नेताओंकी लोकतन्त्रमें आस्था, दिग्विजय सिंंह नहीं गए मतदान करने !!


मई १२, २०१९



मध्य प्रदेशकी भोपाल लोकसभा क्षेत्रसे कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह अपने गृहक्षेत्र राजगढमें वोट डालने नहीं पहुंच सके । इस बारेमें दोपहरके समय दिग्विजयने कहा कि वह मताधिकारका प्रयोग करनेका प्रयास करेंगें; परन्तु सन्ध्याको उन्होंने मतदान न कर पानेकी पुष्टि करते हुए कहा कि वह वोट डालने राजगढ नहीं जा सके और इसके लिए वह क्षमा मांगते हैं ।


दिग्विजयने कहा कि अगली बार वह अपना नाम भोपालमें पंजीकृत कराएंगें । राजगढ संसदीय क्षेत्र पूर्व मुख्यमन्त्री दिग्विजय सिंहके प्रभाववाला क्षेत्र माना जाता है । यही कारण है कि दिग्विजय सिंह इस क्षेत्रसे टिकट चाह रहे थे; परन्तु पार्टीने उन्हें भोपाल भेज दिया । कांग्रेसने यहांसे मोना सुस्तानीको प्रत्याशी बनाया है । मोना सुस्तानी दिग्विजय सिंहकी विश्वस्त सहयोगी मानी जाती हैं । भोपालसे लगभग १४० किमी उत्तर-पश्चिममें और राजस्थानसे लगी राज्यकी सीमापर मालवा पठारमें स्थित राजगढमें बीजेपीने शिवराज सिंह चौहानके विश्वस्त और वर्तमान सांसद रोडमल नागरको पार्टी कार्यकर्ताओंके विरोधके पश्चात भी पुनः प्रत्याशी बनाया है । ऐसेमें यहां राज्यके दो मुख्यमन्त्रियोंकी प्रतिष्ठा दांवपर है । इन सबके मध्य दिग्विजयका राजगढ न पहुंचना मोनाके संकट बन सकता है ।


राजनीति विश्लेषकोंका मानना है कि राजगढसे दिग्विजयके कई निकटवर्ती कार्यकर्ता भी भोपालमें चुनाव प्रचारमें लगे हैं । इन कार्यकर्ताओंके साथ यदि दिग्विजय राजगढ आते तो स्थानीय मतदाताओंपर कांग्रेसके पक्षमें कुछ सकारात्मक प्रभाव अवय पडता । राजगढमें लगभग १५ लाख मतदाता हैं । गत वर्ष नवम्बरमें हुए विधानसभा चुनावमें इस लोकसभा क्षेत्रमें ८ विधानसभा सीटोंमें कांग्रेसने पांच सीट और बीजेपीने दो सीटपर विजय प्राप्त की थी, जबकि एक सीट निर्दलीयके पक्षमें गई थी ।


उल्लेखनीय है कि राजगढ सीट कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंहके राघोगढ क्षेत्रमें पडती है और वह स्वयं दो बार इस सीटका संसदमें प्रतिनिधित्व कर चुके हैं  । जबकि उनके भाई लक्ष्मण सिंह कांग्रेसके टिकटपर ५ बार और बीजेपीके प्रत्याशीके रूपमें एक बार यहांसे निर्वाचित हुए । नागरने वर्ष २०१४ के मतदानमें इस क्षेत्रमें २ लाखसे अधाक मतदाताओंके अंतरसे विजय प्राप्त की थी । लोग उनकी इस विजयका श्रेय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की कथित लहरको देते हैं ।


“जो नेता सत्ता पाना चाहता है और इस लोकतन्त्रके संग्राममें मतदान करने ही न जा पाए, उसकी इस लोकतन्त्रमें कितनी आस्था होगी, यह बतानेकी आवश्यकता नहीं है । क्या ऐसे नेता भूलेसे भी जनताका हित कर पाएंगें ? स्वयं विचार करें !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : नभाटा



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