अगस्त १६, २०१८
‘एक-दो नहीं, कर लो बीसियों समझौते, पर स्वतन्त्र भारतका मस्तक नहीं झुकेगा’, संसदमें पोखरण परीक्षणके पश्चात दिए गए तेजस्वी भाषण और ख्रिस्त्राब्द १९७७ में संयुक्त राष्ट्रके ३२वें अधिवेशनमें हिन्दीमें भाषण देने वाले पहले व्यक्ति विख्यात कवि, लेखक, पत्रकार और दिग्गज राजनेता भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयीकी ‘एम्स’में अन्तिम श्वास रूकनेके साथ एक युगका गुरुवारको अन्त हो गया । मध्य प्रदेशके ग्वालियरमें २५, दिसम्बर १९२४ को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे राजनेताओंमें थे, जिन्हें विरोधी दलोंके सदस्योंका सम्मान और प्रेम दोनों प्राप्त था । उनके बाबा श्यामलाल वाजपेयीने उनका नाम अटल रखा था । मां कृष्णादेवी उन्हें ‘अटल्ला’ कहकर पुकारती थीं । उनके पिता पं. कृष्ण बिहारी वाजपेयी हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी तीनों भाषाओंके विद्वान थे, इसी कारण अटल अपने बचपन से ही भाषण-कलामें निपुण हो गए थे ।
अटलने विक्टोरिया कॉलेजियट विद्यालयसे अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की, उन्होंने इण्टरमीडिएट तककी शिक्षा प्राप्त की । विद्यालयके दिनोंमें उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके (आरएसएस) प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटेने काफी प्रभावित किया । अटलने विद्यालय शिक्षा लेनेके पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके शाखा प्रभारीके रूपमें कार्य किया । १९४३ में महाविद्यालय छात्र संघके सचिव १९४४ में उपाध्यक्ष बनने वाले अटलने ग्वालियरसे स्नातक उपाधि और कानपुरके डीएवी महाविद्यालयसे स्नातकोत्तरकी उपाधि प्राप्त की । अटलने अपने महाविद्यालय जीवनके समय ही कविताएं लिखना आरम्भ कर दिया था । शिक्षा पूर्ण करनेके पश्चात उन्होंने पत्रकारिता की; लेकिन कुछ दिवस पश्चात अटलने पत्रकारिता छोड राजनीतिमें पग रखा, जिसके पश्चात उन्होंने फिर कभी भी पत्रकारिताकी ओर मुड कर नहीं देखा । यद्यपि उनकी लिखनेकी इच्छा सदैव रही । यही कारण है कि उनके भाषणोंमें उनकी कविताएं सुनाई देती थीं ।
‘आरएसएस’के सहयोगसे १९५१ में भारतीय जनसंघ दलका गठन हुआ, जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओंके संग अटल बिहारी वाजपेयीकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही । अटल विहारी वाजपेयीने अपने राजनीतिक कालका आरम्भ ख्रिस्त्राब्द १९५२ में लखनऊ लोकसभासे की; लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली । उसके पश्चात उन्होंने १९५७ में उत्तर प्रदेशके बलरामपुरसे जनसंघ प्रत्याशीके रूपमें मतदान लडा और लोकसभामें गए ।
अटल १९५७ से १९७७ तक वह जनसंघके संसदीय दलके नेता रहे और जनता दलकी स्थापनाके पश्चात सत्तारूढ हुए मोरारजी देसाईके नेतृत्व वाले शासनमें १९७७ से १९७९ तक उन्होंने विदेश मन्त्रीका पद सम्भाला । यह वही समय था, जब संयुक्त राष्ट्रमें किसी भारतीय नेताने प्रथम बार अपना भाषण हिन्दीमें दिया था । अपने लम्बी राजनीतिक यात्रामें अटलने कई उतार चढाव देखे । वर्ष १९९६ में वह प्रथम बार देशके प्रधानमन्त्री बने; लेकिन मात्र १३ दिनोंके लिए, उसके पश्चात १९९८ में मात्र १३ माहके लिए और अन्तिम बार १९९९ में उनके नेतृत्वमें १३ दलोंके गठबन्धन शासनका गठन हुआ, जिसने पांच वर्षोमें देशके अन्दर प्रगतिके अनेक आयाम छुए ।
अटलके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धनका शासन ऐसा प्रथम गैर कांग्रेसी शासन था, जिसने अपना पांच वर्षका कार्यकाल पूर्ण किया था । उन्होंने अपने जीवनमें कई कविताएं लिखीं और समय-समयपर उन्हें संसद और दूसरे मंचोंसे पढा भी ।
उनकी कुछ प्रमुख कविताएं :
* विश्वका इतिहास पूछता : रोम कहां, यूनान कहां ? घर-घर में शुभ अग्नि जलाता/वह उन्नत ईरान कहां है ? दीप बुझे पश्चिमी गगन के/व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा।
* क्षमा याचना : क्षमा करो बापू ! तुम हमको, वचन भंगके हम अपराधी, राजघाटको किया अपावन, मंजिल भूले, यात्रा आधी । जयप्रकाश जी ! रखो भरोसा, टूटे सपनोंको जोडेंगे । चिताभस्मकी चिंगारी से, अंधकारके गढ तोडेंगे ।
* भारत भूमिका टुकडा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है । हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं । पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं, कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है, यह चन्दनकी भूमि है, अभिनन्दनकी भूमि है, यह तर्पणकी भूमि है, यह अर्पणकी भूमि है । इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दू-बिन्दू गंगाजल है, हम जिएंगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए ।
* पन्द्रह अगस्तकी पुकार : पन्द्रह अगस्तका दिन कहता, आजादी अभी अधूरी है । सपने सच होने बाकी है, रावीकी शपथ न पूरी है ।।
जिनकी लाशोंपर पग धर कर, आजादी भारतमें आई, वे अब तक हैं खानाबदोश, गमकी काली बदली छाई॥ कलकत्तेके फुटपाथों पर, जो आंधी-पानी सहते हैं । उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्तके, बारे में क्या कहते हैं ॥ हिन्दूके नाते उनका दु:ख, सुनते यदि तुम्हें लाज आती ॥ तो सीमाके उस पार चलो, सभ्यता जहां कुचली जाती ॥
इंसान जहां बेचा जाता, ईमान खरीदा जाता है । इस्लाम सिसकियां भरता है, डॉलर मन में मुस्काता है ।। भूखोंको गोली नंगोंको हथियार पिन्हाए जाते हैं । सूखे कंठोंसे जेहादी नारे लगवाए जाते है ।।
लाहौर, कराची, ढाकापर मातमकी है काली छाया । पख्तूनोंपर, गिलगितपर है गमगीन गुलामीका साया॥ बस इसीलिए तो कहता हूं आजादी अभी अधूरी है । कैसे उल्लास मनाऊं मैं ? थोडे दिनकी मजबूरी है॥ दिन दूर नहीं खण्डित भारतको पुन: अखण्ड बनाएंगे। गिलगितसे गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएंगे॥
उस स्वर्ण दिवसके लिए आज से कमर कसें बलिदान करें । जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करे ।।
कवि से लेकर एक प्रखर राजनेता तक अटलका व्यक्तित्व और उनका व्यवहार किसीसे छिपा नहीं है । वह १९७७ में सुयंक्त राष्ट्रके भीतर हिन्दीमें दिया गया उनका भाषण हो अथवा फिर पोखरण परमाणु परीक्षणके पश्चात संसदके अन्दर विपक्षको लेकर उनके तीखे प्रहार । अटलकी अन्तिम श्वासके थमने के पश्चात भले ही एक कवि और राजनेताके युगका अन्त हो गया हो; लेकिन उनकी कविताएं युवा पीढीके दिलोंमें सदैव पढी जाएंगी ।
स्रोत : जनसत्ता
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