‘कलियुगमें धर्मका पतन होगा’, यह सुनते हुए बडी हुई; किन्तु धर्मके पतनका अर्थ क्या होता है ?, अब समझमें आ रहा है ! कहीं वासनान्ध चरित्रवाले नराधमोंके अविश्वसनीय कुकृत्योंको पढकर मन सिहर उठता है, तो कहीं स्वार्थान्धों और धर्मद्रोहियोंके वक्तव्य सुनकर मन सुन्न पड जाता है, यदि कलियुगके प्रथम चरणमें मानव इतना गिर सकता है तो कलियुगके अंतिम चरण जिसे अभी समाप्त होनेमें लगभग सवा चार लाख वर्ष शेष है, क्या होगा ?; इसलिए अब पुनः कलियुगमें जन्म नहीं चाहिए, इसी जन्ममें मुक्ति मिलनी ही चाहिए ! इस स्थितिको देखना और सहन करना, नरक दर्शन करने समान ही पीडादायक है | अब तो लगता है कि हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना शीघ्र होनी ही चाहिए, जिससे ऐसे समाचारोंको देखने और सुननेसे मुक्ति मिले !
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