अथोच्यते गृहस्थस्य नित्यकर्म यथाविधि ।
यत्कृत्वानृण्य माप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मानुषात् ।।
अर्थ : शास्त्रविधि अनुसार गृहस्थके नित्यकर्मका निरूपण किया जाता है, जिसे करनेसे मनुष्य देव, पितर और मनुष्यसे संबन्धित सभी ऋणोंसे मुक्त हो जाता है।
भावार्थ : कलियुगमें देव ऋणसे मुक्ति हेतु नामजप करना चाहिए, पितर ऋणसे मुक्ति हेतु शास्त्रोक्त विधिसे श्राद्ध इत्यादि कर्म करते हुए ‘श्री गुरुदेव दत्त’का कमसे कम एक घंटे बैठकर नित्य जप करना चाहिए, अतिथि ऋणसे मुक्ति हेतु अतिथि सत्कार करना चाहिए और समाज ऋणसे मुक्ति हेतु धर्मप्रसारकर जीवोंको धर्म पथपर अग्रसर होने हेतु उद्युक्त करना चाहिए । – तनुजा ठाकुर
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