बंगलुरुकी श्रीमती मीनू गुप्तकी अनुभूतियां


१. पतिको बोलनेपर भी तुलसीके पौधेका नूतन घरमें न लाना और वह एक अतिथिद्वारा भेंट स्वरूप दिया जाना
जब मैंने नामजप करना आरम्भ किया था तो प्रयास रहता था कि नामजप हर समय होता रहे; परन्तु कभी-कभी भूल जाती थी । यह अनुभूति उस समयकी है जब हमने नूतन घरका गृह-प्रवेश किया था, पूजा हमने पहले की थी व नवरात्रको हमने अपने मित्रोंको घर बुलाया था तो घरमें माताकी चौकी रखी थी । नूतन घरमें पतिने तुलसीका पौधा लाकर नहीं दिया था एवं उन्हें बहुत बार बोल चुकी थी; पुराने घरसे लेने नहीं दिया कि यह भी अपना घर ही है नूतन घरमें दूसरा ले लेना । परन्तु उन्होंने लाकर नहीं दिया था, जिस दिन घरमें पूजा थी उस दिन शुक्रवारका दिन था, किसीसे सुना था कि शुक्रवारको तुलसीजीका पौधा घरमें लगाना चाहिए तो उस दिन बहुत तीव्र इच्छा थी कि आज पौधा लाना ही है; परन्तु घरके कार्योंकी व्यस्तताके चलते स्वयं नहीं जा पाई तो पतिको पुनःबोला कि घर वापस आते समय पौधा ले आना; परन्तु जब वे घर आए तो पौधा नहीं लाए तो निराशा हुई और सोचा कि पुनः किसी दिन मैं ही लाउंगी, अतिथि आने लगे भजन-कीर्तन होने लगा । लगभग सभी आमन्त्रित लोग आ गए थे । ६.४५ के आसपास हमारे एक मित्र आए उनके हाथमें उपहार था दूसरे हाथमें एक सुन्दरसे गमलेमें तुलसीका पौधा था जो कि मेरे पतिने पकडा एवं कहा, “ले आ गई तुलसीजी तेरे घर ।”मैं तो देखती ही रह गई विश्वास ही नहीं हो रहा था, नेत्रोंसे अश्रु निकल गए व मांके लिए कृतज्ञताका भाव आया । (१६.९.१५)
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२. भाईको साधना विषयक तथ्य बताते समय उसकी अडचनसे सम्बन्धित सत्संगका त्वरित आना
एक बार अपने छोटे भाईको साधनाके विषयमें बता रही थी कि तुम लोग भी नामजप किया करो । भाई मांसाहारी है और कभी-कभी मद्य (शराब) भी पीता है । उसने कहा, “यदिमैं जप करूंगा तो मुझे मांसाहार व मद्य छोडनी पडेगी जो मैं नहीं छोड सकता’ मैने कहा, “गुरुमां तो कहते हैं कि मांसाहारी भी जप कर सकते हैं, उससे बात करते समय चलभाषमें एक सन्देश आया, जब बात पूरी हुई तो चलभाष देखा उसमें आश्रमसे धर्मधारा श्रव्य सत्संग व्हाट्सऐप्पपर आया था, विषय था ‘क्या मांसाहारी भी माला लेकर जप कर सकते हैं ?’, मुझे लगा जैसे मां पास ही है और कह रहीं है समष्टि साधनाका अच्छा प्रयास है, यही चाहिए था न तुम्हें! मैं घरमें इधर-उधर देखने लगी तो मांकी बात पुनः स्मरण हुआ कि गुरु सर्वज्ञ होते है । उसी समय कृतज्ञता व्यक्त करते हुए भाईको सत्संग भेज दिया ।
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३. एक दिवस पूर्व हुई अनुभूतिका धर्मधारा सत्संगद्वारा उत्तर मिलना
दोपहरमें कभी सोती नहीं हूं, कभी थक जाती हूं तो थोडा लेट जाती हूं, एक दिन इसी प्रकार दोपहरमें थोडे समय लेटी; किन्तु अर्धनिद्राकी अवस्था थी; परन्तु नेत्र बन्द किए तो थोडे समय पश्चात ऐसा लगा जैसे मेरे माथेपर कोई हाथ फेर रहा था, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था । तभी ध्यान आया घरमें कोई नहीं है,  मैं ही हूं ! भयभीत होकर आंखे खोलीं । मेरे साथ क्या हुआ मुझे समझमें नहीं आया; परन्तु अगले दिन मांका व्हाट्सऐप्पपर धर्मधारा श्रव्य सत्संग आया, विषय था, “अनुभूति किसे कहते हैं ?”तब समझ आया कि पिछले दिवस जो मुझे अनुभूति हुई थी वह वायु तत्त्वसे सम्बन्धित अनुभूति थी । मांके लिए कृतज्ञताका भाव आया ।
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४. सेवासे सम्बन्धित अडचनका दूर होना और सेवा समयसीमाके भीतर पूर्ण कर पाना
एक दिन शनिवार रात्रिमें सीमा दीदीने एक सन्देश भेजा कि मासिक पत्रिकाकी सेवा है, कल अर्थात रविवार संध्यातक पूर्ण कर भेजनी है, मांको परम पूज्य गुरुदेवको गोवा भेजनी है, आप कर पाएंगी क्या ? असमंजसमें थी कि हां, कहूं या नहीं; क्योंकि रविवारके दिन सब लोग घरपर होते हैं व रसोईघरका कार्य भी अधिक हो जाता है; परन्तु हां बोल दिया कि करूंगी । पूरी रात ठीकसे नींद नहीं आई कि सेवा करूंगी कैसे ? प्रातः शीघ्र उठी तो कुछ पृष्ठ ही पूरे कर पाई थी, तबतक सब लोग उठ गए थे तो भोजनके लिए रसोईघरमें गई,  ईश्वरसे व मांसे प्रार्थना की कि हे प्रभु, मैं तो माध्यम मात्र हूं आपही सब करवाकर लेंगे,  सेवा दी है तो करवाकर ले लो,  भोजन समाप्त होते राजेश भैयाका (हमारे व्यवसायमें सहभागी हैं) चलभाष आया कि जो लोग अमेरिकासे आए हैं, वे आज ही मिलना चाहते हैं, वैसे उनको सोमवारको मिलना था । पतिने बताया कि आज उनका पूरा दिन उन लोगोके साथ जाएगा व संध्यामें उन्हें ‘इस्कॉन’ मन्दिर दिखाकर आएंगे ! मुझे इतनी प्रसन्नता हुई कि जैसे मेरी प्रार्थना स्वीकार हो गई, संध्या ६.४५ पर मैंने सेवाकी धारिका संगणकीय सम्पत्रद्वारा जैसे ही भेजी, उसी समय पतिने घरकी घण्टी बजाई । उसके पश्चात तो राततक सोते-सोते कृतज्ञता ही व्यक्त करती रही । (सेवाके प्रति तीव्र उत्कण्ठाके कारण ऐसा हुआ है ।) – सम्पादक
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५. बेटीकी परीक्षा परिणाममें अंकका अपेक्षासे अधिक अच्छा आना
अनुभूति उस समयकी है जब मेरी बेटी दसवीं कक्षाकी परीक्षा देनेवाली थी, परीक्षा दो भागों में होती है पहले भागके अंक (नम्बर) दूसरे भागसे जुडकर ‘सीजीपीए’ आती है । बेटीकी पहले भागकी परीक्षामें गणितका विषय अच्छा नहीं हुआ था उसमें उसने १६ अंकका प्रश्न छोड दिया था,  मैं भी उसे पढा नहीं पाई थी तो मुझे बहुत ग्लानि होती थी कि इसकी १० ‘सीजीपीए’ नहीं बनेगी ।मार्चकी परीक्षामें उसे अच्छेसे पढाया था; परन्तु विश्वास था कि कम अंक आएंगे; क्योंकि पहले भागमें अंक कम है । नामजप करते समय कभी-कभी मनमें आता था कि इसके अंक मेरे कारण कम आएंगे, वह कहती भी रही, मैं ही ध्यान नहीं दे पाई । परीक्षाके पश्चात जब बेटीका परिणाम आया तो उसकी दसमें से दस ‘सीजीपीए’ आई कैसे आई समझ नहीं आया ? जब परीक्षा परिणाममें देखा तो उसकी मार्चकी परीक्षाके अंक पूरे होनेके कारण एक विषयमें ‘अपग्रेडेशन’ मिला था जोकि गणित था । उसका परिणाम देखकर तो मेरा मन बहुत आनन्दित हुआ व कृतज्ञताका भाव आया ।

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६. मनमें विचार आते ही मांद्वारा सात्त्विकस्वरके स्तोत्र चलाने हेतु निर्देश आना
कल एक सुन्दर अनुभूति हुई । मनमें विचार आ रहा था कि प्रातःकोई भजन लगाया करूं; परन्तु कौनसा लगाऊं यह समझमें नहीं आ रहा था; क्योंकि तनुजा मांने बताया था कि चित्रपट संगीतके भजन सात्त्विक नहीं होते । उसका उत्तर आज मांके व्हाट्सऐप्प गुट जो हम साधकोंके लिए बना है उसमें मिला जिसमें उन्होंने प्रातः कौनसे सात्त्विक स्वरके स्तोत्र लगाने चाहिए उसका लिंक साझा किया था । इसीसे मां हमारे मनकी बातें जान लेती हैं, इसका भान हुआ एवं आनन्द व कृतज्ञताका भाव आया । – मीनू गुप्त, बंगलुरू (७.९.२०१८)
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