अपने जीवन प्रणालीको सात्विक रखें


कुछ व्यक्ति मेरे लेखोंको पढनेके पश्चात पूछते हैं कि आपने अनेक बार लिखा है कि अपने जीवन प्रणालीको सात्विक रखें, जीवन प्रणालीको सात्त्विक कैसे बनाएं इस विषयमें हमारा मार्गदर्शन करें |

अतः इस लेखकी शृंगखलामें कुछ ऐसे ही प्रयासोंके बारेमें जानेगे | आप चाहें तो इन्हें साधनाके साथ अपने जीवनमें उतार सकते हैं |
सात्त्विक बनने के छोटे छोटे प्रयास :

१. अपने भ्रमणभाषके ( मोबाइल ) कालर ट्यूनमें कोई फिल्मी गानेके स्थानपर भजन या नामजपके सात्त्विक मंत्रपठन लगाएं | उसे सुननेवालेके मनमें सात्त्विक भाव निर्माण होगा और वातावरणमें सात्विक स्पंदन फैलेंगे | एक प्रकारसे आप आध्यात्मिक प्रदूषण ( रज-तम प्रधान स्पंदनकी प्रबलता ही आध्यात्मिक प्रदूषण है ) को कम करनेमें अपना अंश मात्र योगदान दे पाएंगे |

२. भ्रमणभाषमें संभाषणकी शुरुआत ‘हैलो’ के स्थानपर नमस्कारसे करें ! जब हम किसीको नमस्कार कहते है उसका अर्थ है सामनेवाले व्यक्तिके आत्मतत्त्वको नमन है ! ‘हैलो’ शब्दमें ऐसी कोई अध्यात्मिकता नहीं है |

३. अपने घरके दीवारको आजके आधुनिक रंग शैली अनुसार रंगनेकी अपेक्षा उसे श्वेत, हल्का पीला , चन्दन या आकाशी नीला रंग दें | आजके प्रचलित गहरे रंग जैसे जामुनी, भूरा, हरा, काला इत्यादि रंगसे कमरेकी दीवार न रंगें ये रंग वास्तुकी दृष्टिसे तमोगुणी होनेके कारण घरके वास्तु एवं उनके रहनेवालोंपर विपरीत प्रभाव डालता है | इसलिए पहले हम पुताईके समय चुनामें नील डालकर घरको रंगते थे |

४. प्रतिदिन घरमें प्रकृतिक धूप और हवा हेतु खिडकियां और दरवाजे थोडी देरके लिए ही सही उन्हें अवश्य खोलें | आकाश और सूर्यके प्रकृतिक तत्त्वसे आपके वास्तुकी सहज ही शुद्धि होती है | आज अनेक घर वातानुकूलित होनेके कारण कई घरोंमें कई-कई दिन खिडकियां नहीं खुलती हैं ऐसे वास्तुमें रज-तमका प्रमाण कुछ समय उपरांत बढ जाता है | घर बनाते समय या नए घर क्रय करते समय यह अवश्य देखें कि घरके कमरोंमें प्रकृतिक रोशनी आती है या नहीं |

५. संभाषण के समय स्वभाषा (मातृ भाषा) , राष्ट्रभाषा (हिन्दी) एवं मूल भाषा – संस्कृतका प्रयोग अधिकसे अधिक करें | संस्कृत एवं तत्सम भाषा सात्त्विक होती हैं और इससे हमारी वाणीकी शुद्धि होकर वाणीमें ओजस्विता आती है | संस्कृत निष्ठ हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा है और इसके गौरवको पुनर्स्थापित करना प्रत्येक सनातन धर्मीका मूल कर्तव्य है |६. संभाषणके समय अपशब्दका प्रयोग पूर्णत: टालें, इससे साधनाका क्षय होता है, एक बार अपशब्द बोलनेसे पांच माला जपकी शक्ति नष्ट होती है और वाणी अशुद्ध होती है ! जहां तक संभव हो अनावश्यक वार्तालाप टालें और अपनी शक्ति को संग्रहित करें , इससे अंतर्मुखता साध्य होगी | ध्यान रहे, वाचालता अनेक समस्याओंकी जन्मदात्री है | वाचन शक्ति शुद्ध एवं ओजस्वी होने पर हमारे अंदर वाच्य सिद्धि स्वतः ही साध्य हो जाती है |

७. अपने बच्चोंको सनातन धर्म और संस्कृतिका पोषण करनेवाले विद्यालयोंमें पढायें, एक आध्यात्मिक शोधमें पाया गया है कि ईसाई मिशनरीद्वारा संचालित विद्यालयमें पढनेवाले बच्चोंके मन एवं बुद्धिपर काला आवरण तीव्र गतिसे निर्माण होता है और कालांतरमें वे जन्म हिन्दू और कर्मसे ईसाई बन जाते हैं जिस कारण वे एक सात्विक विचार प्रणालीसे तमोगुणी विचार प्रणालीकी ओर आकृष्ट हो जाते हैं और उनमें वैदिक सनातन धर्मके प्रति गर्व, प्रेम और श्रद्धा सबमें कमी आ जाती है और वहींसे उनका पतन आरंभ हो जाता है ! अपने बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु, सनातन धर्मके सिद्धान्तोंको सीखानेवाले विद्यालयोंमें उन्हें भेजें | इससे वे तेजस्वी और यशस्वी दोनों ही होंगे | इस बारके महाकुंभमें लाखोंके संख्यामें विदेशियोंका आना यह स्पष्ट संकेत देते है कि हिन्दू संस्कृति श्रेष्ठ है यह विदेशियोंको भी ज्ञात होने लगा है |

८. अपने बच्चों को ‘मम्मी-पापा’ या ‘मम्मी डैडी’ के स्थानपर माता-पिता जैसे सात्त्विक शब्दोंका प्रयोग करना सिखाएं | ‘मम्मी पापा’ या ‘मम्मी डैडी’ शब्द तमोगुणी है इससे बच्चोंकी वाणी आरंभसे ही अशुद्ध हो जाती है |-तनुजा ठाकुर



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