अध्यात्म एवं साधना

साधना अल्प आयुमें क्यों आरम्भ करनी चाहिए ?


चित्तपर अनेक जन्मोंके असंख्य संस्कारके कारण ही मन अशान्त रहता है | जैसे-जैसे आयु बढती है, पूर्वके संस्कारोंके केन्द्र और पुष्ट हो जाते हैं एवं नए संस्कार निर्माण होते हैं; इसलिए यदि एक पांचवीं कक्षाका विद्यार्थी, जब नामजप करने बैठेगा तो उसके मनमें, अपने माता-पिता, भाई-बहन, क्रीडा(खेल), मित्र और विद्यालयके ही विचार आएंगे; परंतु एक […]

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प्रार्थनाके चरण


प्रार्थना, आरंभिक अवस्थामें शब्दजन्य होता है और साधनाके प्रगत अवस्थामें वह शब्दातीत हो जाता है अर्थात् मात्र शरणागत भाव प्रार्थनाके समय रह जाता है ! – तनुजा ठाकुर

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विषयासक्ति विहीन जीवनमुक्त जीवात्मायें सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमें करते हैं भ्रमण !


विषयासक्ति विहीन जीवनमुक्त जीवात्मायें स्वच्छंद पंछी समान सम्पूर्ण ब्रह्मांडमें स्थूल और सूक्ष्म स्तरपर विचरण करते हैं;  परंतु उनके अभिज्ञान (पहचान) एवं दर्शन हेतु साधनाका ठोस आधार चाहिए ! -तनुजा ठाकुर

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हम किसी भी मार्गसे साधना करें, होता वह हठयोग ही है !


चाहे हम किसी भी योगमार्गसे साधना करें वह अंततः हठयोग ही होता है, जीवात्माको मायासे खींच कर ब्रह्मतक ले जाना, अर्थात् इस मायावी सृष्टिके गुरुत्त्वाकर्षणके विरुद्ध जाते हुए उस पुरुष तत्त्वकी ओर मार्गक्रमण करना; और प्रकृतिके विरुद्ध जाना हठयोग ही तो है | मात्र जब जीवको उस सत-चित-आनंदकी प्रचीति होने लग जाती है, तब प्रकृतिका […]

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सम्पूर्ण सृष्टि एक विशाल कर्मक्षेत्र है !


सम्पूर्ण सृष्टि एक विशाल कर्मक्षेत्र है | चींटीसे लेकर मनष्यतक सभी इस कर्मभूमिमें प्रकृति प्रदत्त गुण अनुरूप क्रियाशील रहते हैं ! अर्थात् इस सृष्टिमें अकर्मण्य कोई नहीं |   – तनुजा ठाकुर

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किसीको साधना पथसे च्युतकर, उसे पुनः मायामें ले जाना भी पाप है, यह ध्यान रहे !


देहलीके एक व्यक्ति ‘उपासना’के सेवाकेन्द्रमें आए थे, वे सेवाकेन्द्रमें सेवारत एक युवा साधकको कहने लगे कि मैं आपकी चाकरी (नौकरी) लगवा देता हूं, आप वह करें ! उन साधकने निर्णय लिया है कि वे कुछ समय पूर्ण समय साधना करेंगे; परन्तु वे आगंतुक उन्हें बार-बार बोल रहे थे कि आप चाकरी करें और साथमें साधना […]

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अध्यात्मविदके चैतन्यसे जिज्ञासु और साधक स्वतः ही हो जाते हैं आकृष्ट !


जैसे पुष्पके सुगन्धसे भौंरे स्वतः ही आकृष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार अध्यात्मविदके चैतन्यसे उनके आध्यात्मिक स्तर अनुरूप, सम्पूर्ण ब्रह्माण्डके जिज्ञासु और साधक स्वतः ही आकृष्ट हो जाते हैं ! – तनुजा ठाकुर

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अन्याय करनेवाला और अन्याय सहन करनेवाला दोनों समान रूपसे होते हैं पापी !


अन्याय करनेवाला और अन्याय सहन कर उसका विरोध न करनेवाला, दोनों समान रूपसे पापी होते हैं !-तनुजा ठाकुर    

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धर्मद्रोह करनेवाले हिंदुओंपर क्या कभी देवताकी कृपा संभव है ?


धर्मशिक्षणके अभावमें सार्वजनिक धार्मिक उत्सवोंमें पूजा मंडपों हेतु विशाल मूर्ति बनाना, चिकनी मिट्टीके स्थानपर भिन्न पदार्थ जो देवता तत्त्वको मूर्तिकी ओर आकृष्ट नहीं कर सकते हैं, उनसे मूर्ति बनाना, रात्रिके समय मूर्तिके संरक्षणकी सेवा करते समय द्युत क्रिया (जुआ खेलना) कर समय व्यतीत करना, विसर्जन करते समय मद्यपान कर भद्दे चित्रपटके गीतोंपर अश्लील अभिव्यक्ति कर […]

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एक बार अध्यात्ममें जो आत्मसात कर लिया उसे पुनः नहीं अभ्यास करना पडता है


कल पटनामें एक जिज्ञासुसे मिली वे कहने लगे “मैं आपके लेख तीन-चार बार पढता हूं, तभी पूर्ण रूपसे मुझे समझमें आता है |” मैंने कहा, “व्यवहारमें एक विषयमें स्नातककी पदवी लेने हेतु दस वर्ष पहलीसे दसवीं कक्षा विद्यालयमें सीखना पडता है और उसके पश्चात महाविद्यालय में पांच वर्ष पढनेके पश्चात् मायाके एक विषयमें स्नातककी पदवी […]

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