अगस्त १, २०१८
दिल्ली उच्च न्यायालयने निजी चिकित्सालयोंमें परिचारिकाओंकी (नर्सों) स्थितिको लेकर एक जनहित याचिकापर सुनवाईके मध्य आज कहा कि शिक्षा और चिकित्सा, धन ऐंठने वाले व्यापार बन गए हैं । कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकरकी पीठने केन्द्रको अधिसूचना देकर याचिकापर अपना मनोभाव स्पष्ट करनेको कहा है । जनहित याचिकामें दावा किया गया है कि उच्चतम न्यायालयद्वारा परिचारिकाओंके (नर्सोंके) अधिकारोंकी रक्षाको लेकर दिशा-निर्देश दिए जानेके पश्चात भी निजी चिकित्सा संस्थानोंमें परिचारिकाओंकी स्थितिमें कोई सुधार नहीं हुआ है ।
केन्द्रकी ओरसे अधिवक्ता मानिक डोगराने न्यायालयको बताया कि परिचारिकाओंके वेतन और कार्यसे सम्बन्धित स्थितियोंके बारेमें दिशा-निर्देश निर्धारित किए जा चुके हैं और उन्हें लागू करना प्रत्येक राज्यका उत्तरदायित्व है । पीठने कहा कि याचिकासे परिचारिकाओंके शोषणका ज्ञान होता है । उसने कहा कि अब शिक्षा और चिकित्सा लाभके लिए व्यापार मात्र बन चुके हैं । पीठ इसी प्रकारकी एक याचिकाके साथ इस ‘पीआईएल’पर भी आठ अक्तूबरको आगे की सुनवाई करेगी । अधिवक्ता रोमी चाकोकी ओर से प्रविष्ट याचिकामें दावा किया गया है कि निजी चिकित्सा प्रतिष्ठानोंमें परिचारिकाएं अल्प वेतनपर कार्य कर रही हैं और अमानवीय परिस्थितियोंमें रह रही हैं।
स्रोत : लाइव हिन्दुस्तान
Leave a Reply