देहलीके चैतन्य देवकी अनुभूतियां


१. मांका स्वप्नमें आकर आनेवाले कष्टका समाधान बताना
३ दिवस पूर्व तनुजा मां मेरे स्वपनमें आईं । वे एक खुले मैदानमें सत्संग ले रही थीं । वहां मैं पहुंचा और उनके ठीक सामने खडा हो गया । वो बोलीं, “ चैतन्य ! ये पेटका क्या किया है, आपकी तो नाभि खिसकी हुई है, योग करो और इसे ठीक करो !”
तबतक नाभि खिसकनेका कोई लक्षण नहीं था । अगले दिवस उठा तो उदरमें वेदना आरम्भ हो गई । मैं समझ गया, मैंने योग किया और ठीक हो गया !
मैंने कुछ भी विशेष सेवा आदि नहीं की; तथापि वे मेरा कितना ध्यान रखती हैं ? (१६.१२.२०१७)
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२. सत्संग लगानेपर पिताजी और भाईको कष्ट होना
कल मैंने घरपर धर्मधारा श्रव्य सत्संग चलाया, मेरा छोटा भाई मेरे आस-पास घूम रहा था । जैसे ही सत्संग आरम्भ हुआ उसे उबासियां आनी आरम्भ हो गई । उसने मेरे पास चक्कर काटना छोड दिया और बाहर चक्कर काटने लगा; परन्तु कक्षके बाहर भी सत्संगका वर जा रहा था, वह व्याकुल होकर घरसे बाहर चला गया । मैं जब भी घरपर तनुजा मांकी ध्वनिमें नामजपकी ध्वनिचक्रिका चलाता हूं, पिता और भाई दोनों चिल्लाने लगते हैं ।
(दोनोंको अनिष्ट शक्तिके कारण कष्ट हैं इसलिए सत्संगका चैतन्य उन अनिष्ट शक्तियोंको सहन नहीं होता है और वे ऐसा वर्तन करते हैं ।  ) (१७.१२.२०१७)
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जप करते समय दिव्य गन्धका आना
माताजी और मैं कक्षमें नामजप कर रहे थे (मैं मांकी गोदमें सिर रखे था और जप कर रहा था) , एकाएक दिव्य सुगन्ध आई और ५ मिनट आती रही व कक्षके अन्दर बाहर जा रही थी, जैसे कोई दैवी शक्ति भीतर-बाहर जा रही थी । (जप करते समय वह भावपूर्ण हो रहा था; अतः देवताकी उपस्थितिके कारण दिव्य सुगन्धकी अनुभूति हुई ।  )
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३. पिताजीकी खुजली ठीक होकर मुझे अंशमात्र हो जाना

पिता और भाईको अत्यधिक खुजली थी, मैं घर गया था तो पिताकी खुजली भयंकर थी, पूरे शरीरपर । उनसे हठ करके नामजप करवाया । जब मैं आनेवाला था तो उनकी खुजली पूरे शरीरकी अकस्मात ठीक हो गई; किन्तु मेरे हाथपर कोहनीके ऊपर वाले भागमें एक छोटा घेरा खुजलीका हो गया, जबकि मुझे ऐसा कुछ नहीं था । अब उनके पूरे शरीरकी खुजली ठीक है व मेरे हाथके छोटेसे भागमें एक घेरा है । मां ! इसका अर्थ समझ नहीं आया ।
(इसे पर-प्रारब्ध कहते हैं जो सूक्ष्म शक्तियां उन्हें कष्ट दे रही थीं, जप करनेके कारण उनकी शक्ति न्यून हो गई; किन्तु वे क्रोधित होकर आपको कष्ट देकर चली गईं ।   आप सर्व आध्यात्मिक उपचार करें और कुछ समय बैठकर नामजप अधिक समय करें !)
४. पिताजीको पुनः खुजलीका कष्ट होना

जब मुझे खुजलीका कष्ट हुआ तो पिता मुझे कहते थे, “औषधि लो ! तब ठीक होगी ।  ” परन्तु मैं जानता था यह उन्हींका कष्ट है । पिता और भाईकी ठीक होनेके पश्चात तो मेरी कुछ दिवसोंमें ठीक हो गई और उसके कुछ और दिवसोंके पश्चात पिताको पुन: हो गई ।    यह मां तनुजा ठाकुरके उस कथनकी पुष्टि करता है कि आध्यात्मिक कष्ट न्यून करने हेतु व्यक्तिको स्वयं ही सातत्यसे साधना करनी पडती है । (२०.६.२०१८)
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५. कालीमांका आकर सूक्ष्म अनिष्ट शक्तिका नाश करना
एक दिवस मैं घरपर मां कालीका नामजप ऐसे ही करने लगा और अनायास ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे काली मांके विग्रहमें एक तेज हो ।   उस दिन सवेरेसे ही मुझे कष्ट अधिक था व पितापर अधिक क्रोध कर रहा था । अनायास जप करते-करते ध्यानमें काली मांने एक पांव विग्रहके बाहर निकाला व सीधा एक कुर्ता-पायजामा पहने, एक हृष्ट-पुष्ट पुरुषकी छातीपर रखा, प्रथम तो वह मांसे क्षमा मांगने लगा, उसके पश्चात हंसने लगा ।   काली मांने अपना त्रिशूल उसकी छातीपर दे मारा और वह वहीं शान्त हो गया व एक ज्योति निकल ऊपर चली गई । उसके पश्चात ऐसा लगा कि काली मां आंगनमें क्रोधमें नृत्य कर रही हों । कुछ समय पश्चात जब सब बन्द हो गया तो मेरे पीछे एक बिस्तर था, उसपर तनुजा मां बैठी दिखाई दीं । उन्होंने कहा, “बेटा चैतन्य ! बहुत थक गई हूं, थोडा जल पीनेको देना” तो आंखें खोल मैंने काली मांके विग्रहको जल पिलाया ।” (१२.६.२०१८)
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६. जपके कारण अनिष्ट शक्तियोंका घर छोडकर जाना
कुछ माह पूर्व कुछ दो महिलाएं मांके स्वप्नमें आईं । वे अपना सामान बान्ध रही थीं और कह रही थीं कि ये तो सारा दिन जप करते रहते हैं, बाहर निकलो यहांसे । (२०.४.२०१८)
(ये आपके घरमें जो अनिष्ट शक्तियां थीं वे जपका तेज सहन नहीं करनेके कारण चली गईं, यह नामजपका प्रताप है ।  )
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७. दादाजीका स्वप्नमें आकर यह कहना कि अब मैं सदैवके लिए जा रहा हूं
कुछ माह पूर्व मांके स्वप्नमें मृत दादाजी आए व वो बाहरसे आ रहे थे और अत्यधिक हृष्ट-पुष्ट लग रहे थे । मांको उन्होंने कहा, “बेटी अब तो घरपर बहुत दिनोंमें आया हूं । मैं प्रसन्न हूं और अच्छेसे खा पी रहा हूं और साधना कर रहा हूं ।” अकस्मात पिताजी आए और दादाजीको मल्लयुद्धके (कुश्तीके) लिए ललकारने लगे कि तू अब तो शक्तिशाली हो गया है, आओ ‘कुश्ती’ करते हैं । उन्होंने प्रतिबन्ध (शर्त) रखा कि हमारे मध्य कोई नहीं आएगा ! दादाजी पितासे ‘कुश्ती’ करने लगे तो उन्होंने दादाजीको उठाकर अनेक बार पटका । सीढियोंसे धक्का देने लगे तो मां मध्यमें आ गईं और पिताजीको पीछे धकेल दिया  । दादाजी अत्यधिक उदास थे कि ये मार रहा था और तुमने बचाया नहीं ।   मांने कहा कि ‘शर्त’ किसने स्वीकार की थी और भक्तिमें लडाई कैसी ? फिर दादाजीको मांने बैठाया और खिलाया, तेल मर्दन किया (मालिश की) और घरसे विदा किया । दादाजी कहकर गए कि बेटी अब मैं सदाके लिए चलता हूं, अपना ध्यान रखना ! (१८.४.२०१७)
(आपके दादाजीको गति मिल गई ।  )
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८. नमक-पानीके आध्यात्मिक उपचारसे मांके नेत्रोंके कष्टका न्यून होना
मांको नमक-पानीके आध्यात्मिक उपचार कराता था तो वो कहती थीं कि ऐसा लगता है जैसे आंखोंसे कुछ ‘गर्म’ वस्तु निकल रही हो । कुछ दिवस पश्चात मांके सिरमें वेदना होने लगी व जब चिकित्सकको दिखाया तो उसने बताया कि उनके उपनेत्रका (चश्मेका) आधा नम्बर कम हो गया है ! मैं आश्चर्यचकित था कि इस आयुमें आंखोंका नम्बर कम कैसे हो गया ? (१०.७.२०१८)
(उन्हें नेत्रोंमें कष्ट कुछ प्रमाणमें अनिष्ट शक्तियोंके कारण था, अनिष्ट शक्तियां हमारे शारीरिक या मानसिक कष्टोंकी तीव्रता सरलतासे बढा सकती हैं और यदि हम योग्य आध्यात्मिक उपचार करें तो वे कष्ट न्यून हो जाते हैं ।  )

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९. श्रीकृष्ण और शिव एक ही हैं इसकी हुई अनुभूति
कुछ दिवस पूर्व देवालयमें बैठ जप कर रहा था (तनुजा मांने दो दिवस पूर्व ही ‘ॐ ॐ नमः शिवाय ॐ ॐ’का जप करनेको बताया था, वास्तुमें आध्यात्मिक कष्टके कारण कक्षमें निद्रा आती है तो देवालयमें अधिक एकाग्रतासे जप कर पाता हूं !) तो कृष्ण भगवानके सामने बैठा था और मांने जो बताया वहीं जप कर रहा था तो अचानक अर्धनिद्रामें चला गया । ठीकसे भान नहीं कि जगा था या सो गया था और अचानकसे दिखाई दिया कि बालरूपमें राधा रानी और कृष्ण बैठे हैं, अकस्मात बालकृष्ण पीठ करके मेरी ओरसे मुड गए और मक्खन खाने लगे । मैंने  ध्यान पूर्वक देखा तो पाया कि बाल रूप परिवर्तित होकर महादेवका हो गया है और महादेव मक्खन खा रहे हैं, पुनः वह बालकृष्णका हो गया और उसके पश्चात मैं  अर्धचेतनासे बाहर आया ।
श्रीकृष्णका यह सन्देश मेरे लिए ही था जिसमें वह बता रहे थे कि हम दोनों ही एक हैं; क्योंकि बचपनसे ही दोनोंकी भक्ति, उन्होंने इस शरीरसे कराई है तो कई बार उद्विग्न हो जाता था । बोलता भी था, मानता भी था कि दोनों ही एक हैं; परन्तु उन्होंने केवल मनकी अन्तर्दशा स्पष्ट की । (१०.७.२०१८)

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१०. शिवजीका स्वप्नमें आकर बताना कि मेरे माध्यमसे वे ही कर रहे हैं सेवा
कल रात्रि स्वप्नमें शिवजी आए और वो पंचाग डालनेकी सेवा रहे थे, (मैं फेसबुक और उपासनाकी जालस्थलपर प्रतिदिन पंचांग डालनेकी सेवा करता हूं) तो मैंने कहा, “बाबा, आप पंचाग क्यों डाल रहे हैं ?, यह सेवा तो मेरी है न ?” तब बाबाने कहा कि तू ही तो कहता है कि महादेव इस शरीरसे यह सेवा आप ही कर रहे हैं, तो अब क्यों पूछ रहा है ? उसके मैं पश्चात जाग गया ।
सत्यमें सबकुछ प्रभु ही कर रहे हैं और करवा रहे हैं । इसमें अभिमान लाना कि ‘मैं’ कर रहा हूं, महामूर्खता है । (१०.७.२०१८)

११. आज दीदीके घरसे दीपावलीका उपहार देनेके लिए ‘एक्टिवा’पर फल लेने हेतु विपणि (बाजार) निकला था । फल क्रय करनेके पश्चात जब चलने लगा तो विचित्र ढंगसे ‘एक्टिवा’का सन्तुलन बिगडा और गिर गया, आगे एक बडा वाहन (ट्रेक्टर) था । गिरते ही मुझे तत्काल आभास हुआ कि किसी अनिष्ट शक्तिने यह किया है; परन्तु विचित्र बात यह थी कि मुझे एक भी खरोंच नहीं आई, कुछ समयके लिए थोडी वेदना हुई, उसपर ध्यान नहीं दिया और थोडे समय पश्चात वह भी चली गई । मैं ऐसे गिरा था कि मुझे अधिक चोट आना निश्चित था; किन्तु गुरुकृपासे कुछ विशेष कष्ट नहीं हुआ । – चैतन्य देव, देहली ( ५.११.२०१८)

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