जिन पन्थोंके संस्थापकोंने मृत्योपरान्त अन्त्येष्टि एवं पितृ-कर्मकी विधि वैदिक सनातन धर्म अनुसार करनेकी आज्ञा नहीं दी, आज उन सभी पन्थोंके सदस्योंके घरमें तीव्र पितृदोष एवं अनिष्ट शक्तिके कष्ट देखनेको मिल रहे हैं और वे स्वतः ही अपने कष्टोंके निवारण हेतु सनातन धर्म अनुसार प्रयत्न करने लगे हैं । यह एक प्रकारका ईश्वरीय नियोजन है, जिससे पिछले दो सहस्र वर्षोंसे सनातन धर्मसे विमुख हुए लोगोंका ‘तथाकथित धर्मों’से भ्रम दूर हों और वे पुनः अपने मूल धर्मकी ओर लौट आएं एवं यह देख मन आनन्दित होता है; परन्तु जो अभी भी पन्थको धर्म समझ उनके झांसेमें फंसे हुए हैं, उनके दु:खको देख, मन क्रन्दन करता है । उनके पन्थोंके संस्थापकोंकी संकुचित दृष्टि एवं सीमित सूक्ष्म ज्ञानको देख, पुनः पूर्णत्व प्राप्त देहधारी गुरुकी आवश्यकतापर विश्वास दृढ होता है । कलियुगके सभी ‘तथाकथित धर्म’के (यथार्थमें पन्थके) संस्थापक या तो निर्गुरे थे या सनातन धर्म विरोधी थे । धर्म ईश्वर निर्मित है और पन्थ मानव निर्मित है; अतः धर्म समान उसमें सामर्थ्य हो ही नहीं सकता । – तनुजा ठाकुर
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