भगवान श्री जगन्नाथजीकी रथयात्रा (भाग – १)


भगवान श्रीजगन्नाथजीकी रथयात्रा आषाढ शुक्ल द्वितीयाको जगन्नाथपुरीमें आरम्भ होती है । यह रथयात्रा पुरीका प्रधान पर्व है । इसमें भाग लेनेके लिए लाखोंकी संख्यामें श्रद्धालु पहुंचते हैं । इस रथयात्रामें भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्राकी मूर्तियोंको तीन पृथक-पृथक दिव्य रथोंपर नगर भ्रमण कराया जाता है ।

रथयात्रा मुख्य मन्दिरसे आरम्भ होकर दो किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मन्दिरपर समाप्त होती है । जहां भगवान जगन्नाथ सात दिनतक विश्राम करते हैं । आषाढ शुक्ल दशमीको रथयात्रा पुनः मुख्य मन्दिर पहुंचती है । आज हम आपको इस रथयात्रासे जुडी कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं :-

१. भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्राके रथ नारियलकी लकडीसे बनाए जाते हैं; क्योंकि ये लकडी हलकी होती है । भगवान जगन्नाथके रथका रंग लाल और पीला होता है और यह अन्य रथोंसे आकारमें भी बडा होता है । यह यात्रामें बलभद्र और सुभद्राके रथके पीछे होता है ।

२. भगवान जगन्नाथके रथके कई नाम हैं जैसे गरुडध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि । इस रथके सारथीका नाम दारुक है ।

३. भगवान जगन्नाथके रथके घोडोंका नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाशव है, इनका रंग श्वेत होता है । रथके रक्षक पक्षीराज गरुड हैं ।

४. भगवान जगन्नाथके रथपर हनुमानजी और नृसिंहका प्रतीक चिह्न होता है । यह स्तम्भ रथकी रक्षाका प्रतीक है ।

५. रथकी ध्वजा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाती है । रथको जिस रस्सीसे खींचा जाता है, वह शंखचूड नामसे जानी जाती है ।

६. भगवान जगन्नाथके रथमें सोलह चक्र (पहिए) होते हैं, ऊंचाई साढे तेरह मीटर होती है । लगभग ११०० मीटर कपडा रथको ढंकनेके लिए उपयोगमें लाया जाता है ।

७. बलरामजीके रथका नाम तालध्वज है । इनके रथपर महादेवजीका प्रतीक चिह्न होता है । रथके रक्षक वासुदेव और सारथीका नाम मताली है ।

८. सुभद्राके रथका नाम देवदलन है । इनके रथपर देवी दुर्गाका प्रतीक होता है । रथके रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं ।

९. भगवान जगन्नाथके रथके घोडोंका रंग श्वेत, सुभद्राके रथके घोडोंका रंग गहरा लाल व बलरामजीके रथके घोडोंका रंग नीला होता है ।

१०. भगवान जगन्नाथके रथका शिखर लाल-हरा, बलरामजीके रथका शिखर लाल-पीला व सुभद्राजीके रथका शिखर लाल-धूसर (ग्रे) रंगका होता ।



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