बुद्धि और विवेकमें भेद क्या होता है ?


बुद्धि सात्त्विक, राजसिक और तामसिक हो सकती है | विवेक सदैव ही सात्त्विक होता है और विवेकी मनुष्य कभी भी कोई अधर्मी निर्णय नहीं लेता है | पूर्वकालमें हिन्दुओंद्वारा धर्माचरण एवं साधना करनेके कारण, सभीके विवेक जागृत हुआ करता था;  इसलिए सनातन संस्कृति सर्वत्र फल-फूल रही थी और लोग आध्यत्मिक प्रगति कर रहे थे ! विवेकका अर्थ क्या होता है इसे समझ संक्षेपमें समझ लेते हैं !
*जो जीव साधनारत होता है वह अन्तर्मुखी होता है, उसका विवेक जागृत होता है | अंतर्मुखी जीवका अहं न्यून होता है वह अपने हीन गुणोंको अर्थात षड्रिपुओंको एवं अहंको दूर करने हेतु सतत प्रयत्नशील रहता है !
* जो जीव धर्मनिष्ठ होता है उसकी सूक्ष्म प्रज्ञा शक्ति जागृत होती है, वह विवेकशील होता है, उसे सहज ही सूक्ष्म समझमें आता है | हमारे धर्मग्रन्थ इसी विवेकका प्रमाण है !
* जो धर्म और सत्यके मार्गपर चलता है और उसका अनुमोदन करता है एवं जो भावनाप्रधान नहीं होता है वह विवेकशील होता है | आद्य गुरु शंकाराचार्य विवेकी थी; इसलिए सात वर्षकी आयुमें अपनी विधवा माताके एकलौती सन्तान होते हुए भी संन्यासका निर्णय लेकर उन्हें अपनी इच्छाशक्ति और भक्तिके बलपर संन्यास लेने हेतु बाध्य किया ! उन्होंने यह नहीं सोचा मेरे जानेके पश्चात मेरी विधवा मांका क्या होगा ? उन्हें धर्म और ईश्वरपर पूर्ण विश्वास था कि संन्यासका मार्ग ही उनके और उनकी माताजीके लिए कल्याणका मार्ग है ! विवेकी मनुष्य भावनाप्रधान नहीं होता है यह उसका एक उदाहरण है !
*जिसे धर्म, ईश्वर और गुरुपर निर्विकल्प आस्था होती है, वह विवेकशील होता है, आज भी इतने आक्रमणके पश्चात भी हिन्दू धर्म ऐसे ही विवेकी लोगोंके कारण ही जीवित है !
* अनेक धर्मनिष्ठोंने अपने प्राण त्याग दिया; किन्तु धर्मका परित्याग कितने भी प्रलोभन या यातना देनेपर भी नहीं त्यागे, वे विवेकी मनुष्य थे |
* जो विपरीतसे विपरीत परिथितिमें भी गुरु, ईश्वर और धर्मका न तो अपमान होने देता है और न ही वह स्वयं करता है, वह विवेकी होता है ! इसके भी अनेक उदाहरण हमारे इतिहासमें है |
* विवेकी मनुष्यको धर्म और साधनाकी बातें बार-बार नहीं बतानी पडती है वह एक बारमें उसे समझ जाता है !
    धर्मशिक्षणका अभाव, तमोगुणी आचरण, आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्योंका अन्धा अनुकरण, इन सबने आजके मात्र शिक्षितके ही नहीं अपितु उच्च शिक्षित हिन्दुओंका भी विवेक नष्ट कर दिया है इसलिए आजके अधिकांश पढे-लिखे हिन्दुओंद्वारा न धर्मपालन हेतु कष्ट उठानेकी वृत्ति होती है और न ही साधना हेतु त्याग करनेकी प्रवृत्ति होती है  !


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution