अध्यात्म एवं साधना

अहंकारियोंको ईश्वरसे एकरूप हुए संतोंमें भी अहं दिखता है !


अहंकारियोंको ईश्वरसे एकरूप हुए संतोंमें भी अहं दिखता है ! वस्तुत : संत तो एक स्वच्छ दर्पण समान होते हैं अहंकारियोंको उसमें अपने अहंकी छवि देख तिलमिलाहट होती है – तनुजा ठाकुर

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धर्मशिक्षणके अभावमें हमारी व्यष्टि अधोगति हो गयी है


धर्मशिक्षणके अभावमें, मैकालेकी आसुरी शिक्षणके प्रभावमें एवं पाश्चात्य संस्कृतिके अंधा अनुकरण करनेके कारण आज हम व्यष्टि स्तरके धर्म पालन नहीं करते फलस्वरूप हमारी व्यष्टि अधोगति हो गयी है और समाजमें व्याप्त धर्मग्लानिके एवं निधर्मी राष्ट्र प्रणालीके कारण समष्टि स्तरका पतन आरंभ हो गया है । ऐसेमें समाजको देवता एवं प्रकृतिका कोप प्राकृतिक आपदाके रूपमें सहन तो […]

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आध्यात्मिक दृष्टिकोणके अभावमें हम मायाके पद-प्रतिष्ठा, धन-दौलतमें फंसे रहते हैं


आध्यात्मिक दृष्टिकोणके अभावमें हम मायाके पद-प्रतिष्ठा, धन-दौलतमें फंसे रहते हैं, इस विश्वमें प्रत्येक वर्ष अनेक लोग मायाके ऊंचे पदको प्राप्त करते हैं परन्तु चिरंतन यश तो मात्र खरे भक्तों को और संतोंको प्राप्त होता है, आकाश में ध्रुव तारा इस ध्रुव सत्यका सदैव संदेश देता है अतः यश के लिए इच्छित जिज्ञासुने पहले साधक,तत्पश्चात शिष्य और […]

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खरे संतोंके पास तो हम नग्न समान होते हैं उन्हें हमारा अगला-पिछला सर्वकर्म ज्ञात होता है |


कुछ व्यक्ति अनेक संतोंसे संपर्क ( जिसे अङ्ग्रेज़ी में public relation maintain करना कहते हैं ) बनाए रखते हैं और अपनी इस कृतिकी डींगें सर्वत्र हांंकते फिरते हैं ! खरे संतोंके पास तो हम नग्न समान होते हैं उन्हें हमारा अगला-पिछला सर्वकर्म ज्ञात होता है , परंतु ये तथाकथित भक्त अपनी स्वार्थसिद्धि हेतु भिन्न-भिन्न संतोंके […]

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गुरुकृपासे सब संभव है !


अनेक व्यक्तिको लगता है है कि मेरी हिन्दी और संस्कृत भाषामें मेरी अच्छी पकड है ! परंतु सच तो यह है कि मैंने संस्कृत मात्र दसवीं कक्षा तक ही पढी है और मैं अङ्ग्रेज़ी माध्यममें पढी हूं अतः हिन्दी भी मात्र एक विषय अंतर्गत ही पढी थी और वह भी बारहवीं कक्षा तक ही । […]

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साधनामें अखंडता आवश्यक है !


सर्वप्रथम गुरुप्राप्ति हेतु साधना करना पडता है , गुरुप्राप्ति पश्चात् गुरुकृपा पाने हेतु साधना करना पडता है और गुरुकृपा पानेके पश्चात गुरुकृपाका प्रवाह अखंडतासे बनी रहे, इस हेतु साधनामें अखंडता आवश्यक है ! -तनुजा ठाकुर

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संत हमारे मनोभावको कैसे पढ लेते हैं ?


उच्च कोटिके संत निर्विचार अवस्थामें होते हैं । जिस प्रकार स्वच्छ आईनेमें हमारा प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखता है वैसे ही संतोंके निर्विकार मनमें हमारे विचार प्रतिबिंबित हो जाते हैं । सद्गुरु विश्वमन एवं विश्वबुद्धिसे अखंड जुड़े रहते हैं – तनुजा ठाकुर  

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साधनाका अर्थ है तप


साधनाका अर्थ है तप, जिस तपसे हमारे मन, बुद्धि एवं अहंको कष्ट (ठेस) नहीं पहुंचती है, वह तप, तप कैसा  – तनुजा ठाकुर

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शब्दातीत ब्रहमकी अनुभूतिके पश्चात् शब्दोंमें रुचिका न होना


एक बार शब्दातीत ब्रह्मकी (सत् चित्त आनंद )  अनुभूति हो जाये तो शब्दके स्तरके अध्यात्मका कोई महत्व नहीं रह जाता ! तथापि संत अपने गुरु या ईश्वरको कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु शब्दके स्तरपर उतरकर समाज कल्याण हेतु लोगोंका मार्गदर्शन करते हैं और यह प्रक्रिया संतोंके लिए आनंददायक नहीं होता परन्तु उनके स्तरपर यही त्याग है […]

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साधना पथपर अग्रसर साधक एकान्तिक जीवन क्यों जीने लगता है ?


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है; परन्तु साधना पथपर अग्रसर साधक एकान्तिक जीवन क्यों जीने लगता है या जीना चाहता है ? ६०% आध्यात्मिक स्तरके नीचेवाले व्यक्ति/साधकके विषय-वासनाके संस्कार तीव्र होते हैं और उनकी पूर्ति हेतु सामाजिक जीवनकी आवश्यकता होती है । ६०% आध्यात्मिक स्तरके ऊपरके साधककी मनोवृत्ति अंतर्मुखी होनेके कारण एवं विषय-वासनाके संस्कार कम होनेके […]

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