कबीरदासजीने कहा है, ईश्वर तो चीटींके पांवमें लगे घुंघरुकी भी आवाज सुन सकते हैं; परंतु कुछ हिन्दु मंदिरोंमें जाकर घंटेको ऐसे बजाते हैं जैसे भगवान बहरे हों ! इस कारण वहां जितने भी अन्य भक्त होते हैं जिसमें कोई नामजप कर रहा होता है, तो कोई ध्यान, उन सबकी साधनामें विघ्न पडता है इस प्रकारके […]
पिछले कुछ वर्षोंसे आश्रममें रहनेका सौभाग्य ईश्वरीय कृपासे प्राप्त हुआ है और मैंने पाया है कि आश्रममें आनेवाली साधिकाओंको अनेक बार सामान्य बातें, जो आश्रममें ध्यान रखना चाहिए, वह ज्ञात नहीं होता, इसका भी कारण धर्मशिक्षणका अभाव है; अतः आज यह लेख प्रस्तुत करनेकी आवश्यकता जान पडी ! पुरुष साधकोंके बारेमें भी आवश्यक तथ्य शीघ्र […]
आजकल छोटे-छोटे शहरों में भी पृरुष (विशेषकर दुकानदार )स्त्रीयो को MADAM कह कर संबोधित करते हैं क्यों दीदी , चाची , मासी, बोलने की अपेक्षा MADAM बोलने से परस्त्री को पूजिता की अपेक्षा भोग्या सरलता से समझा जा सकता है !!-तनुजा ठाकुर
मंदिर शब्दका संस्कृत भाषामें अर्थ है “देवालय”, वह जो देवताओंका आलय (घर) है | हमारे सभी मंदिर वस्तुतः धर्मशिक्षणके केंद्र थे, किन्तु आज जहां मुसलमान मस्जिदमें कुरान पढाते हैं, ईसाई गिरिजाघरमें “बाईबल” पढ़ाते हैं, वहीं मात्र मंदिर ही केवल कर्मकांडी-प्रथाओंके केंद्र बनकर रह गए हैं, जैसे धूप-दीप जलाना, गंध-पुष्प एवं नैवेद्य अर्पित करना इत्यादि | हिन्दु […]
घरमें काले रंगके वस्त्रका प्रयोग, यथासंभव न करें, सनातन धर्ममें काले रंगके वस्त्रको शनि-दोष निवारण हेतु, या मकर संक्रांति के दिन पहननेके अलावा उस वस्त्रका प्रयोग साधारण व्यक्तिके लिए निषेध किया गया है | एक पंथ की स्त्रीयाँ काले रंग का वस्त्र अत्यधिक पहनती हैं उस पंथ में आज सर्वाधिक अराजकता फैलने वाले पैदा हो […]
आजकलके डियो और तेज सुगंधी अनिष्ट शक्तियोंको आकृष्ट करनेकी प्रचंड क्षमता रखते है उन्हें लगाना पूर्णत: टालना चाहिए यदि लगाना ही हो तो पूजामें देवताको अर्पण करनेवाले फूलोंसे बने या नैसर्गिक पदार्थसे बने इत्र लगाना चाहिए |-तनुजा ठाकुर
कुछ व्यक्ति मेरे लेखोंको पढनेके पश्चात पूछते हैं कि आपने अनेक बार लिखा है कि अपने जीवन प्रणालीको सात्विक रखें, जीवन प्रणालीको सात्त्विक कैसे बनाएं इस विषयमें हमारा मार्गदर्शन करें | अतः इस लेखकी शृंगखलामें कुछ ऐसे ही प्रयासोंके बारेमें जानेगे | आप चाहें तो इन्हें साधनाके साथ अपने जीवनमें उतार सकते हैं | सात्त्विक […]
धर्मके पतन होनेपर धर्म स्थल नष्ट हो जाएँगे और धर्म स्थल नष्ट हो जानेपर धर्मस्थलके धन भी नष्ट हो जाएंगे ! इस कटु सत्यसे मुंह छुपाता है हमारा यह हिन्दू समाज ! धर्मको बचाने हेतु धर्मशिक्षण देना परम आवश्यक हैं ! मात्र धर्मशिक्षणसे ही धर्माभिमान एवं धर्मरक्षण संभव है ! प्रत्येक मंदिरमें योग्य व्यक्ति या […]
जितना धन हमारे देवस्थानोंमें है यदि उनका सही सदुपयोग किया जाए तो भारत के ९५ करोड हिन्दुओंको धर्मशिक्षण अत्यंत सहजतासे मिल सकता है, प्रत्येक ग्राममें एक संस्कृत विद्यालय खुल सकता है, एक गौशाला खुल सकती है, एक गुरुकुल हो सकता है | ऐसा करनेसे वैदिक संस्कृतिका पोषण होगा, हिन्दुओंमें धर्माभिमान जागृत होगा और धर्माभिमानी, जागृत […]
१. पद और प्रतिष्ठा जन्म अनुसार नहीं कर्म अनुसार मिलता था | २. जिसका जितना अधिक अधिक त्याग और धर्माचरण को कृति में लाने के प्रयास होते थे , उसे समाज में उतना ही उच्च स्थान प्राप्त होता था | ३. दंड का विधान भी उसी प्रकार था जिसका वर्ण जितना ऊंचा उसे उसके चूक […]