कलियुगी अर्थात् मायावी धर्म


द्वापर युग युग तक एक ही धर्म था वैदिक सनातन धर्म , कलियुग के प्रवेश होते ही मांत्रिकोंने (सूक्ष्म जगतकी बलाढ्य आसुरी शक्ति) कुछ आध्यात्मिक दृष्टिसे किन्तु जिनका अहम् अधिक था ऐसे उन्नत साधकोंको अपने वशमें कर अनेक कलियुगी धर्म(पंथकी) संथापना कर दी, ऐसे सभी तथाकथित धर्म संसथापकोंमेंसे किसीने वेदके अस्त्तित्वको नहीं माना तो किसीने देवी-देवताओंके अस्त्तित्वको नकार दिया तो किसीने वैदिक गुरु-परंपराको ! ऐसे संस्थापकोंके आसुरी शक्तिकी कठपुतली होनेके कारण, उनके पास आसुरी एवं मायावी सिद्धियां सहज ही प्राप्त होने लगीं और  इनसे जुडनेवाले लोगोंको धन की प्राप्ति होने लगी और कलियुगी जीव इस आसुरी मायाके इस प्रकोपको न समझ सकनेके कारण इन कलियुगी अर्थात मायावी धर्ममें मतांतरित होने लगे और कलियुगी धर्मोका प्रसार बढने लगा ! वास्तविकता यह है कि आज इन सभी कलियुगी धर्मके अनुयायियोंको तीव्र अनिष्ट शक्तिका कष्ट होने लगा है और इनका माध्यम बना सूक्ष्म जगतकी आसुरी शक्तियां पूरे विश्वमें अपने आसुरी साम्राज्य का विस्तार करने लगी हैं ! किन्तु इनका साम्राज्य हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाके साथ ही सम्पत हो जायेगा और सर्व मात्र सनातन धर्मका साम्राज्य होगा !  यह सामान्य लोगोंके लिए अविश्वासनीय किन्तु एक चिरंतन सत्य ! – तनुजा ठाकुर



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