अधिकांश लोग सुख और दुखके उतार-चढावका अनुभव इसलिए करते हैं; क्योंकि वे अधिकांश समय यह सोचते रहते हैं कि समाज उनके बारेमें क्या सोचेगा या कहेगा । जब व्यक्ति इस विचारमें रमा हुआ रहता है कि ऐसा क्या करूं कि ईश्वर मुझसे प्रसन्न हों, तो वह सुख-दु:खके अनुभवसे ऊपर उठ, आनंद अवस्थाकी अनुभूति लेने लगता है – तनुजा ठाकुर
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