जाग्रत भवके (धर्मप्रसार हेतु बनाया गया ‘व्हाट्सऐप्प’ गुट) एक सदस्यने कुछ सदस्योंने लिखकर भेजा है कि बाल संस्कारवर्गके विषय बहुत ही बोधप्रद होते हैं, इससे हम बडोंको भी बहुत कुछ सीखनेको मिलता है । सत्य तो यह है कि जैसे हमारे पास दस रुपए होंगे तो ही हम उसे अपने बच्चोंको दे सकते हैं, वैसे ही यदि हमारे पास जब धर्म और साधनाकी जानकारी होगी तो ही हम उसे अपने बच्चोंसे दे सकते हैं । मुझे स्मरण है हमारे पिताजी हमें प्रत्येक वर्ष कुछ नूतन श्लोक लिखकर दिया करते थे और उन्हें हमें विद्यालय जानेसे पूर्व स्नानकर पूजा करते समय पढना होता था, तभी हमें प्रातःकालीन अल्पाहार या भोजन मिलता है । इस प्रकार उनके बनाए इस नियमके कारण हमें बहुतसे श्लोक कण्ठस्थ हो गए ।
अतः अपने बच्चोंको सिखाने हेतु धर्म सीखें !
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