धर्मकी सेवामें असुर विघ्न डालते हैं !


जून २०१६ में मैंने अपने श्रीगुरुको पूछा था कि उपासनाके प्रत्येक उपक्रममें अनिष्ट शक्तियां इतना अधिक विघ्न उत्पन्न क्यों करती हैं ? हमारा कार्य तो अभी नगण्य समान ही है ! मैंने यह प्रश्न इसलिए पूछा था क्योंकि मुझे लगा कि यदि मुझसे कोई चूक हो रही हो तो मैं उसमें सुधार कर सकती हूं । उन्होंने कहा, “यह अनिष्ट शक्तियोंद्वारा आपके अक्र्य(it shouldn’t be this, couldn’t get the correct word though)को प्रमाणपात्र (सर्टिफिकेट) है ।” वैसे इससे पूर्व जब भी मैंने भगवानजीसे इस प्रश्नका उत्तर पूछा था तो वे भी यही उत्तर देते थे, इससे गुरु और ईश्वर एक ही होते हैं, यह सिद्ध होता है !

  पिछले दो वर्षोंसे मैं प्रतिदिन दो चार पंक्तियां लिखकर समाज प्रबोधन करनेका प्रयास करती हूं; किन्तु इसे लिखते समय भी मुझे बहुत कष्ट होता है ! अनेक बार लिखनेसे पूर्व ही बिना कारण सो जाती हूं, कभी-कभी लिखते-लिखते ही सो जाती हूं और अधिकांश समय लिखनेके पश्चात इसे गुटोंमें साझा करने हेतु साधकको देकर सो जाती हूं ! पहले मुझे लगा कि मेरी नींद पूरी नहीं होती होगी (क्योंकि कार्य अधिक और साधक संख्या कम होनेके कारण मैं चार या साढे चार घंटे ही सो पाती हूं;) इसलिए मुझे लिखते समय नींद आती है या लिखनेके पश्चात सो जाती हूं तो कुछ दिवस मैं सात घंटे सोनेके पश्चात लिखनेका प्रयास करती थी तो भी उतनी ही तीव्रतासे नींद आती थी । तब मैंने सूक्ष्मसे विश्लेषण लिया तो ज्ञात हुआ कि कारण आध्यात्मिक है ! इससे सूक्ष्म जगतकी शक्तियां कितना सतर्क होती हैं, यह समझमें आता है ! जब मैंने लेखनकी सेवा आरम्भ की थी, उस समय मेरे पाठकवर्गकी संख्या ५ से ६ लाख होगी और आज ५० से ६० लाख है (ये आंकडे सूक्ष्मसे निकाले हैं) ! उन्हें इस बातका पूर्वानुमान था; इसलिए वे मुझे इस सेवाको करते समय भी अडचनें निर्माण करती थीं और आज भी कर रही हैं ! अभी भी यह लिखते समय मेरी पीठमें तीव्र वेदना हो रही है और साथ ही निद्रा आ रही है ! जबकि चार बजे उठनेके पश्चात आज प्रातः छ: बजेसे सात बजे तक पुनः सो चुकी हूं, तब भी ऐसी स्थिति है !  यह पिछले दो वर्षोंसे लगातार हो रहा है ! इससे समष्टि निमित्त आध्यात्मिक लेखनका क्या महत्त्व होता है ?, यह भी ज्ञात होता है ! मैं शारीरिक रूपसे स्वस्थ रहूं; इसलिए नियमित योगासन, प्राणायाम, नित्य आध्यात्मिक उपाय, नामजप, मुद्रा, एक्युप्रेशर इत्यादि अनेक उपाय करती रहती हूं, तब भी स्थिति वैसी ही नहीं है अपितु और भी विकट होती जा रही है ! इसलिए पहले मैं सात बजे पंचांग भेजती थी, अब धीरे-धीरे स्वास्थ्य गिरनेके कारण उसे अधिक समय देती हूं; किन्तु अनिष्ट शक्तियां भी उतनी ही चतुर हैं, वे भी युद्धकी तीव्रता बढा देती हैं ! हमारे श्रीगुरु बताते थे कि उन्हें या सनातनके लेखक-साधकोंको लेखन सम्बन्धित सेवा करते समय कष्ट होता है; किन्तु तब मैं प्रसारमें थी; इसलिए उस बातकी तीव्रताका मुझे भान नहीं होता था; किन्तु अब मुझे ज्ञात होता है कि वे क्या कहना चाहते थे ?!



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