देवता पूजन सूक्ष्म किन्तु वैज्ञानिक अध्यात्म शास्त्रपर आधारित है, इस सन्दर्भमें शास्त्र कहता है –
त्यजेत् पर्युषितं पुष्पं त्यजेत् पर्युषितं जलम् ।
न त्यजेज्जाह्नवीतोयं तुलसीदलपंकजम् ॥
अर्थ : बासी (पर्युषित) पुष्प तथा बासी जलका प्रयोग देवपूजनमें नहीं करना चाहिए; किन्तु गंगाजल या तुलसीदल या तुलसी-पुष्पमें बासीपनका दोष नहीं होता; अतः ये सदा ग्राह्य हैं ।
बासी फूलके रंग और रूप विद्रूप हो जाते हैं, इसलिए वह देवताके तत्त्वको आकृष्ट करनेकी क्षमता नहीं रखते है और पात्रमें रखे बासी जलपर भी रात्रिके रज-तमका आवरण आ जानेसे वह भी पूजाके लिए योग्य नहीं होता, वहीं गंगाजलमें शिवके सूक्ष्म पवित्रके होनेसे वह पवित्र रहता है एवं तुलसी दल, विष्णु तत्त्वसे भारित होनेके कारण दूषित नहीं होता, इसलिए दोनोंपर ही बासीपनका दोष लागू नहीं होता है !
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