी पत्नीकी प्रथम भेंट पूज्या तनुजा मांसे हमारे घरपर अक्टूबर २०१२ में हुई थी, जब हमने हमारे घरपर पूज्या मांका सत्संग रखा था । तत्पश्चात् वे कभी-कभी ‘उपासना’के दिल्ली स्थित द्वारका सेवाकेंद्र भी जाती थी; किन्तु वह पूज्या मांद्वारा बताई गई साधनाके स्थानपर अपने मनानुसार ही साधना करती थीं । यहां यह बताना आवश्यक है कि वे भगवान शिवकी परम भक्त हैं । एक वर्ष पूर्व एक दिवस अकस्मात उन्हें अन्तः प्रेरणा हुई और उन्होंने शिवकी कर्मकांड अंतर्गत पूजा-विधि अत्यधिक तडपके साथ करने लगीं, इसी क्रममें शिवकी व्यष्टि सेवामें सवा लाख बिल्वपत्र, सवा लाख अक्षत (चावल) भगवान विष्णुके नामजपके साथ, सवा लाख घृतयुक्त रुईकी बातियां एवं सवा लाख पुष्प (श्वेत पुष्प चंपा, चमेली, आक एवं कनेर) भगवान शिवके लिंगको अभी तक अर्पित किए हैं |

यह स्वभावसे पूर्णतः निष्कपट, शांत और संतोषी हैं; परन्तु घरमें जब भी मैंने ‘उपासना’के मार्ग्दर्शन अनुसार अपनी व्यष्टि या समष्टि साधना बढाई, तब-तब  वे घरमें बहुत विवाद (झगडा) किया करती थीं और कुछ समय उपरांत जब ये शांत हो जाती थीं तो कहती थीं कि जब भी पूज्या मांके सत्संगसे मैं आता हूं तो पता नहीं उन्हें क्या हो जाता था, पता नहीं वे क्या बोल जाती हैं जिसकी उन्हें कुछ समय पश्चात् अत्यधिक ग्लानि भी होती थी । एक बार जब मैं पूज्या मांके साथ मार्च २०१३ में ऋषिकेश धर्मप्रसारकी सेवा हेतु गया था, तब तो इनका विरोध अपने चरमपर था जबकि पूज्या मांने मुझसे बोला था कि आप अपनी धर्मपत्नी या पुत्रको भी साथ लेकर मेरे साथ ऋषिकेश चल सकते हैं; परन्तु न तो मेरी पत्नी स्वयं हमारे साथ आईं और न ही उन्होंने हमारे पुत्रको भेजा । मेरी पत्नीका स्वभाव एकाकी होनेके कारण उन्हें सभीके साथ मिलना-जुलना रुचिकर नहीं लगता है और इसी स्वभावके कारण हमारे पूरे बीस वर्षके वैवाहिक जीवनमें मेरे किसी मित्रसे मिलने मेरे साथ कहीं गयीं हों, ऐसा मुझे स्मरण नहीं है ।

सौभाग्यसे ३१ मार्च २०१४ को सेवाकेंद्र द्वारकासे इंदिरापुरम् गाजियाबादमें जब स्थानातंरित हुआ तब मैं ३० मार्चकी रातको अपने घर, वसुंधरा, गाजियाबादसे द्वारका सेवाकेंद्रकी स्थानातंरण हेतु सेवा करने जा रहा था, तब भी मेरी पत्नीने झगडा किया था | स्थानांतरणके कुछ दिवस पश्चात्  रामनवमीके दिन जब नये आश्रममें रामनवमीका एक समारोह हुआ था, तब संभवतः प्रथम बार इन्होंने आश्रममें कोई सेवा की थी और उसके पश्चात् पता नहीं कब और कैसे शनै:-शनै: पूर्णतः ये भी सेवामें आ गईं तथा पूज्या मांके प्रति इनका विरोध पूर्णतः समाप्त हो गया  ।

गुरुकृपयोग अनुसार साधना बतानेवाली हमारी संस्था ‘वैदिक उपासना पीठ’की ‘गुरुपूर्णिमा महोत्सव’ सबसे बडा समारोह होता है । इस बार गुरुपूर्णिमासे पूर्व इनको सेवामें सहभागिताका अवसर, हमारा घर सेवाकेंद्रके निकट होनेके कारण अधिक मिला तो मेरी पत्नीने अत्यधिक उत्साहसे आश्रममें बहुत सेवा की, उनकी लगनकी स्थिति यह थी कि इनकी सेवामें सहभागिता मुझसे अधिक थी और उनमें यह परिवर्तन मेरे लिए अत्यंत सुखद था; किन्तु इसी मध्य वे एक सप्ताहके लिए पूज्या मांसे अनुमति लेकर अपने मायके अर्थात् अपनी मांके घर, मध्यप्रदेश चली गईं; क्योंकि बच्चोंका अवकाश ३० जूनको समाप्त होनेवाला था; परन्तु जब वे एक सप्ताह उपरांत अपने मायकेसे लौटीं तो वे अत्यधिक अस्वस्थ हो गयीं थीं, उनकी स्थिति अत्यंत चिंताजनक थी । वे जो कुछ भी खाती, तुरंत वमन (उल्टी) कर देती थी, उनसे पैदल चलना भी कठिन हो रहा था और अंग्रेजी औषधियोंका भी उनपर तनिक भी प्रभाव नहीं पड रहा था । गुरुपूर्णिमामें मात्र चार-पांच दिन रह गए थे और वह सेवा करनेके लिए बहुत छटपटा रही थी एवं रुग्णावस्थामें (अस्वस्थ अवस्था) भी बार-बार पूज्या मांसे कह रही थी कि “मुझे बताओ कि मुझे क्या सेवा करनी है ?”, यह सब देखकर पूज्या मांने मुझसे कहा कि उन्हें तुरंत २-३ दिनके लिए आश्रममें सुबहसे रात्रितक छोड दें, जिससे कि उनका आध्यात्मिक उपचार (spiritual healing) हो जाए; क्योंकि उनपर उनके मायकेमें अनिष्ट शक्तियोंने उनके मणिपुर चक्रपर आक्रमण किया है तो मैंने तुरंत वैसा ही किया और पत्नीको आश्रममें छोड दिया करता था और इसका सुखद परिणाम यह था कि मात्र २ दिनमें ही वह पूर्णतः स्वस्थ हो गईं और गुरुपूर्णिमाकी सेवामें पुनः लग गईं और अब वह प्रतिदिन २-३ घंटे सेवाके लिए आश्रम जाती है और पूरे मनसे सेवा करती हैं । – एक साधक गजियाबाद, उत्तर प्रदेश

अनुभूतिका विश्लेषण : इस साधककी पत्नीको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट था; अतः जब उनके पति सत्संगसे चैतन्य लेकर घर जाते थे तो उनकी पत्नीको कष्ट होता था, इससे सत्संगमें उपस्थित होनेका महत्त्व ज्ञात होता है | सूक्ष्म जगतकी अनिष्ट शक्तियोंको पहलेसे ही ज्ञात हो जाता है कि निकट भविष्यमें इस साधककी पत्नी, एक क्रियाशील साधकके रूपमें सेवा करेंगी; अतः उनका प्रयास होता है कि जितना हो सके उनके क्रियाशील होनेसे पूर्व जो भी उन्हें साधनामें क्रियाशील करनेका माध्यम बनें उनका वे विरोध करें; परन्तु जब योग्य समय आ जाता है तो अनिष्ट शक्तियां कितना भी प्रयास कर लें, वे साधकको साधना करनेसे नहीं रोक पातीं है | ‘उपासना’के आराध्य देवता शिव हैं और इसलिए उन्हें शिवकी साधना करनेकी गुरुतत्त्वसे अन्तःप्रेरणा हुई | एक वर्षके कालखंडमें उन्होंने भावपूर्वक शिवकी जो प्रचंड उपासना की उसके कारण और उनके पतिके भावके कारण अनिष्ट शक्तियोंके कष्ट अल्प हो गए एवं वे सेवामें क्रियाशील हो गयीं |

जब भी कोई साधक, साधना करता है और उसके पश्चात् वह कहीं जाकर थोडे दिनोंके लिए रहता है तो उसके सूक्ष्म देहपर आये कवचसे वहांकी सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंको यह ज्ञात हो जाता है कि वे जिनसे जुडी हैं, वे उनका भी कल्याण कर सकते हैं; अतः यदि साधक सतर्क होकर नामजप एवं प्रार्थना न करे तो ऐसी अनिष्ट शक्तियां अपनी गति हेतु साधकोंको कष्ट देती हैं; क्योंकि उन्हें ज्ञात होता है कि इनके मार्गदर्शक इन्हें कष्टमें नहीं देख सकते हैं और उन्हें कष्टसे मुक्त करने हेतु कुछ न कुछ उपाय अवश्य करेंगे और इस क्रममें उन सूक्ष्म शक्तियोंका कल्याण निश्चित ही हो जाएगा | मैंने उन साधिकाको आश्रममें आकर रहने हेतु इसलिए कहा था क्योंकि गुरुपूर्णिमा निकट थी और वे सेवा भी करना चाह रही थीं, ऐसेमें यदि वे घरपर रहकर साधना करतीं तो उन्हें स्वस्थ होनेमें अत्यधिक समय लग जाता, आश्रममें चैतन्यका प्रमाण अत्यधिक होता है; अतः साधकोंपर आध्यात्मिक उपाय भी अधिक प्रमाणमें हो पाता है और साधकोंके कष्ट अल्प होकर समाप्त हो जाते हैं, यही तो है आश्रमका महत्त्व ! परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर



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