जब कोई साधक साधना पथपर अग्रसर होने लगता है, तो ईश्वर उसे अनुभूति देते हैं और अनुभूतिके सहारे साधक, साधना पथपर और अधिक उत्साहसे आगे बढने लगता है ।
अनुभूति मन एवं बुद्धिसे परे, हमारी सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियोंके माध्यमसे हमारी जीवात्माको होती है, उसका मन एवं बुद्धिके स्तरपर विश्लेषण करना कठिन है । अनुभूतियोंसे हमारी श्रद्धा बढती है ।
अनुभूतियां लौकिक और अलौकिक जगत दोनोंके सन्दर्भमें हो सकती है, जैसे किसीको यदि कोई व्यावहारिक लाभ मिलनेसे उसकी श्रद्धा बढेगी तो उसे ईश्वर वैसे ही अनुभूति देते हैं । किसीको यदि आध्यात्मिक अनुभूति होनेसे उसकी श्रद्धा बढती है तो उसे वैसी अनुभूतियां होती हैं । अनुभूति ईश्वरद्वारा एक प्रकारसे साधककी साधनाके ‘मीलके पत्थर’ हैं, जो साधनाको गति प्रदानकर, हमारा पथ प्रदर्शन करती हैं । साधकोंकी अनुभूति सुननेसे या पढनेसे, हमारी भी श्रद्धा बढती है और यदि हमें ऐसी अनुभूति हो, तो समझमें आता है कि अमुक घटना वास्तविक रूपमें अनुभूति थी ।
झारखंडकी साधिका कुमारी महारानी झाकी अनुभूतियां
१. जब वर्ष २०१० मैं पूज्या तनुजा मांके साथ जगद्धात्रि
पूजामें एक समीपके गांवमें गई और अकेले ही मन्दिरके भीतर जाकर जैसे ही प्रणाम किया तब वहां जितनी भी मूर्तियां थीं, मुझे सभीमें पूज्या तनुजा मांका प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगा ।
२. दिनांक जुलाई २०१० में एक दिन हमारे घरमें कोई भी नहीं था और मैं अपनी गायके पास कुछ कार्य करने गई, पता नहीं उसे अचानक क्या हो गया वह भागने लगी और उसका रस्सा मेरे हाथमें फंस गया मुझे ऐसा लगा जैसे अब तो मेरे प्राण ही निकल जाएंगे ! तभी मेरे मुंहसे मौसी (पूज्य मांको मैं मौसी कहकर सम्बोधित करती हूं) निकला और वो रस्सा अपने आप चमत्कारिक ढंगसे खुल गया ।
३. दिनांक जून २०१० में एक रात्रि मैं सो रही थी तो मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे मेरी मां कह रही हो की मेरे पांव दबा दो, जब मैं उनके पांव दबाने लगी तो मैंने देखा कि उनका पांव तो अत्यधिक गोरा है जबकि मेरी मां तो सांवली हैं तो मैंने आश्चर्यसे मांके मुखके (चेहरेके) ऊपर देखा तो मुझे पूज्या तनुजा मां, देखकर मुस्करा रही थी, यह दृष्टिगत होते ही मेरा स्वप्न टूट गया । – कुमारी महारानी झा, गोड्डा, झारखण्ड (९.११.२०१२)
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