आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न ! (भाग-३)


      अन्नपूर्णा कक्षमें देवत्व निर्माण करने हेतु या आपको यह स्मरण रहे कि यह आपका रसोईघर नहीं है; इसलिए अन्नपूर्णा माताकी एक छोटीसी पीतलकी या चांदीकी मूर्ति किसी शुक्रवार लाकर अपने अन्नपूर्णा कक्षमें रखे ! इससे आपको यह ज्ञात होगा कि यह कक्ष भोजन बनाकर खानेका नहीं; अपितु अन्नपूर्णा मां हेतु नैवेद्य बनानेका स्थल व उनका स्थान है । इससे आपका भाव भोजन बनाते समय परिवर्तित हो जाएगा । मूर्ति या विग्रह रखतेके पश्चात प्रतिदिन स्नानके पश्चात वहां पंचोपचार पूजन करें ! यदि वह सम्भव न हो तो कमसे कम धूप और दीप दिखाएं ! यदि पुष्प हो तो उसे भी चढाएं ! यह दैनिक कृत्य करनेके पश्चात ही अंगीठीको  (चूल्हेको) जलाएं या उसपर कुछ चढाएं !  अन्नपूर्णा मांका विग्रह पूर्व-पश्चिमकी दिशामें रखें !
मांकी पूजा करते समय इस प्रकार प्रार्थना करें –
           हे मां ! अब हम आपकी सेवामें उपस्थित हुए हैं । मुझसे सम्पूर्ण दिवस भावपूर्वक सेवा करवाकर ले लें ! आपका यह कक्ष आपका मन्दिर है, इस भावसे मैं इसका अनुरक्षणकर (रखरखाव) सकूं एवं प्रसाद बना सकूं, ऐसा मुझसे प्रयास होने दें !”
यदि आप प्याज लहसुन खाते हैं या मांसाहरी हैं तो वह भोजन मांको नैवेद्यमें न दिखाएं ! बिना कन्द (प्याज) लहसुनके बने भोजनको प्रसादके रूपमें अर्पणकर ही उसे ग्रहण करें, ऐसी वृत्ति निर्माण करें ! जब भी कोई विशेष व्यंजन बनाएं तो उन्हें अवश्य अर्पण करें ! साथ ही यदि नित्यके बने हुए भोजनको उन्हें प्रसादके रूपमें नहीं चढा सकते हैं तो मिश्रीका भी नैवेद्य लगा सकते हैं । मेरे कहनेका अर्थ है आपके अन्नपूर्णा कक्षमें उनका तत्त्व जाग्रत हो ऐसा प्रयास करें ! रजस्वला स्त्रियां मासिक धर्मके समय बने हुए या स्पर्श किए हुए कोई भी भोज्य पदार्थ उन्हें अर्पित न करें ! सूतक-पातकके समयका भी भोजन अर्पित न करें ! आप जितना अधिक उनके प्रति भाव रखेंगे उनका तत्त्व उतना ही अधिक क्रियाशील होगा ।
अन्नपूर्णा कक्षमें ‘टीवी’ या ‘मोबाइल’पर कोई भी रज-तम प्रधान कार्यक्रम न चलाएं, इससे कक्षकी सात्त्विकता नष्ट हो जाएगी । यह इसलिए बता रही हूं; क्योंकि आजकल अधिकांश स्त्रियां चलचित्रके गीत या भिन्न प्रसार वाहिनियोंद्वारा दिखाए जानेवाले रजोगुणी या तमोगुणी कार्यक्रमको देखते हुए भोजन बनाती हैं, इसकारण उसमें भी कष्टप्रद स्पन्दन चले जाते हैं !


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