एक व्यक्तिने पत्र लिखकर कहा है कि आपके वृत्तपत्रको पढकर लगता है कि आप साम्प्रदायिक उपद्रव (दंगा) करवाना चाहती हैं !
मैं कैसे ‘दंगा’ करवा सकती हूं ? हम हिन्दुओंके पास एक विक्षिप्त कुत्तेको मारनेके लिए भी अपने घरमें छडी नहीं होती है । साथ ही आज अधिकांश हिन्दू नाममात्रके हिन्दू रह गए हैं ! हिन्दुओंके पास न ही शारीरिक क्षमता है, न मानसिक एकता और आध्यात्मिक क्षमताके बारेमें तो पूछें ही नहीं । मात्र मन्दिरमें दो घण्टे खडे होकर दर्शनकर या ‘जय श्रीराम’का जयघोषकर धर्म और अध्यात्मके प्रति अपने कर्तव्यको पूर्ण कर लिया, ऐसा समझते हैं । ऐसेमें मैं मूर्ख ही होउंगी जो साम्प्रदयिक हिंसा करवाऊंगी । आज भारतके प्रत्येक राज्यमें एक ‘छोटा पाकिस्तान’ बसता है । मैं तो मात्र अकर्मण्य और नपुंसक बने इस समाजमें क्षात्रवृत्ति निर्माण करनेका प्रयास कर रही हूं कि देखो जिनके यहां आठ दशक पहले स्वतन्त्रता हेतु सर्वस्व बलिदान करनेवाले अनेक वीर हुए उस समाजकी क्या दुर्दशा है !
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