आंध्र विश्वविद्यालय कुलपतिका प्रखर वक्तव्य, डार्विनसे उत्तम है दशावतारका सिद्धान्त !!


जनवरी ५, २०१९

आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालयके कुलपति जी. नागेश्वर रावने दावा किया कि हिन्दू शास्त्रोंमें भगवान विष्णुके जिस दशावतारका वर्णन है वह १७वीं शताब्दीमें अंग्रेज वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विनके विकासवादके सिद्धान्तसे अधिक विकसित है । रावने १०६वें भारतीय विज्ञान कांग्रेसमें प्रस्तुति देनेके समय कहा कि डार्विनके सिद्धान्तमें जहां विकासवादका सिद्धान्त जलीय जीवसे व्यक्तितक बताया गया है, वहीं दशावतारमें एक पग आगे ‘राम’से ‘राजनीतिक रंग वाले’ कृष्ण तकके विकासवादका वर्णन है ।

रावने कहा, “दशावतार ‘मत्स्य अवतार’से आरम्भ होता है, जो जलीय प्राणी है । इसके पश्चात ‘कूर्म अवतार’की बात है, जो उभयचर प्राणी है । वह जल एवं थल दोनों स्थानोंपर रहता है । तीसरा अवतार ‘वराह अवतार’ है, जिसमें विष्णु पृथ्वीकी रक्षा हेतु वराह बन जाते हैं । चौथा अवतार ‘नरसिंह’ है, जो आधा शेर और आधा मनुष्य है । पांचवां अवतार ‘वामन’ अवतार है, जो कम परिपक्वतावाला पूर्ण रूपसे मुनष्य अवतार है ।”
रावने कहा, “अंतत: राम अवतार है, जो पूर्ण रूपसे मनुष्य हैं और तत्पश्चात कृष्ण अवतार, जो विशेषज्ञ व तार्किक हैं, वह नेता हैं । हमारा मानना है कि कृष्ण राजनीतिक हैं परन्तु राम नेता नहीं हैं । यह चलता रहता है (विकासवाद) ।” उन्होंने कहा कि पश्चिमी विचार मनुष्यके विकासवादके बारेमें बात करता है, परन्तु हमारे विज्ञानमें मनुष्यका जलीय प्राणी होनेसे आगेकी बात है । ‘वामन अवतार’तक हम मनुष्य बन गए, परन्तु उसके आगे हम परिपक्व हुए और सोच अधिक उन्नत हुई ।

कुलपतिने कहा, “हमारे साधु-संत उससे आगेकी सोचते हैं, इसलिए उन्होंने दशावतारका प्रस्ताव दिया, जो चार्ल्स डार्विनद्वारा प्रस्तावित विकासके सिद्धांतसे उत्तम सिद्धांत है ।” प्रस्तुतिके समय उन्होंने यह भी दावा किया कि कौरवोंका जन्म मूल कोशिका (स्टेम सेल) और परिनलिका (टेस्ट ट्यूब) विज्ञानसे हुआ और भारतको इस बारेमें जानकारी होनेके साथ ही सहस्रों वर्ष पूर्व ‘गाइडेड मिसाइल’के बारे में भी जानकारी थी ।
रावने प्रस्तुतिके षमय बताया कि ‘अस्त्र’ और ‘शस्त्र’का प्रयोग रामने किया, जबकि विष्णुने ‘सुदर्शन चक्र’से अपने लक्ष्यको साधा और भेदनेके पश्चात यह शस्त्र वापस अपने धारकके पास लौट आते थे ।

 

“हमारे मनीषियोंने सनातन धर्मका इतना सुन्दर सिद्धान्त प्रतिपादित किया है, जिसमें बीजसे लेकर सृष्टिकी पूर्ण रचना, निकृष्टतमसे लेकर उत्तमतक, मूलाधारसे सहस्रारचक्र तककी यात्राका वर्णन है । ऐसे सनातन धर्ममें जन्म लेनेवाले सनातनी हिन्दुओ ! अपने आपको भाग्यशाली मान ईश्वरके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें व साधनाकर बहुमूल्य हिन्दू जीवनको सार्थक करें ।  पाश्चात्य आसुरी संस्कृति केवल अधोगतिकी ओर ही लेकर जाती है, यह सभी जन्म हिन्दू ध्यान रखें !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : नभाटा



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