भ्रूण हत्या महापाप है, इसलिए ऐसा न करें !


जैसे आजकल पुत्र अपने माता-पिता व या पुत्रवधू अपने सास ससुरके साथ अयोग्य वर्तन करते हैं, वैसे ही मैंने अनेक माता-पिता या सास ससुरको भी अयोग्य आचरण करते हुए पाया है । कुछ घटनाएं तो मेरे समक्ष ही घटित हुई हैं और ये प्रसंग आपसे इसलिए साझाकर रही हूं जिससे आपको यह बता सकूं कि आज समाजके प्रत्येक घटकमें साधनाके अभावके कारण, उनकी वृत्तिका, तमोगुणका विकार, उनके आचरणमें स्पष्ट देखा जा सकता है । आज ऐसा ही एक प्रसंग आपसे साझा कर रही हूं । ईश्वर आज्ञा अनुरूप मैंने २०११ से २०१५ तक भारत व विश्वके कुछ देशोंमें धर्मयात्राकर धर्मप्रसार किया । इस मध्य देहलीके एक दम्पतिसे मेरा परिचय हुआ । वे हमारे एक साधकके सम्बन्धी थे । मैंने तीन-चार बार उनके भी क्षेत्रमें प्रवचन किया था । उनके घरमें पति-पत्नी, एक पुत्र और पुत्रवधू थे । देहलीमें धर्मयात्राके मध्य उनके घर भी मेरा रहना हुआ था । एक दिवस मैं उनके घरके पास सत्संग हेतु गई थी तो सोचा उनसे मिलते हुए जाती हूं । वह तो अच्छा हुआ कि जो साधक मेरे साथ थे उन्हें कुछ कार्य था और वे मुझे उनके घरके बाहर ही छोडकर कुछ समयके लिए चले गए अन्यथा उस दिवस अनर्थ हो जाता । उस दिवस मैं जैसे ही उनके घर पहुंची, उस घरकी स्त्री एवं उनकी बहू दोनों, कहीं जा रहे थे । मैंने उनसे पूछा, “आपलोग यदि कहीं जा रहे हैं तो मैं भी निकलती हूं !” इसपर उन्होंने कहा कि नहीं हम तो बस कुछ ही समयमें आ जाएंगे । आप बैठें और अल्पाहार करें !” मैंने पूछा, “आपलोग जा कहा रहे हैं ?” तो उन्होंने जो कहा वह सुनकर मैं हथप्रभ रह गई । उस स्त्रीने कहा, “मेरी बहू दो माहके गर्भसे है, उसका गर्भपात कराने जा रहे हैं !” मैंने आश्चर्यसे पूछा, “क्या कोई समस्या आ गई ?” उन्होंने कहा, “हां, मेरे घुटनेमें बहुत वेदना रहती है और अभी तो छह माह ही हुए हैं इनके विवाहको, मुझसे इनके बच्चेकी देखभाल नहीं होगी ! इसकी तो मां भी नहीं है और तो मुझे ही सब करना होगा; इसलिए सोचा अभी घरमें बच्चे नहीं चाहिए !” वे उत्तरांचलसे थे । मैंने सर्वप्रथम इस अनिष्टको रोकनेका सोचा; क्योंकि नव दम्पति अच्छेसे साधनाकर रहे थे और पूर्वमें वे दोनों मेरे पास आए ही इसलिए थे; क्योंकि वे मात्र तीन माहमें सम्बन्ध विच्छेद करना चाहते थे । उनके घर अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट था तो मैंने उन्हें साधना करने हेतु कहा था; क्योंकि उस जोडेके माध्यमसे एक उच्च कोटिका साधक जीव जन्म लेनेवाला था और इसलिए अनिष्ट शक्ति उनके सम्बन्धको तोडना चाहती थीं ! मैंने उनकी बहूसे पूछा कि क्या आप गर्भपात करवाना चाहती हैं तो उन्होंने कहा, “अब मेरी मांकी तो मृत्यु हो गई है, यह आप जानती ही हैं और यदि ये देखभाल नहीं कर पाएंगी तो मैं क्या करूंगी ? इसलिए ये जो कहेंगी मैं वही करूंगी ।” बहूकी ओरसे निश्चिंत होनेपर मैंने उनके बेटे और पतिसे भी पूछा । सबने कहा, “जो ये दोनों स्त्रियां चाहेंगी, वह हमें स्वीकार्य होगा ।”  मैंने उनकी साससे पूछा, “क्या आपके पहाड क्षेत्रमें भी ऐसा होता है तो उन्होंने कहा नहीं ऐसा तो नहीं होता है; किन्तु अब गर्भपात करवाना सामान्य बात है !”
 मैंने सूक्ष्मसे देखा तो एक साधक जीव उसके गर्भके आसपास मण्डरा रहा था । मैंने उनसे कहा, “भ्रूणहत्या महापाप है । इससे घरमें पितृदोष भी बढता है और यह तो आपके पुत्रकी प्रथम सन्तान होगी, इसकी हत्या करना बहुत बडा अपराध होगा और वह भी मात्र घुटनेमें वेदना रहती है, इसके कारण !” किसी प्रकार मैंने उन्हें गर्भपात न करानेके लिए उन्हें मना रही थी तो इसी मध्य उनका बेटा आकर कहता है, “हमारी दो पीढियोंमें बेटी नहीं है, आप यदि बता दें कि यह बेटी होगी तो हम इसे जन्म देंगे ।” मैं यह सुनकर पुनः आश्चर्यचकित हो गई; किन्तु उस साधक जीवके प्राण रक्षण हेतु मैंने झूठ बोला और कहा कि सौ प्रतिशत यह बेटी ही है आप इसे जन्म लेने दें ! वे मान गए । सम्पूर्ण गर्भकालमें मैंने उस पूरे परिवारसे साधना करवाई और उनके घर एक सुन्दर पुत्रने जन्म लिया । वे दोनों पति-पत्नी एक माह उपरान्त उसे लेकर देहलीके एक सत्संगमें आए थे । मैंने उनसे यूं ही कहा, “यह पुत्र हमें दे दें ! मैं इसे संन्यासी बनाउंगी और यह धर्मप्रसारमें मेरी सहायता करेगा ।” वे दोनों हंसने लगे और बोले, “नहीं नहीं, इतना सुन्दर और प्यारा बच्चा आपको हम नहीं दे सकते हैं, इतना बडा हृदय नहीं है हमारा, इसने हमारे जीवनमें आनन्द घोल दिया है !” मैंने कहा, “मां क्या इसकी देखभाल करती हैं ?” तो उन्होंने कहा, “ये तो मांकी आंखोंका तारा है, पूरा समय मां इसे गोदमें लिए रहती हैं !”
  ध्यान रहे भ्रूण हत्या महापाप है, इसलिए ऐसा न करें और आजकी सासें ऐसा करवा सकती हैं, यह तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी; किन्तु जो कल्पनासे परे घटित हो उसे ही सम्भवतः कलियुग कहते हैं ! – (पू.) तनुजा ठाकुर


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