अतृप्त पितर जन्म, मृत्यु और विवाह तीनोंमें ही अडचनें निर्माण करते हैं


अतृप्त पितर जन्म, मृत्यु और विवाह तीनोंमें ही अडचनें निर्माण करते हैं एवं समाजके १०० प्रतिशत लोगोंको पितृदोष होनेके कारण आजकल विवाहमें भी अनेक प्रकारकी अडचनें या दुर्घटनायें होती हैं । विवाह एक महत्त्वपूर्ण सोलह संस्कार है; अतः इसे करते समय इसके आध्यात्मिक महत्त्वको अवश्य ध्यानमें रखकर सूक्ष्म जगतकी अनिष्ट शक्तियां किसी भी प्रकारकी अडचनें निर्माण न करें इस हेतु पूर्वतैयारी आध्यात्मिक स्तरपर करनी चाहिए । यह मैं इसलिए कह रही हूं; क्योंकि आध्यात्मिक कष्टोंके शोधके मध्य मैंने इस विषयपर भी सूक्ष्म इन्द्रियोंके माध्यमसे शोध किया है, जिसमें मैंने पाया है कि यदि घरमें तीव्र स्तरका पितृदोष हो (आज समाजके ५० % लोगोंको तीव्र स्तरका पितृदोष है) तो विवाहसे पूर्व ही दोनों पक्षोंके सम्बन्धमें मनमुटाव होना, विवाहके कुछ दिवस पूर्व किसीकी मृत्यु हो जाना (अपने निकट सम्बन्धीके मृत्यु होनेपर विवाह नहीं किया जाना चाहिए; क्योंकि १३ दिनोंके सूतक कालमें कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है ), घरके सदस्यका अत्यधिक रुग्ण होकर चिकित्सालयमें भर्ती हो जानेकी स्थिति निर्माण होना, घरमें चोरी हो जाना, घरके मुखिया या किसी अन्य सदस्यका अपघात हो जाना, विवाहके दिवस पारिवारिक लडाई होना या ऋतुके विपरीत आंधी-तूफान या बरसात होना इत्यादि घटनाएं घटित हो सकती हैं ! यदि ऐसा कुछ होता है तो विवाह पश्चात भी उस जोडेको अत्यधिक कष्ट होंगे ही; आप भी इस विषयमें अपने परिजनोंके विवाहके पूर्वकी घटनाओंका अभ्यास कर इस तथ्यकी पुष्टि कर सकते हैं और यदि आपके घरमें तीव्र स्तरका पितृदोष है तो आपको भी निश्चित ही इसप्रकारके कष्टका अनुभव हुआ होगा । इस हेतु जैसे ही विवाहका दिन सुनिश्चित हो, वैसे ही प्रतिदिन आधे घंटे ‘ॐ श्रीगुरु देव दत्त’का जप विवाह होनेके पांचवें दिवस तक नियमित घरके अधिकसे अधिक सदस्योंने करना चाहिए एवं विवाह निमित्त कोई भी वस्तु क्रय करनेसे (खरीददारीसे) पूर्व एक छोटा-सा अर्पण अपने गुरु या कुलदेवताके नाम अवश्य ही निकाल कर उन्हें सर्वप्रथम अर्पित करना चाहिए । मैंने यह प्रयोग अनेकोंसे करवाए हैं और उनका विवाह सम्पूर्ण कुलमें सबसे निर्विघ्न हुआ, ऐसा उन्होंने बताया है और उसके पश्चात उनका वैवाहिक जीवन भी उस घरके अन्य सदस्योंकी अपेक्षा अधिक सुखी है ।



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