देहलीके श्री सुरेश रावतकी अनुभूतियां


१. नामजपके पश्चात सूक्ष्म लिंगदेहका घरसे बाहर जानेकी अनुभूति होना

नवंबर २०१७ में हम लोग बच्चोंकी नानीसे मिलने उत्तराखण्ड गए थे, वहां घरकी छतपर और खिडकियोंपर रात्रिमें प्रतिदिन ठक-ठककी ध्वनि सुनाई देती थी । हमने वहांपर प्रत्येक कक्षमें सनातन संस्था निर्मित नामजपकी पट्टियां लगा दी और उद्बत्ती जलाकर कर माला लेकर नामजप किया । उसी रात्रिसे ठक-ठककी ध्वनि बन्द हो गई । रात्रिको सपनेमें एक आकृति दिखाई दी जो धूलमें लिपटी हुई थी और गहरी निन्द्रासे जाग रही थी, ऐसा लगा । हम वहांपर ३ दिन रहकर वापस देहली वापस आ गए । दिसम्बर २०१७ में हम पुनः गए और वहांपर नामजप किया । रात्रिमें स्वप्नमें एक बहुत बडे व वृद्ध साधुकी आकृति धूल मिटीसे सनी हुई, हाथमें भाला लिए भूमिसे निकल कर बिना कुछ कहे घरसे बाहर चली गई । (३०.०१.२०१८)

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२. सत्संगके मध्य एक प्रकाश पुंजका शरीरमें समा जाना

अक्टूबर २०१७ में जब हम दूसरी बार उपासना पीठके देहली आश्रममें सत्संगमें गए उस समय ‘ॐ ॐ नमः शिवाय ॐ ॐ’का नामजप चल रहा था और मेरी आंखें बन्द थीं, अकस्मात एक प्रकाश पुंज तनुजा मांके कक्षकी ओरसे आया और मेरे शरीरमें समा गया । मुझे ऐसा लगा कि मां सामने आसन्दीपर (कुर्सीपर) बैठी हैं, जबकि वे बहुत देरके पश्चात बाहर आईं ।

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३. मांके कष्टका स्वप्नमें भान होना

नवम्बर २०१७ में तनुजा मां गोड्डा आश्रममें गई थीं, उसी मध्य तनुजा मां मेरे सपनेमें आई मैंने उनको प्रणाम किया वे भूमिपर बैठी थीं और उनके पावोंमें वेदना हो रही थी । मैंने उनको कहा कि मैं उनके पावोंको दबा देता हूं, उनकी अस्वीकृतिके  उपरान्त भी मैंने उनके चरण दबाए उनके पांव हिमके (बर्फके) समान ठण्डे थे । कुछ दिवस पश्चात जब मां देहली आईं तो मैंने अपनी अनुभूति बताई तो ज्ञात हुआ कि जब वे गोड्डा आश्रममें थीं तो उनके पावोंमें बहुत वेदना थी और उनके पांव अधिकतर समय बहुत ठण्डे रहते हैं ।

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४. बिना उपनेत्रोंके (चश्मेके) साहित्यके अक्षरोंका दिखाई देना

३१ दिसम्बर २०१७ को मैं वैशाली ‘मैट्रो स्टेशन’के पास मेलेमें सेवाके लिए गया था, वहां वैदिक उपासना पीठकी ग्रन्थ प्रदर्शनी लगाई गई थी । जब मैंने जनवरी २०१८ की पत्रिका उठाई तो मैं उसे स्पष्ट पढ सकता था जबकि मैंने दूरीवाला ‘चश्मा’ लगा रखा था और पढनेके लिए मुझे ‘चश्मा’ उतारना पडता है ।

१ जनवरी २०१८ को हमने अपने कक्षमें नामजपकी पट्टियां लगाईं, सन्ध्याको नामजपकेके समय मुझे ‘ॐ नमः शिवाय’की पट्टी स्पष्ट दिखने लगी, जबकि मैंने ‘चश्मा’ उतार रखा था; परन्तु यह मात्र कुछ क्षणोंके लिए हुआ । (यह वैदिक उपासना पीठ और सनातन संस्थाके साहित्यमें निहित चैतन्यके कारण हुआ ।)

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५. देहली गुरुपूर्णिमा महोत्सवकी पूजाके मध्य हुई मांके सूक्ष्मसे उपस्थित रहनेकी अनुभूति

जब मैं गुरुपूजनमें बैठा था और मन्त्रोंका उच्चारण चल रहा था तो शरीरमें स्पन्दन होने लगा, साथ ही ऐसा लगा कि जैसे सामनेसे सूक्ष्म तरंगें शरीरमें प्रविष्ट हो रही हैं । कुछ समय पश्चात मांके लिए रखी गई आसन्दीपर (कुर्सीपर) ध्यान गया और  मैंने सोचा मां भी इस ‘कुर्सी’पर बैठी होंगी, वैसी ही शरीरमें अकस्मात सूक्ष्म तरंगे टकराईं, जैसे मांने कहा हो, “मैं यहीं पर हूं ।”

६. परात्पर गुरुदेव डॉ. आठवलेका छायाचित्र कपाटिकामें (शोकेसमें) लगाए कुछ ही समय हुआ है, उनके चित्र लगानेसे घरमें सकारात्मक ऊर्जाका प्रवाह आता अनुभव होता है । कुछ समयसे जिस कक्षमें परम पूज्य गुरुदेवजीका चित्र लगा है उस कक्षमें छोटे-छोटे तिलचट्टे अपने आप ही मरे पडे मिलते हैं । (ऐसा रामनाथीमें परम पूज्य गुरुदेवके कक्षमें भी होता है, जहां कीट इत्यादि स्वतः ही उनके चैतन्यसे मरे हुए मिलते हैं । – सम्पादक)

७. मांके लेखन व सत्संगके विषयमें हम पति-पत्नी बातें करते रहते हैं और इसका प्रभाव मेरी पुत्रीपर दिखाई देने लगा है, उसे अब पैंट-शर्टके स्थानपर, सलवार-कुर्ती पहनना अधिक अच्छा लगने लगा है ! कृतज्ञता मां ! – सुरेश रावत, देहली

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