कुछ दिवस पूर्व एक कर्मकाण्डमें अच्छी पकड रखनेवाले पुरोहितसे मेरी भेंट हुई । वे किसी कार्यक्रममें यज्ञका संचालन कर रहे थे । उस यज्ञमें जिसप्रकारसे वे सब कुछ लोगोंको समझाते हुए करवा रहे थे, उससे मुझे भी बहुत आनंद हुआ । यज्ञकी समाप्तिके पश्चात मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अपने पुत्रोंको भी इसी कार्यमें प्रशिक्षण दिया है तो उनके उत्तर सुनकर मुझे थोडा दुःख हुआ ! उन्होंने कहा, “मेरा पुत्र एक बडी प्रतिष्ठानमें प्रबंधकके पदपर कार्यरत है, उसे ७५००० रुपए मासिक वेतन मिलता है, पुरोहिताईमें इतने पैसे कहां मिलते हैं ? इसलिए मैंने उन्हें इस क्षेत्रमें नहीं आने दिया ।”
मनुस्मृतिमें लिखा है ब्राह्मणकी जीवन तप और त्यागके लिए ही बना है । वस्तुत: यह कलियुगका चरम काल है और धर्मग्लानि भी अपनी पराकाष्टापर है ऐसी स्थितिमें सभी धर्मनिष्ठोंको धैर्य रखकर अपना धर्मपालन करना चाहिए । एक बार हिन्दू राष्ट्र आ गया तो ब्राह्मणोंकी स्थितिमें स्वतः ही सुधार आ जाएगी किन्तु तबतक सभीको ईश्वरनिष्ठ होकर अपनी अपने-अपने धर्म कर्तव्योंका पालन करना होगा ! मुझे ज्ञात है आजका हिन्दू धर्म कार्य हेतु त्याग नहीं करना चाहता है; किन्तु यदि ऐसे कालमें धर्मनिष्ठ अपनी अगली पीढीको धर्म नहीं सिखायेंगे तो आगे क्या होगा इसपर अवश्य ही विचार करें । और पुरोहित वर्गको एक विशेष बात बता दें कि आपके जैसी उपजीविका ईश्वरने किसीको नहीं दी है, यदि आप इस धर्म कर्तव्यका पालन पूर्ण निष्ठासे करते हैं इसमें तो आपकी सहज साधना होती है, इससे अधिक सौभाग्यकी बात और क्या हो सकती है ? अतः न इसका त्याग करें और न ही अपनी अगली पीढीसे कराएं । मात्र कुछ वर्षोंकी बात है एक बार धर्म संस्थापना हो जाए तो आपकी प्रतिष्ठा पुनः समाजमें स्थापित हो जाएगी । कर्मकाण्ड तो हिन्दू धर्मकी रीढकी हड्डी है और उसके संरक्षक आप जैसे लोग हैं; अतः इसका रक्षण करना आपका धर्म है । आपके त्यागको आजके पाश्चात्य जो हिन्दू धर्म अपनाते हैं वे भी नमन करते हैं !
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