भारतकी जनता लोकतन्त्रके लिए अभी तक सिद्ध नहीं है, क्योंकि स्वार्थी जनता लोकतान्त्रिक व्यवस्थामें स्वयंकी प्रवृत्ति समान ही प्रत्याशीका चुनाव करती है ! यह इन चुनावोंमें पुनः सिद्ध हो चुका है । लोकतन्त्रके सफल होने हेतु प्रजाका राष्ट्रनिष्ठ एवं निस्वार्थी होना परम आवश्यक है; प्रत्याशी चुनते समय सर्वप्रथम उस दलकी राष्ट्रनिष्ठाका अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए, यह लोकतान्त्रिक चुनाव प्रक्रियाका मूलभूत सिद्धान्त है, किन्तु यदि प्रजा स्वार्थी हो तो वह मात्र स्वयं या स्वयंके समुदायके उत्थान मात्रके विषयमें सोचती है और यहींंसे लोकतन्त्रकी पराजय प्रारम्भ हो जाती है और ऐसी लोकतान्त्रिक व्यवस्थामें देश कभी भी सुरक्षित नहीं रह सकता है !
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