दत्तात्रेय देवता कौन हैं ? (भाग- ५)


दत्तात्रेयने कई वर्षों तक अपने पिता अत्रि मुनिके आश्रममें रहनेके पश्चात एक दिन अपने माता-पितासे तीर्थाटनकी अनुमति मांगी । माता-पिता थोडे दुःखी हुए । तब दत्तात्रेयने कहा कि आप जब मुझे स्मरण करेंगे, उसी क्षण मैं उपस्थित हो जाऊंगा । इस प्रकार दत्तात्रेय पूरे देशमें अवधूत वेष धारण कर घूमे । भगवान दत्तात्रेयके बारेमें अनेक चमत्कारी ज्ञान व वैराग्य पूर्ण कथाएं विविध पुराणोंमें आईं हैं । श्रीमद्भागवत पुराणमें यह बताया गया है कि भगवान दत्तात्रेयने २४ उपगुरुओंसे कैसे शिक्षा प्राप्त की ?
ब्रह्म पुराणमें कार्तवीर्य अर्जुनको एक सहस्र भुजाएं प्राप्त होनेका आशीर्वाद दिया । वाल्मीकि रामायणमें दत्तात्रेयने रावणको शाप दिया कि तुम्हारे शरीरपर बंदर पैर रखेंगे; क्योंकि रावणने एक बार भगवान दत्तात्रेयका अभिमन्त्रित जलका कलश चुराया था ।
महाभारतमें भी वर्णन मिलता है कि दत्तात्रेयने साध्य देवताओंपर कृपा की थी । पद्म पुराणके अनुसार, पुरूरवाके पुत्र आयुषके पुत्र नहीं था । बडा विचित्र चरित्र दिखाकर दत्त भगवानने परीक्षा ली और अंतमें फल देकर नहुष नामका पुत्र दिलाया ।
भगवान दत्तात्रेय आठ मास भ्रमण और चार मास तपस्या करते हैं । भिक्षाके लिए उनका विशेष स्थान है, करवीर क्षेत्र । भोजन व शयनका स्थान माहुरगढ और ध्यानके लिए जूनागढ एवं गुरु शिखर । राजस्थानके आबू पर्वतके गुरु शिखरपर वे जब तपस्या कर रहे थे तब उनके माता-पिताने उनको स्मरण किया तो दत्तात्रेय उनको भी गुरु शिखर पर ले आए । यहां दत्तात्रेयद्वारा स्थापित श्री भस्मेश्वर महादेवजीका प्राचीन शिवलिंग है ।



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