अपामार्ग (लटजीरा) (भाग-१)


* परिचय : अपामार्ग अर्थात जो दोषोंको संशोधन करे, बढ रही भूखको शान्त करे, दन्तरोगोंको हर ले और अन्य बहुतसे असाध्य रोगोंका नाश करे, ऐसा दिव्य पौधा भारतवर्षके प्रायः सभी प्रान्तोंमें, नगरोंमें तथा गांवोंमें, सर्वत्र जंगली अवस्थामें पाया जाता है । वर्षा ऋतुमें यह विशेषकर पाया जाता है; परन्तु कहीं-कहींपर यह वर्षपर्यन्त भी मिलता है । वर्षाकी प्रथम फुहारे पडते ही यह अंकुरित होने लगता है, शीत ऋतुमें फलता-फूलता है । तथा ग्रीष्म ऋतुमें (गर्मीमें परिपक्व होकर फलोंके साथ यह पौधा भी सूख जाता है । इसके पुष्प हरी ‘गुलाबी’ कलियोंसे युक्त और बीज चावल सदृश होते हैं, जिन्हें तांडूल कहते है ।)

* बाह्यस्वरूप : यह अपामार्गका पौधा लगभग १ से ३ ‘फुट’ ऊंचा होता है । शाखाएं पतली, अशक्त काण्डवाली और पर्वसन्धि कुछ फूली और मोटी होती हैं । काण्ड प्रायः दो शाखाओंमें विभक्त होता है । पत्र सम्मुख, अण्डाकार या अभिलट्वाकार तथा लम्बाग्र २ से १० से.मी. लम्बे रोमश तथा सवृत्त होते हैं । पुष्पमंजरी पत्रोंके मध्यसे निकलती है । यह मंजरी १ ‘फुट’, कभी-कभी ३ ‘फुट’तक लम्बी होती है ।

* पुष्प : स्पाइकक्रममें अधोमुखी एकसे डेढ से.मी.तक लम्बे होते हैं । कंटकीय वृत्त पत्रकों तथा परिपुष्पके कारण फल वस्त्रोंमें चिपक जाते हैं या हाथमें गड जाते हैं ।

* अपामार्गका पौधा दो प्रकारका होता है । श्वेत और लाल, अपामार्गका काण्ड और शाखाएं रक्ताम होती हैं । पत्रोंपर भी लाल ‘धब्बे’ होते हैं ।



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