बिच्छू और संत


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सभी जीव प्रकृति प्रदत्त गुणोंका अनुसरण करते हैं । सभी प्राणी गुण अनरूप, स्वभावके अनुसार वर्तन करते हैं । इस संदर्भमें प्रस्तुत है एक प्रेरक कथा :

एक ज्ञानी और तपस्वी सन्त थे । दूसरोंके दुख दूर करनेमें उन्हें परम आनन्द प्राप्त होता था । एक बार वे सरोवरके किनारे ध्यानमें बैठने जा रहे थे । तभी उन्होंने देखा एक बिच्छू पानीमें डूब रहा है। वे तुरन्त ही उसे बचानेके लिए दौड पडे । उन्होंने जैसे ही बिच्छूको पानीसे निकालनेके लिए उठाया, उसने स्वामीजीको डंक मारना आरम्भ कर दिया और वह स्वामीजीके हाथोंसे छूटकर, पुन: पानीमें गिर गया । स्वामीजीने पुनः प्रयत्न किया; परंतु वे जैसे ही उसे उठाते, वह डंक मारने लगता । ऐसा बहुत देरतक चलता रहा; परन्तु सन्तने भी हार नहीं मानी और अन्तत: उन्होंने बिच्छूके प्राण बचा लिए और उसे पानीसे बाहर निकाल लिया । वहीं एक अन्य व्यक्ति इस पूरी घटनाको ध्यानसे देख रहा था । जब सन्त सरोवरसे बाहर आए, तब उस व्यक्तिने पूछा – “स्वामीजी, मैंने देखा आपने किसप्रकार हठी और विषैले बिच्छूके प्राण बचाए । बिच्छूको बचानेके लिए अपने प्राण खतरेमें डाल दिए । जब वह बार-बार डंक मार रहा था तो भी आपने उसे क्यों बचाया ?’’  इस प्रश्नको सुनकर स्वामीजी मुस्काए और तत्पश्चात बोले, “बिच्छूका स्वभाव है डंक मारना और मनुष्यका स्वभाव है, दूसरोंकी सहायता करना” । जब बिच्छू नासमझ जीव होते हुए भी अपना डंक मारनेका स्वभाव अन्त समयतक नहीं छोडता तो मैं मनुष्य होते हुए दूसरोंकी सहायता करनेका अपना स्वभाव कैसे छोड देता ? बिच्छूके डंक मारनेसे मुझे असहनीय पीडा हो रही है; परन्तु उसके प्राण बचाकर मुझे आनन्द भी प्राप्त हुआ ।’’

परमार्थ करते समय कष्टको सहन करते हुए जो उस कर्ममें सातत्य बनाए रखे, ऐसे परोपकारी जीवके कारण ही यह पृथ्वी आज भी इतने पापियोंका बोझ सहते हुए अपने मूल स्थानपर टिकी हुई है !



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