गुरु, शिष्य एवं साधक

गुरुभक्ति ऐसे करें !


जब कोई शिष्य सधाना करने लगता है और उसकी गुरुके प्रति भक्ति बढ्ने लगती है तब गुरु शिष्य के अंदर धैर्य, भक्ति, प्रेम, तडप, नम्रता और शरणागति जैसे दिव्य गुणोंको निखारनेके लिए उसे उसे अत्यंत कठोर परिस्थितिमें डाल देते है और यदि शिष्य इन दिव्य गुणोंके बलपर यशस्वी हो जाता है तो गुरु अपनी सम्पूर्ण […]

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गुरुकी अवज्ञाका परिणाम


गुरुकी अवज्ञासे कठोरतम नरक ‘रौरव’ नरककी प्राप्ति होती है , एकलव्यकी गुरुभक्ति यद्यपि श्रेष्ठ थी; किन्तु उससे गुरु अवज्ञा हुई थी और गुरुके मना करनेपर भी उसने धनुर्विद्या सीख ली; अतः गुरु द्रोणाचार्यने उसे गुरु अवज्ञाके पापसे बचनेके लिए उसका अंगूठा मांगकर उसे नरक यातना भोगनेसे बचा लिया; किन्तु इस तथ्यसे अनभिज्ञ  कुछ मुर्ख कहते […]

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कोई भी खरा शिष्य गुरु बननेकी इच्छासे अपने सद्गुरुके पास नहीं जाता


कोई भी खरा शिष्य गुरु बननेकी इच्छासे अपने सद्गुरुके पास नहीं जाता; परंतु प्रत्येक सतशिष्यकी परिणति गुरुमें हो जाती है यह एक चिरंतन सत्य है -तनुजा ठाकुर  

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शास्त्र वचन


यस्य   प्रसादादहमेव    सर्वं   मय्येव     सर्वं     परिकल्पितं   च । इत्थं  विजानामि   सदात्मरूपं  तस्यांघ्रिपद्मं  प्रणतोऽस्मि   नित्यम् ।। अर्थ :  जिनकी कृपासे यह ज्ञान होता है कि हम ही सबमें हैं और सब हममें समाहित हैं; ऐसे आत्मज्ञानी श्रीगुरुके श्रीचरणोंमें नित्य नमन और पूजन करता हूं।

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जिस शिष्य ने गुरुकी आज्ञाका पालन किया उसका उद्धार निश्चित होता है


गुरु आज्ञापालन शिष्यके सभी गुणोंका राजा होता है, परंतु गुरुभक्ति करना और आज्ञापालन करना इतना सरल भी नहीं होता, परंतु जिस शिष्य ने गुरुकी आज्ञाका पालन किया उसका उद्धार निश्चित होता है -तनुजा ठाकुर

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सद्गुरुका सामर्थ्य


सद्गुरुका सामर्थ्य इतना होता है कि शिष्यकी प्रगति मात्र उनके मनमें उत्पन्न ऐसे ही विचारसे हो जाता है और इसे ही गुरुकी संकल्प शक्ति कहते हैं – तनुजा ठाकुर  

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आईए गुरु-शिष्य परंपराकी पुनर्स्थापना करनेका लें संकलप


जबसे इस देशमें गुरु-शिष्य परंपराका ह्रास हुआ, यह सोनेकी चिडिया कहलानेवाली भारत भूमि विनाशकी ओर अग्रसर होने लगी | इस गुरु-पूर्णिमामें गुरु-शिष्य परंपराकी पुनर्स्थापना करनेका संकलप ले, निर्गुण और सगुण गुरुके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें |-तनुजा ठाकुर

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गुरु देह नहीं एक तत्त्व है


गुरु देह नहीं एक तत्त्व है एवं वह तत्त्व भावानुरूप साधकोंका सतत स्थूल और सूक्ष्म मार्गदर्शन करनेमें सक्षम है  इसकी प्रचीति देनेवाली एक और अनुभूति  : वर्ष २००३ तक मैं नियमित सैर, योगासन एवं कराटेका सुबह-सुबह अभ्यास किया करती थी | वर्ष २००४ आते आते सूक्ष्म युद्ध की तीव्रता बढ गयी और मेरी प्राणशक्ति अल्प […]

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एक आदर्श शिष्य ही आदर्श गुरु बन सकता है !


अनेक साधक स्वयं गुरु बननेको उतावले रहते हैं ! ध्यान रहे, एक आदर्श शिष्य ही आदर्श गुरु बन सकता है ! अतः ऐसे साधक, जिन्हें गुरु बननेमें विशेष रुचि है वे अपने भीतर शिष्यके दिव्य गुणोंको आत्मसातकर किसी खरे संतकी सेवा करे तभी वे गुरु पदको प्राप्त कर पाएंगे ! अन्यथा गुरु बननेका स्वप्न, स्वप्न […]

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गुरु-शिष्यका प्रेम


गुरु-शिष्यका प्रेम निष्काम, पवित्र और अपेक्षारहित होता है | वस्तुतः शिष्यको तो अपनी आध्यात्मिक प्रगतिकी भी अपेक्षा होती है और सद्गुरु तो प्रेमकी प्रतिमूर्ति होते हैं और शिष्यके प्रति उनका प्रेम पूर्णत: निरपेक्ष होता है एवं मात्र शिष्यके कल्याणपर केन्द्रित रहता है | – तनुजा ठाकुर

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