भारतमें हिन्दू जनसंख्या घटनेका संकेत है अत्यन्त घातक


ख्रिस्ताब्द १९४७ में भारतका विभाजन हुआ और देशने इसे अन्यमनस्कतामें स्वीकार किया । हिन्दुओंने ‘खण्डित भारत’को कथित स्वतन्त्रताके साथ विधिका विधान मानते हुए स्वीकार किया । मुसलमानोंको उनके हठ और दुराग्रहके कारण तथा भारतके राजनीतिक अक्षम नेतृत्वके स्वार्थके कारण पूर्वी पाकिस्तान सहित एक बडा भूभाग दे दिया गया । शेष भाग स्वाभाविक रूपसे हिन्दुओंका था, जहां उन्हें उनके अधिकार तथा अपने भौतिक और आध्यात्मिक विकास हेतु उचित वातावरण मिलना चाहिए था; परन्तु दुर्भाग्य कि यह आजतक नहीं हो सका । विगत ७ दशकों में एक ओर जहां पाकिस्तान तथा तात्कालिक पूर्वी पाकिस्तानमें  (बांग्लादेश) हिन्दुओंकी जनसंख्यामें अत्यन्त गिरावट आई है, वहीं भारतमें अहिन्दुओंकी जनसंख्यामें भारी वृद्धि हुई है ।

२०११ की जनगणनाके अनुसार भारतके कुल सात राज्य और एक केन्द्र शासित प्रदेशमें देशके जनसंख्यावाले हिन्दू अब अल्पसंख्यक बन चुके हैं । भारतमें ऐसे अनेक प्रदेश भी है जहां हिन्दुओंकी जनसंख्या १०% से भी न्यून हो गई है । मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर और लक्षद्वीपमें हिन्दू समुदाय अल्पसंख्यक है । ये प्रदेश अब ईसाई या मुस्लिम बहुल हैं । प्रदेशोंकी कुल जनसंख्यामें हिन्दुओंका अनुपात तीव्रतासे न्यून (कम) हुआ है ।

आइए ! अब दृष्टि डालते हैं उन राज्योंके आकडोंपर जिन राज्योंमें हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं । उनमें हिन्दू जनसंख्याका प्रतिशत नागालैंडमें ८.७५%, मिजोरममें २.७५%, जम्मू-कश्मीरमें २८.४४%, मेघालयमें ११.५३%, मणिपुरमें ४१.३३%, अरुणाचल प्रदेशमें २९.०४% पंजाबमें ३८.४९% है । जबकि केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीपमें हिन्दू जनसंख्या मात्र २.७७% ही रह गई है । नागालैंडमें २००१ से २०११के मध्य हिन्दुओंकी जनसंख्या बढनेका क्रम तीव्रतासे घटा है ।

राज्यानुसार देखें तो मिजोरम ऐसा राज्य है जिसकी कुल जनसंख्यामें हिन्दुओंका अनुपात अत्यन्त अल्प है । ख्रिस्ताब्द २०११ की जनगणनाके अनुसार मिजोरममें मात्र २.७५% हिन्दू हैं । २००१ में वहां ३.५५% हिन्दू थे; किन्तु बीते दस वर्षोंमें उनकी जनसंख्याका प्रतिशत घट गया है । इसीप्रकार लक्षद्वीपमें २००१ में ३.६६% हिन्दू थे जो २०११ में घटकर मात्र २.७७% रह गए हैं । उधर जम्मू-कश्मीरमें भी हिन्दुओंका प्रतिशत २९.६३ से घटकर २८.४४ रह गया है ।

पूर्वोत्तरके ही नागालैंड और मेघालयमें भी हिन्दू अल्पसंख्यक हैं । इन दोनों प्रदेशोंमें हिन्दुओंकी जनसंख्या क्रमश: ८.७५% और ११.५३% है । मणिपुरमें हिन्दुओंकी जनसंख्या ४१.३९% है जबकि २००१ में यह ४६.०१% था । इसीप्रकार अरुणाचल प्रदेशमें हिन्दुओंकी जनसंख्या ३४.६०% से घटकर २९.०४% रह गई है ।

पंजाबमें भी हिन्दुओंकी जनसंख्या (सिक्ख अतिरिक्त) ३८.४९% है । जिन राज्योंमें हिन्दू अल्पसंख्यक हैं उनमेंसे कई राज्योंमें उनकी जनसंख्या वृद्धिका मान भी बहुत अल्प है । नागालैंडमें तो २००१ से २०११ के मध्य हिन्दुओंकी वृद्धि नकारात्मक रही है । २००१ से २०११ के मध्य पूरे देशमें जहां हिन्दुओंकी जनसंख्यामें १६.८% वृद्धि हुई, वहीं केरलमें मात्र ४.९% और लक्षद्वीपमें ६.३% के मानसे ही हिन्दुओंकी संख्यामें वृद्धि हुई ।

हिन्दुओंकी जनसंख्या घटनेके कारण

देशमें हिन्दुओंकी जनसंख्या घटनेके कई  कारण हैं । जैसे सुविधाभोगी हिन्दू अब भौतिक दृष्टिकोणको दृष्टिगत रखते हुए परिवार सीमित रखनेपर ध्यान देता है, वहीं मुसलमान बहु विवाहकर अपनी जनसंख्या बढानेको अपना धार्मिक  कर्तव्य मानता है; इसलिए भी देशमें हिन्दुओंकी जनसंख्यामें न्यूनता आई है । भारतमें जनगणना प्रत्येक दस वर्षोंमें होती है । वर्ष २०११ में हुई जनगणनाके अनुसार हिन्दुओंकी जनसंख्या वृद्धिका मान (दर) १६.७६% रहा जबकि पूर्वमें इससे भी अधिक १९.९२% रहा था । अर्थात देशकी कुल जनसंख्यामें जुडनेवाले हिन्दुओंकी संख्यामें ३.१६% की गिरावट आई है । जबकि २०११ की जनगणनाके ही अनुसार भारतमें मुसलमानोंकी संख्या २४.६% के मानसे बढी है । स्पष्ट है कि भारतमें मुसलमानोंकी वृद्धि अब भी हिन्दुओंकी जनसंख्या वृद्धिके मानसे अधिक है । साथ ही धर्मान्तरण, ‘लव जिहाद’ और अवैध घुसपैठके कारण भी अहिन्दुओंकी संख्यामें वृद्धि हुई है और हिन्दुओंकी संख्या अपेक्षानुसार नहीं बढी है ।

हिन्दू जनसंख्यामें गिरावटके परिणाम

हिन्दू जनसंख्याका घटना केवल सामान्य घटना नहीं है; अपितु इतिहास इसका साक्षी है कि ‘हिन्दू घटा और देश बंटा’ । भारत जैसे उदार देशमें हिन्दू जनसंख्याके घटनेके दूरगामी परिणाम होते हैं । जिन क्षेत्रोंसे हिन्दू घटता है, वहां स्वाभाविक रूपसे अहिन्दुओंकी संख्या बढती है और कालान्तरमें वहां पृथकतावादके स्वर उठने लगते हैं । वे सभी राज्य या क्षेत्र जहां हिन्दुओंकी संख्या न्यून है, वे इस तथ्यकी पुष्टि करते हैं । हिन्दू अपनी परम्पराओं और अपने मनमें देशके प्रति रखे सम्मानके भावके कारण कभी भी राष्ट्र विरोधी कृत्य नहीं करता, जबकि अन्य पन्थियोंमें सामान्यतः यह भाव प्रबल नहीं होता है । राष्ट्रविरोधी शक्तियोंकी भी इन्हीं क्षेत्रोंमें सक्रियता अधिक देखी गई है । समग्र रूपसे हम कह सकते है कि हिन्दू जनसंख्याका घटना देशके लिए अखण्डताकी दृष्टिसे अत्यन्त घातक है और यह कथन पूर्वाग्रह नहीं; अपितु साक्षात सत्य है ।

घटती हिन्दू जनसंख्या केवल हिन्दुओंके लिए ही नहीं; अपितु सम्पूर्ण देशके लिए संकट है, यह हम पूर्वकालसे ही देखते आ रहे हैं । अतएव भावी आपात स्थितिसे निपटनेके लिए ठोस उपाय योजनाका क्रियान्वित करना अपरिहार्य हो गया है । जैसे हिन्दू अल्पसंख्यक राज्योंमें उनकी संख्या बढाने हेतु उन्हें विशेष सुविधाएं दी जाना चाहिए और अन्य प्रभावी उपाय जैसे समान नागरिक संहिता लागू किए जाना आदि किया जाना चाहिए अन्यथा अस्तित्वका संकट केवल हिन्दुओंके लिए ही नहीं; अपितु अन्य सभी मतावलम्बियोंके लिए भी उत्पन्न हो जाएगा; क्योंकि वे हिन्दुओंके साथ ही अधिक सुरक्षित रह सकते हैं ।



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