श्रीमती मीनलकी अनुभूति


 

आज हम एक साधक श्रीमती मीनलकी अनुभूति देखेंगे |
मैं प्रत्येक वर्ष समान इस बार भी गर्मीकी छुट्टियोंमें मेरे ससुराल गयी थी | पहले मुझे ससुराल जानेका मन नहीं करता था क्योंकि मेरी सासु मांसे मेरी नहीं बनती थी | मेरे सास-ससुर स्वभावसे अच्छे हैं; परंतु पता नहीं क्यों छोटी-छोटी बातोंके कारण कुछ मनमुटाव हो जाता था | अतः वहां जानेकी इच्छा नहीं होती थी | वहां जानेके पश्चात मेरा मन चिड़चिड़ा हो जाता था और उनकी बातोंपर क्रोध भी आने लगता था |
जब चार महीने पहले मेरे घरपर तनुजा दीदीका आगमन हुआ था तब उन्होंने बताया था कि घरमें अनिष्ट शक्तिके एवं हमारे स्वभाव दोष और अहमके कारण कलह-क्लेश होते हैं, उन्होंने ऐसे कष्ट पर मात पाने हेतु जो कुछ उपाय बताए थे वह सब मैंने और मेरे पतिने आरंभ कर दिये थे | जब इस बार ससुराल, छुट्टियोंमें गयी तो उनके बताए अनुसार प्रतिदिन एक प्रार्थना जो उन्होंने बताई थी कि ससुराल जानेके पश्चात भी मेरा साधकत्त्व बना रहे यह करती रही और साथ ही अन्य सारे आध्यात्मिक उपाय भी करती रही | और फलस्वरूप इस बार मुझे ससुरालमें अत्यन्त आनंद आया |
जब मैं वहां गयी तो मुझसे सास ससुरको बिना प्रयासके ही आदरयुक्त भावसे देखा जाने लगा | पहले छुट्टियोंमें सुबह जल्दी नहीं उठ पाती थी; परंतु इस बार मैं सुबह साढ़े पांच बजे उठकर नामजप करने लगी | इसके पश्चात सुबह स्नान इत्यादि करनेके पश्चात अपने काम नामजपके साथ करने लगी, यह देख सासुमां खुश हो गईं | सासुमांकी आज्ञापालन भी स्वतः ही होने लगा क्योंकि मैंने यह दृष्टिकोण रखा था कि इस बार सासुमांकी प्रत्येक आज्ञाका पालन करूंगी | ऐसा करनेपर भी मुझे तनिक भी चिड़चिड़ापन नहीं लग रहा था और यह सब मैं प्रेमपूर्वक कर रही थी और इस बार कोई भी उनके प्रति प्रतिक्रिया भी नहीं आ रही थी | मैंने ससुरालमें सभीको योग्य साधना भी बतानेका प्रयास किया और वे मेरी बात सुनकर कहने लगें यदि हमें इन सबके बारेमें पहले बताया होता तो हम पहलेसे ही यह सब करने लगते | इस बार सासुमांने मुझे तुरंत ही मायके जानेकी भी अनुमति दे दी जिससे मुझे अत्यधिक आश्चर्य हुआ | इस प्रकार इस बार मैंने ससुरालमें आनंदपूर्वक छुट्टियां बिताईं | इस बार ससुरालसे विदा लेते समय साभिकी आंखें छलक गईं | इस बार मुझे भान हुआ कि योग्य साधना एवं अध्यात्मके योग्य दृष्टिकोण हमारे जीवनमें आनंद कैसे ला सकता है और मुझे तनुजा दीदीके प्रति अत्यधिक कृतज्ञता हो रही थी क्योंकि जो काम मैं सात वर्षमें नहीं कर पायी, तनुजा दीदीके योग्य दृष्टिकोणने मात्र चार महीनोंमें कर दिखाया और हमारा जीवन ही परिवर्तित कर दिया |
अनुभूतिका विश्लेषण : हमारे व्यावहारिक जीवन में कलह-क्लेश का मुख्य कारण धर्माचरणका अभाव एवं हमारे स्वभवदोष और अहम होते हैं | जब हम धर्माचरण करने लगते हैं और अपने दोष और अहमके लक्षण अपर ध्यान देते हुए उसे कम करनेका प्रयास कर, साधकत्त्वमें वृद्धि करने लगते हैं तो हामरे जीवनकी अनेक समस्याओंका समाधान स्वतः ही होने लगता है | श्रीमती मीनल और उनके पतिद्वरा साधनाके दृष्टिकोणको समझ लेनेपर उसे आचरणमें लानेके कारण उनके जीवनमें परिवर्तन आया | साधारण व्यक्ति स्वेच्छामें रहनेका प्रयास करता है, साधक परेच्छामें रहनेका प्रयास करता है और संत ईश्वरेच्छा अनुसार सर्व कृति करते हैं | जब साधक परेचछा अनुसार कृति करनेका प्रयास करता है तो ईश्वर भी उन्हें अनुभूति देते हैं, श्रीमती मीनलने अपने सासुमांकी इच्छाको प्रधानता देने लगी अतः ईश्वरने घरके वातावरणको उनके मनोनुकूल कर दिया |- (पू,) तनुजा ठाकुर



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