दीपावलीके दिवस देवताका तत्त्व अपने घर या व्यावसायिक प्रतिष्ठानपर आकृष्ट करने हेतु बन्दनवार (तोरण) लगाएं । इसे आम्रपल्लव एवं गेंदेके पुष्पसे बनाएं । आजकल अनेक लोग रंग-बिरंगी कागदके (कागजके) या पॉलिथीनके तिरंगे आकृति समान या चिमचिमीके (रंगीन चमकनेवाले फॉयल समान) बन्दनवार लगाते हैं या प्लास्टिकके मोतियोंकी मालासे घरके प्रवेश द्वारको सजाते हैं, ये सब तामसिक होते हैं और देवताके तत्त्वको अपने घरके भीतर आकृष्ट करनेकी क्षमता नहीं रखते हैं । मैंने महानगरोंमें कुछ लोगोंके घरोंपर लक्ष्मीपूजनके समय भी विदेशी पुष्प या पुष्पगुच्छका उपयोग करते हुए देखा है, विदेशी पुष्प एक तो सुगन्धरहित होते हैं और उनकी आकृति देवता तत्त्वको आकृष्ट नहीं कर पाते हैं । कुछ विदेशी पुष्पमें सुगन्ध होते हैं और वे मायावी आसुरी शक्तियोंको आकृष्ट करते हैं; अतः आज भी प्राचीन देवालयोंमें विदेशी पुष्पको पूजामें तो क्या देवालयमें भीतर भी नहीं लाया जाता है । अज्ञानतावश आज हिन्दुओंको सत्त्व, रज एवं तमका ज्ञान न होनेके कारण उसे प्रत्येक विदेशी वस्तुसे प्रेम हो गया है और वह उसका प्रतिदिनके जीवनमें बिना सोचे समझे उपयोग करता है । वैसे ही यदि सम्भव हो तो घरके द्वारपर केलेके स्तम्भसे सजावट करें, इससे भी देवताका तत्त्व हमारे घरमें सहजतासे प्रवेश करता है ।
लक्ष्मी तत्त्वको आकृष्ट करनेवाली रंगोली बनानेका प्रयास करें, रंगोलीसे भी वास्तुमें नकारात्मक शक्तियां या स्पन्दन नष्ट होकर सात्त्विक स्पंदन आकृष्ट होते हैं ।
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