सितम्बर ४, २०१८
उच्चतम न्यायालयमें एक याचिका प्रविष्ट कर जम्मू-कश्मीरके संविधानकी वैधताको चुनौती दी गई है । याचिकामें कहा गया है कि राज्यका संविधान भारतीय संविधानके प्रावधानोंका उल्लंघन करता है । यह याचिका पांच व्यक्तियोंने अधिवक्ता विष्णु शंकर जैनकेद्वारा प्रविष्ट की है और कहा है कि वे जम्मू-कश्मीरमें सम्पत्ति क्रयकर राज्यके स्थाई नागरिक बनना चाहते हैं; लेकिन जम्मू-कश्मीरके संविधानके कारण उन्हें ऐसा करने से रोक दिया गया । याचिकाका मुख्य बिन्दू है, जम्मू-कश्मीरका संविधान संविधान सभाद्वारा नहीं बनाया गया है और यह भारतीय संविधानके विरुद्ध जाता है । राज्यके नागरिक देशके अन्य भागोंमें सम्पत्ति क्रय सकते हैं; लेकिन देशके अन्य भागोंमें रहने वाले नागरिक राज्यमें सम्पत्ति नहीं क्रय कर सकते और न ही वे वहांके स्थाई निवासी बन सकते हैं । यह ‘अनुच्छेद १४ और १९’में दिए गए समानता तथा स्वतन्त्रताके अधिकारका उल्लंघन है । उन्होंने कहा कि राज्यका संविधान एक राज्यीय विधान मात्र है और यह नागरिकोंके अधिकारोंमें कटौती नहीं कर सकता ।
याचिकाकर्ताओंने कहा कि राज्यका विधान एक अधिनियम होनेके कारण संविधानके अनुच्छेद १३(२) के अनुसार व्यर्थ है, क्योंकि यह भारतीय संविधानके सिद्धान्तोंका उल्लंघन करता है । संविधानका अनुच्छेद १३ राज्योंको मौलिक अधिकारोंके (अध्याय ३) विरुद्ध विधान बनाने से रोकता है । उन्होंने कहा कि राज्यका संविधान इस अनुच्छेदका उल्लंघन कर रहा है । वहीं शासकीय आदेश, १९५४ को भी व्यर्थ ठहराना चाहिए, क्योंकि यह भी जम्मू-कश्मीरमें भारतीय नागरिकोंके अधिकारोंको बहुत सीमित करता है ।
याचिकामें कहा गया है कि यह अनुच्छेद- ३७० सीमित समयके लिए लाया गया था और अनन्त काल तक विस्तारित करना इसका उद्देश्य नहीं था । उन्होंने कहा कि संसदको संविधानमें संशोधन करनेकी शक्ति देने वाला ‘अनुच्छेद-३६८’, ‘अनुच्छेद-३७०’के अधीन नहीं है । एक शासकीय आदेशकेद्वारा संसदको ‘अनुच्छेद-३७०’को संशोधित करने से रोकना संविधानके मूल ढांचेको नष्ट करना है !
स्रोत : लाइव हिन्दुस्तान
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