जो शाश्वत है, चिरस्थायी है, वह सनातन है । हमारे श्रीगुरुद्वारा प्रतिपादित अध्यात्मके कुछ सिद्धान्त, जो सनातन धर्म आधारित हैं वे सृष्टिके अन्ततक, धर्म और अध्यात्मके मूलभूत सिद्धान्तोंके रूपमें जाने जाएंगे। वह इसलिए धर्मसिद्धान्तके तत्त्व तभी फलदायी होते हैं जब वह कालके परे जाकर साधकका अध्यात्ममें पथ प्रदर्शन कर सके और उनके सर्व धर्म सिद्धान्त काल, देश, पन्थ, जाति एवं लिंग इस सबके परे होकर मानव मात्रके उद्धार हेतु फलदायी हैं, यह सिद्ध हो चुका है और सनातनके अनेक साधक-सन्त एवं जीवनमुक्त साधक, इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।जो अति सूक्ष्म होता है वही सनातन होता है और स्थूल नश्वर होता है, उन्होंने इस तत्त्वका उद्बोधन अपने वचन, कृत्य एवं लेखनसे सिद्ध किया है ।आजके इस तमोगुणी कालमें जब अधिकांश हिन्दुओंको धर्म और अध्यात्मका ज्ञान नहीं है, ऐसे कालमें उन्होंने सनातन धर्म आधारित सूक्ष्म तत्वयुक्त अध्यात्मशास्त्रसे जिज्ञासु एवं साधक जीवको अवगत कराकर, उन्हें सूक्ष्म तत्त्व व सूक्ष्म जगतसे समाजको अवगत करानेका एक अद्वितीय कार्य किया है, जिसकारण सनातन धर्ममें लोगोंकी आस्था ही नहीं बढी है एवं धर्माभिमान जागृत हुआ है ।
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