विश्वके सभी धर्मोंके व्यक्तियोंकी आध्यात्मिक उन्नतिके लिए हिन्दू धर्मके अतिरिक्त अन्य पर्याय नहीं, यह सत्य सर्व व्यक्तियोंके ध्यानमें आए इसलिए हिन्दू धर्म प्रसार एवं सभीको धर्म शिक्षण देना आवश्यक है । – पूज्य डॉ. वसंत बाळाजी आठवले
गुरुपादुकाका मूल्य प्राणोंसे भी अधिक है ! एक भक्तको गुरुके दर्शन नहीं हुए | दूसरा भक्त गुरुसे मिले, तब गुरुके उनके पुत्रके विवाहके निमित्त उन्हें पादुका दी | यह देखनेपर पहले भक्तने कहा “तुम मुझे यह गुरु पादुका दे दो मैं तुम्हें अपनी सम्पूर्ण जीवनमें अर्जित संपत्ति देता हूं” | दूसरे भक्तने उसे पादुका दे […]
संत तुलसी दास रचित रामचरित मानसके बालकांडसे उद्धृत गुरु वंदना * बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥ भावार्थ : मैं उन श्रीगुरुके चरणकमलकी वंदना करता हूं, जो कृपाके समुद्र और नर रूपमें श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकारका नाश करनेके […]
गुरुकी परम आवश्यकता होती है । उपनिषद कहता है कि मात्र गुरु ही मनुष्यको बुद्धि और इन्द्रियोंके भ्रम रूपी वनसे बाहर निकाल सकता है; अतः गुरु होना ही चाहिए । – रमण महर्षि
जिसका मन संसारके किसी वस्तुसे अस्थिर नहीं होता वे परम तत्त्वको प्राप्त कर चुके होते हैं ! – स्वामी विवेकानंद
अधिकांश मानव थोडे-अधिक प्रमाणमें दु:खी है क्योंकि उन्हें अपने आत्मस्वरूपका ज्ञान नहीं | खरा सुख आत्मज्ञानमें निहित है | – रमण महर्षि
जिसने इंद्रियोंके मायाजालको अपने वैराग्यकी तलवारसे काटकर पृथक कर दिया हो वह ही इस भवसागरसे निर्विघ्न पार जा सकता है | – आदिगुरु शंकराचार्य