मैं आपके व्हाट्सएप गुटमें ‘साधना गुट १’की साधिका हूं । साधना आरम्भ करनेपर मुझे कुछ कष्ट होने आरम्भ हुए हैं, ये क्यों हो रहे हैं ?, यह जानना चाहती हूं ! जैसे, ‘ॐ श्री गुरुदेव दत्त’ नामजपके समय मैं बहुत अशान्त हो जाती हूं, एक प्रकारकी व्याकुलता रहती है । आज जब मध्यान्ह दत्तात्रेयका जप कर रही थी तो तीन बार हृदय गति बहुत तीव्र चलने लगी और पुनः मन व्याकुल हो गया । मैं नेत्र खोलकर जप करने लगी तब भी ऐसा हुआ तो मैं मात्र आधे घण्टे जप कर पाई । नामजपके पश्चात मुझे बहुत नींद आती है और मैं आधे घण्टेसे दो घण्टे तक सो जाती हूं । ऐसा क्यों होता है ? आपके द्वारा बताए गए नामजपको मैं ऐसी स्थिति में आपके श्रव्य जपको सुनकर रसोईघरमें कार्य करते समय एवं १५ मिनिट सैरके मध्य पूर्ण करती हूं, क्या यह जप एक घण्टेके जपमें मान्य होगा ? - एक साधिका  


आज १०० प्रतिशत लोगोंको पितृ दोषके कारण कष्ट है; इसलिए दतात्रेयका जप सभीको करने हेतु हमारे श्रीगुरुने कहा है । हमारे पूर्वज अत्यन्त कुपित होते हैं; क्योंकि हमने उनके प्रति कुछ पीढियोंसे उपेक्षाका भाव रखा है, मृत्योत्तर क्रिया-कर्म एवं पितृपक्ष तथा मासिक श्राद्ध इत्यादि भी सभी शास्त्रोक्त विधिसे श्रद्धापूर्वक नहीं करते हैं; इसलिए जप आरम्भ करनेपर रुष्ट पूर्वज हमें उसे नहीं करने देते हैं । जैसे मां यदि कुपित हो और हम उन्हें मनाने जाएं तो वह सर्वप्रथम अपने क्रोध दिखाती हैं या मुख फेरकर बैठ जाती हैं, यह वैसे ही होता है । आजके कालमें धर्मपालन न करनेके कारण हमारे पितर हमसे इतना रुष्ट होते हैं कि जब हम उनके सद्गति हेतु कुछ प्रयास करना आरम्भ करते हैं तो वे हमें कष्ट देने लगते हैं ! वस्तुतः वे यह बताना चाहते हैं कि अभी तक हमलोग कहां थे ? क्यों उनका ध्यान नहीं देते थे ? क्यों उनके लिए शास्त्रानुसार कुछ नहीं करते थे ? ये कष्ट उनकी इस मनोदशाका द्योतक है, ऐसेमें जब हम कुछ दिवस या कुछ माह हम सब करते रहते हैं तो वे हमें कष्ट देना बंद कर देते हैं; क्योंकि वे आश्वस्त हो जाते हैं कि हम उनके उद्धार हेतु संकल्पबद्ध हैं; इसलिए यदि पितृदोष हो तो हमें साधना आरम्भ करनेपर कष्ट होता है; परन्तु इससे भयभीत होनेकी कोई आवश्यकता नहीं है । साधनामें सातत्य बनाए रखें, थोडे समय उपरान्त सब अच्छा होगा ! आज अनेक बार हमारे पूर्वज हमारे देहमें स्थान बनाकर रहते हैं या उनका मन हमारे मनसे गर्भकालसे मिला हुआ होता है । यदि शरीरमें स्थान होता है, तो शरीरमें कष्ट होता है यदि मनसे उनके साथ एकरूपता हो तो मानसिक कष्ट होता है । ऐसी स्थितिमें जप करनेपर जो दुष्ट प्रकृतिकी अनिष्ट योनिमें वास करनेवाले पूर्वज होते हैं, उनसे हमारे सूक्ष्म देहके साथ युद्ध होता है ऐसेमें शरीर थक जाता है और सो जाता है । दूसरी स्थितिमें यदि पूर्वज बहुत क्रोधित होते हैं और वे हमें कष्ट देने हेतु मन बना चुके होते हैं तो वे हमें जप नहीं करने देते हैं, हमें सुला देते हैं ! इसलिए दत्तात्रेयका जप करते समय नेत्र बंद न करें और यदि नींद आती हो तो खडे होकर या थोडी देर चलकर बोल कर या नेत्रमें शीतल जलके छीटें मारकर पुन: जप करें । हमने या हमारे दो या उससे अधिक पीढीके लोगोंने जो उनकी उपेक्षा की है, यह सब उसीका परिणाम है; इसलिए हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी अगली पीढीको ऐसा कष्ट न हो इस हेतु यह जप नियमित तब तक करें, जब तक पितृदोषका प्रमाण समाप्त न हो जाए ! साथ ही यदि मन एवं बुद्धिपर अधिक आवरण होता है या वास्तुमें अशुद्धियां होती हैं या हमारी वृत्ति तमोगुणी होती है तो हमें निद्रा अधिक अति है; इसलिए अपने कारणका विश्लेषण कर योग्य उपाय करें । इस सबपर उपाय हेतु यह नामजप कुछ वर्षों तक हम सभीको करना चाहिए । यदि नामजप आरम्भ करनेपर बहुत नींद आती हो तो नमक पानीका (जल तत्त्वका और आकाश तत्त्वकका) उपचार करें एवं वास्तु शुद्धि हेतु सर्व आध्यत्मिक उपाय करने चाहिए और धर्मधाराके सत्संगमें हम यह सब बता चुके हैं  । आप ‘यू-ट्यूब’पर जाकर इसे सुन सकते हैं ।
यदि जप बैठकर करनेमें कष्ट होता है तो उसे कोई भी शारीरिक कार्य करते समय कर सकती हैं, इसलिए तो आपको जप भी भेजा जाता है, जिसे आप उसे सुनते हुए भी कर सकें ! इसप्रकारका जप भी मान्य होता है ! –  तनुजा ठाकुर



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