आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न (भाग-१४)


 आजकल भोजनालयमें जाकर खानेका प्रचलन बहुत अधिक बढ गया है । मैंने देखा अब तो छोटे नगरोंमें भी चलन बढ गया है । अनेक बार भोजनालयमें यदि हम अधिक भोजन मंगवा लेते हैं और उसे खा नहीं सकते हैं तो उसे घर ले जाने हेतु बंधवा लेते हैं । घर आनेपर भी भूख न होनेपर उसे प्रशीतकमें (फ्रिजमें) रख देते हैं जिससे उसे भूख लगनेपर खा सकते हैं । या महानगरोंमें या नगरोंमें आजकल घर बैठे, भोजनालयसे भोजन मंगवानेका भी प्रचलन आरम्भ हो गया है । अनेक बार उसमें भी यदि भोजन अधिक हो जाए तो उसे भी प्रशीतकमें रख देते हैं । इस सम्बन्धमें दो बातें जान लें ! प्रशीतकमें रखा हुआ, पका भोजन स्वास्थ्यके लिए हानिकारक होता है । आयुर्वेद कहता है भोजन पकानेके पश्चात उसे ४५ मिनिटके भीतर ग्रहण कर लेना चाहिए अन्यथा उसके पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं । आपको क्या लगता कि विशाल मन्दिरोंका या कभी भी जंग न लगने वाले अशोक स्तम्भका निर्माण करनेवाले या पृथ्वीसे सूर्यकी दूरी बता देनेवाले हमारे पूर्वज एक प्रशीतकका निर्माण नहीं कर सकते थे ? वस्तुत:  हमारे मनीषियोंने मात्र वही बताया या बनाया है, जिसमें हमारा कल्याण हो ! इसलिए जहांतक सम्भव हो बासी या बहुत देर रखकर कोई भी भोज्य पदार्थको ग्रहण न करें, विशेषकर आजकल ‘फ्रोजेन फूड’का चलन विदेशियोंकी देखादेखी भारतमें भी आरम्भ हो गया है, उसे विष ही समझें और उसे कदापि ग्रहण न करें !
             कल ही आपको बताया था कि एक बार किसी भी भोज्य पदार्थको आप बाहर निकालकर किसीको खाने देते हैं तो उसे अपने भण्डारमें न रखें, वैसे ही बाहरके बने भोज्य पदार्थ कभी भी अपने प्रशीतकमें न रखें ! आप अधिकसे अधिक उसमें मिठाइयां रख सकते हैं; क्योंकि वे सात्त्विक होती हैं । आपका प्रशीतक भी एक प्रकारसे भण्डारण पात्र है । भोजनालय जैसे रज-तम प्रधान स्थानसे  लाया हुआ भोज्य पदार्थ प्रशीतकमें रखनेसे उसकी सात्त्विकता नष्ट हो जाती है । सामाजिक जालस्थलपर तो आपने बाहर बने हुए भोजनमें आजकल क्या-क्या किया जाता है ? वह देख ही लिया है । कोई उसे जूठा करता है तो कोई उसमें थूक देता है !
    पिछले वर्ष मैं ऑस्ट्रिया गई थी तो एक साधकके घर रुकी थी, उनका अपना भोजनालय है । एक दिन उन्होंने बात ही बातमें कहा कि हम कभी भी अपने भोजनालयमें नहीं खाते हैं । आगे उन्होंने कहा कि हम क्या जिनके भी बडेसे बडे भोजनालय हैं, वे भी कभी उसमें नहीं खाते हैं; क्योंकि हम तो व्यापार करनेके लिए भोजन बनाते हैं तो यदि भोजन बच जाए तो उसे रख देते हैं, श्रमिक भोजन तैयार करते हैं, वे इतनी शुद्धता नहीं रखते हैं और जो भी सामग्री उपयोगमें लाई जाती है, वह उत्कृष्ट नहीं होती है । इसलिए एक तो भोजनालयमें भोजन मात्र आपात स्थितिमें ही करें एवं ‘गर्म’ ही उसका सेवन करें तथा आपके सामने बना हो वही करें एवं उसे संरक्षित कर कदापि न रखें !


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