दिसम्बर १९, २०१८
गंगाकी स्वच्छताकी अन्तिम सीमा २०२० की है, परन्तु कूडेका अम्बार समाप्त ही नहीं हुआ है ! अभी तक गंगाकी स्वच्छतामें जो धन व्यय हुआ हैं, वह केवल ‘सीवेज-ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर’को तैयार करनेमें हुआ हैं । अभी तक ‘नमामि गंगे परियोजना’में व्यय किए गए कुल राशिमेंसे (४,८०० कोटि) ३७०० कोटि रुपये केवल ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ तैयार करनेमें लगाए गए हैं और गंगाके लिए २०,००० कोटिका धन आवण्टित किया गया था । यह १४ दिसम्बर, २०१८ को लोकसभामें प्रस्तुत विवरणसे उजागर हुआ है । उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार राज्योंकी गन्दगी गंगामें ही गिरती है और ध्यान देने वाली बात यह है कि ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ बननेका कार्य भी पूर्ण नहीं हो पाया है । अभी इसमें केवल ११% ही कार्य हुआ है !
२०१५ में मोदी शासनने गंगा स्वच्छताका अभियान आरम्भ किया था एवं इस हेतु २०,००० सहस्र कोटिका धन आवण्टित किया था । काफी शोधमें यह बात सामने आ चुकी है कि गंगाका जल पीने योग्य नहीं है और ८०% तक प्रदूषित है ! जलमें ‘बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमाण्डका’ स्तर चिन्ताजनक है । शोधमें पाया है कि जलमें प्राण वायुका स्तर काफी गिर चुका है !
“यही कलियुगी राजनेताओंकी मातृभक्ति है और यदि जिसे हम मां मानते हैं, उसकी यह दुर्दशा है तो अन्य किसी कार्यकी आशा भी कैसे की जा सकती है ? गंगामें गन्दगीका लगभग ९०% भाग औद्योगिक मलका है और क्या राजनीतिक इच्छाशक्तिसे ५ वर्षोंमें यह कार्य भी नहीं हो सकता है ? मां गंगाकी विडम्बनाके कारण ही भाजपाकी गत विधानसभा मतदानमें ऐसी स्थिति हुई है; अतः अब भाजपाको हिन्दू मुद्दोंपर कार्यरत होना चाहिए !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : जनसत्ता
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