प्रेरक प्रसंग – भगवान उन्हीं लोगोंकी सहायता करते हैं जो स्वयंकी सहायता करते हैं


एक बारकी बात है कि किसी दूर गांवमें एक किसान रहता था । उन दिनों वर्षाका समय था चारों और गड्ढोंमें पानी भरा हुआ था । कच्चा पथ वर्षाके कारणसे फिसलन भरा हो गया था । सवेरे-सवेरे किसानको बैलगाडी लेकर कुछ धन अर्जित करने विपणन केन्द्र (बाजार) जाना होता था; परन्तु आज वर्षाके कारण उसे बहुत कठिनाई हो रही थी, तथापि किसान धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक बैलगाडी लेकर विपणन केन्द्रकी ओर जा रहा था ।
अकस्मात मार्गमें एक गड्ढा आया और बैलगाडीका पहिया गड्ढेमें फंस गया । कीचड भरे गड्ढेसे निकलना बहुत कठिन था । बैलने भी अपनी पूरी शक्ति लगाई; परन्तु सफलता नहीं मिली । अब तो किसान बहुत व्यथित हो उठा । उसने चारों ओर दृष्टि घुमाई; परन्तु उस वातावरणमें दूर-दूरतक कोई दृष्टिगत नहीं हुआ । किसान सोचने लगा कि किससे सहायता मांगे ? कोई व्यक्ति दिखाई ही नहीं दे रहा । किसान दुखी होकर एक ओर बैठ गया और मन ही मन अपने भाग्यको कोसने लगा । “हे भगवान ! ये तूने मेरे साथ क्या किया ? कोई व्यक्ति भी दिखाई नहीं दे रहा इतना दुर्भाग्य मुझे क्यों दिया ? किसान स्वयंके भाग्यको कोसे जा रहा था ।”
तभी वहांसे एक संन्यासी जा रहे थे, उन्होंने किसानको उन्हें देखा तो अपनी व्यथा बताने लगा। मैं सवेरेसे यहां बैठा हूं, मेरी गाडी फंस गई है और मेरा भाग्य भी इतना खोटा है कि कोई मेरी सहायता करने भी नहीं आया । भगवानने मेरे साथ बहुत अन्याय किया है । संन्यासी उसकी सारी बात सुनकर बोले, “तुम इतनी देरसे यहां बैठे अपने भाग्यको कोस रहे हो और भगवानको बुरा भला बोल रहे हो, क्या तुमने स्वयं अपनी गाडी निकालनेका प्रयास किया ?”
किसानने उत्तर दिया, “नहीं”,
संन्यासी बोले, “तो किस अधिकारसे तुम भगवानको दोष दे रहे हो ?, भगवान उन्हीं लोगोंकी सहायता करते हैं जो स्वयंकी सहायता करते हैं ।
अब बात किसानकी समझमें आ गई उसने तुरन्त पहिया निकालनेका प्रयास किया और वह सफल भी हुआ ।
इस प्रसंगका निष्कर्ष यही है कि आप स्वयंकी सहायता करिए तभी ईश्वर भी आपकी सहायता करेंगे ।


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