आजकल तैलरंग (ऑइल पेण्ट) विक्रय करनेवाले अनेक व्यापारिक प्रतिष्ठान नित्य नूतन रंगों एवं पद्धतियोंसे (पैटर्नसे) घरको रंगनेका विज्ञापन देते हैं । सामान्य हिन्दुओंको सत्त्व-रज-तमका ज्ञान न होनेके कारण वे ऐसे विज्ञापनोंकी ओर त्वरित आकृष्ट होते हैं । जैसे कुछ लोग सुगापंखी या काले रंगसे अपनी भीतोंको रंगते हैं तो कुछ चटख लाल या बैंगनी रंग अपने बच्चोंके कक्षमें डालते हैं । हमारा वास्तु जितना सात्त्विक होगा हमारे घरमें सुख-शान्ति और समृद्धि उतनी ही अधिक होगी, इस सिद्धान्तको ध्यानमें रखकर वास्तुको सात्त्विक रखनेका प्रयास करें ! अतः भीतोंको पारम्परिक रंगोंसे ही रंगें ! घरके लिए श्वेत, हलका पीला या नीला तथा चन्दन, ये रंग ही उत्तम होते हैं, शेष रंगोंसे घरमें रज या तमका प्रमाण बढ सकता है, जिससे मन विचलित रहना, नींद न आना, बच्चोंका पढाईमें मन एकाग्र न होना इत्यादि कष्ट हो सकते हैं । साथ ही आजकल एक और तथ्यका प्रचलन बढ गया है । आजकल लोग भीतोंपर रंगसे भिन्न प्रकारके आकार बनवाते हैं, जो अधिकांशतः तामसिक होते हैं, मैं इसके कुछ चित्र आपसे साझा कर रही हूं, आपने अपने घरमें भी ऐसा तो नहीं करवा रखा है, यह देखें ! यदि ऐसा है तो उसे हटा दें; क्योंकि ऐसी आकृतियोंसे अनिष्टकारी स्पन्दन आते हैं, जो मन एवं बुद्धिपर अनिष्टकारी परिणाम डालते हैं ।
इस सम्बन्धमें मैंने धर्मप्रसारके मध्य अनेक अनुभव एवं अनुभूतियां हैं, इनमेंसे दो अनुभूतियां यहां प्रस्तुत कर रही हूं :-
प्रत्यक्षं किं प्रमाणं, इस कहावतको मैंने उस घरमें चरितार्थ होते देखा, इससे वास्तु सम्बन्धी ऐसे सूक्ष्म ज्ञानपर मेरा और विश्वास हो गया । मैंने उन्हें और उनके पुत्रको सब कुछ अच्छेसे बताया; किन्तु पुनः उनके यहां मुझे जानेकी सन्धि नहीं मिली; इसलिए मुझे ज्ञात नहीं कि उन्होंने मेरे बताए तथ्योंका कितना पालन किया होगा और उसका क्या परिणाम हुआ होगा ?
एक और अनुभूति एक साधिकाकी है, जो ऑस्ट्रियाकी राजधानी विएनामें रहती है ।
अयोग्य एवं तमोगुणी गृहसज्जाके कारण हुई कष्टप्रद अनुभूति
वह जबसे उस कक्षके काले और श्वेत ‘इंटीरियर्स’ होनेपर वहां सोने लगा तो उसे स्वयं भी लगा कि वह चिडचिडा हो गया है और उसकी कमरमें वेदना भी रहने लगी है । पूज्या तनुजा मांके जानेके पश्चात जब एक दिवस मैं रात्रिके समय उस कक्षमें सोने गई तो सम्पूर्ण रात्रि मुझे अवसाद होने लगा और मेरे भविष्यके विषयमें उलटे-सीधे विचार आते रहे, इससे मुझे समझमें आया कि पूज्यबमांने जो कहा था उसमें कितनी सत्यता थी ! – एक साधिका, आयु २३ वर्ष, विएना, ऑस्ट्रिया (९.६.२०१५)
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